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अब पहाड़ के आरसे केवल बहुओं के मायके की लज़ीज़ सौगात ही नहीं बल्कि लाखों की कमाई का जरिया भी बन गये हैँ

–दिनेश प्रसाद उनियाल

पहाड़ों में सदियों से बनाई जाने वाली इस परम्परागत मिठाई की खुशबू की  महक सभी को मोहती है। जी हां बात कर रहे हैं पहाड़ी मिठाई ” आड़से” की । कहीं कहीं इसे अरसा भी कहते हैँ ।  पहाड़ों में हर शादी समारोह हों या फिर कोई शुभ कार्य, आड़से या आरसे  जरुर बनाये जाते हैं , कहीं भी रिश्ते में जाना हो या लड़कियों ने मायके से ससुराल जाना हो तो ‘आरसों’ के साथ रोटाने बनाकर भेजे जाते हैँ।

यूं तो हर गांव में बनाये जाते हैं लेकिन अब इसका स्वाद चखने के लिए अनेक कस्बों में स्वरोजगार को अपनाते हुए बनाये जाने लगे हैं।क्योंकि मैदानी क्षेत्र में ये काफी लोकप्रिय हो रहे हैँ। प्रवासियों का इस मिठाई से भावनात्मक लगाव होने के कारण  भी इसकी मांग मैदानी नगरों में बढ़ी है।

टिहरी जिले के नरेन्द्रनगर विधानसभा क्षेत्र के “गजा ” कस्बे में बनाये जाने वाले आडसों की  महक अब शहरों में बहुत दूर तक पहुंच गई है। लोकल से वोकल में गजा के इन आडसों ने अब अलग ही पहचान बना ली है । दिव्या जनरल स्टोर, गुनसोला स्वीट शाप, चौहान आडसा दुकान के आरसे बड़े पैमाने पर जाने लगे हैँ।

गजा के आरसा मिठाई व्यापारी बताते हैं कि एक दर्जन लोगों को रोजगार देने के साथ ही सैकड़ों कुंतल आडसे एक साल में बनाकर अच्छी आमदनी हो जाती है। इसको बनाने की जानकारी नहीं होने से यह खराब हो जाते हैं । दिव्या जनरल स्टोर के विनेश सिंह चौहान बताते हैं कि चावलों को एक दिन पहले पानी में भिगो कर फिर सुखाने के बाद मशीन में डाल कर पिसाई करने के बाद कड़ाही में गुड़ का घोल या चास तैयार करने के बाद चावल का आटा मिलाया जाता है। उसके बाद उसके गोले बना कर  तेल की कड़ाही में तलने के बाद छन्नी से निकाल देते हैं । स्वाद को बढ़िया बनाने के लिए चावल का आटा गुड़ की चासनी में मिलाने के बाद सफेद तिल, मिलाते हैं, लीजिए आप भी देखिए कैसे बनते हैं, गजा में बनाये जाने वाले आडसों की मांग अब शहरों में भी है।

 

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