सरकार के बारे में ख़बरों की निगरानी वाली यूनिट सुप्रीम कोर्ट से एक दिन में ही ख़ारिज
नयी दिल्ली, 22 मार्च। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पत्र सूचना कार्यालय (PIB) के अंतर्गत फैक्ट चेक यूनिट (FCU) का गठन करने वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगा दी। केंद्र ने एक दिन पहले बुधवार यानी 20 मार्च को ही आईटी यानी सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत फैक्ट चेक यूनिट को नोटिफाई किया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस यूनिट को अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ माना।
पत्र सूचना कार्यालय यानी PIB फैक्ट चेक के जरिए सरकार से जुड़ी खबरों का खंडन करता था । कहने का मतलब अगर न्यूजपेपर/ऑनलाइन मीडिया/ या अन्य किसी प्लेटफॉर्म पर पब्लिश किसी खबर में सरकार के कामकाज को लेकर भ्रामक तथ्य हैं या सरकार या उसकी छवि खराब करने वाली बात कही गई है, तो उनका तथ्यों के साथ एनालिसिस कर फैक्ट चेक किया जाता था ।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘यह यूनिट अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ है।’ यह फैक्ट चेक यूनिट केंद्र सरकार के बारे में सोशल मीडिया में वायरल हो रही फर्जी सूचनाओं और पोस्ट की पहचान करने के साथ उसे प्रतिबंधित करने के लिए बनाई जानी थी।
यूनिट के पक्ष में सरकार का तर्क था कि पत्र सूचना कार्यालय के अंतर्गत आने वाली फैक्ट चेक यूनिट की स्थापना नवंबर 2019 में फर्जी समाचारों और भ्रामक सूचनाओं का प्रचार और प्रसार रोकने से निपटने के रूप में कार्य करने के उद्देश्य के साथ की गई थी। यह यूनिट भारत सरकार के विरूद्ध किसी भी तरह की संदिग्ध और संदेहास्पद जानकारी को लोगों के समक्ष स्पष्ट और सही तरीके से प्रस्तुत करने का एक सरल माध्यम भी है।
सरकार का तर्क था कि फैक्ट चेक यूनिट को सरकारी नीतियों, पहलों और योजनाओं पर स्वत: संज्ञान या शिकायतों के माध्यम से भ्रामक अथवा गलत सूचनाओं को उजागर करते हुए सही जानकारी प्रदान करने के लिए स्थापित किया गया है। फैक्ट चेक यूनिट सक्रिय रूप से दुष्प्रचार अभियानों की निगरानी करने के साथ-साथ उनका पता लगाते हुए यह सुनिश्चित करता है कि सरकार के बारे में किसी भी तरह की गलत अथवा भ्रामक जानकारी को शीघ्र उजागर करते हुए सही और सटीक जानकारी उपलब्ध कराई जाए।
प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने बॉम्बे हाईकोर्ट के 11 मार्च के आदेश को भी रद्द कर दिया, जिसमें फैक्ट चेकिंग यूनिट बनाने पर रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिका पर यह फैसला दिया।
सूचना प्रौद्योगिकी नियमों में संशोधन के खिलाफ कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन ने सबसे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि ये नियम असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने ये भी कहा था कि फेक न्यूज तय करने की शक्तियां पूरी तरह से सरकार के हाथ में होना प्रेस की आजादी के विरोध में है।
संशोधित याचिका पर फैसला देते हुए जस्टिस जीएस पटेल ने संशोधन के विरोध में और जस्टिस नीला गोखले ने उसके पक्ष में फैसला दिया था। जब मामला तीसरे जज जस्टिस चंदूरकर के पास गया तो उन्होंने संशोधन पर स्टे लगाने से मना कर दिया।
हालांकि पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि मामले की सुनवाई पूरी होने तक वो फैक्ट चेक यूनिट की अधिसूचना जारी नहीं करेगी, लेकिन तीसरे जज के संशोधन पर रोक लगाने से मना करने के बाद कोर्ट ने सरकार को अधिसूचना लाने की इजाजत दे दी थी। बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले से नाखुश याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस पर 21 मार्च को सुनवाई तय की गई थी।