मुज़फरनगर काण्ड के पीछे किसकी थी साजिश ? 27 साल से इस रहस्य पर पर्दा क्यों ?
मुजफ्फरनगर काण्ड पर सववाल ही सवाल ही सवाल
- पहले दिल्ली पुलिस ने कहा कि जनरल खण्डूड़ी के कहने पर पूर्व सैनिक हथियार लेकर दिल्ली आ रहे थे।
- दिल्ली में वास्तव में हथियार ले कर प्रदर्शन की अनुमति कोई सरकार नहीं दे सकती।
- बाद में तत्कालीन गृहमंत्री ने कहा कि खण्डूड़ी ने बावर्दी और हथियार सहित दिल्ली आने को नहीं कहा था।
- आखिर झूठी सूचना देकर दिल्ली पुलिस को किसने गुमराह किया?
- गलत सूचना मिलने के बाद ही केन्द्र सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को आन्दोलनकारियों को रोकने को कहा था।
- दिल्ली पुलिस ने जब पूर्व सैनिकों के हथियार समेत दिल्ली आने के इनपुट की जानकारी लिखित तौर पर स्वंभू फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ठ और खिमानन्द खुल्बे को दी थी तो वे दोनों चुप क्यों रहे?
- उत्तराखण्ड में कर्फ्यू के दौरान दिवाकर भट्ठ कहां और क्यों गुम थे?
- कुमाऊं से गये आन्दोलनकारियों को क्यों नहीं रोका गया?
- केवल देहरादून-ऋषिकेश से जाने वाले आन्दोलनकारियों को ही क्यों बलपूर्वक रोका गया?
- कहीं उत्तराखण्ड आन्दोलन को हाइजैक करने के प्रयास का परिणाम तो नहीं था, मुजफ्फरनगर काण्ड?
- उत्तराखण्ड की सत्ता की मलाई चाटने वालों ने 27 सालों तक न्याय दिलाने के लिये क्या किया?
- 1996 में भाजपा छोड़ते समय हरक सिंह रावत ने भी कुछ गंभीर आरोप लगाये थे। अब चुप क्यों हैं?
–जयसिंह रावत
खटीमा और मसूरी गोलीकाण्डों के बाद अगर दिल्ली पुलिस को आन्दोलनकारियों के हथियार ले कर दिल्ली रैली में भाग लेने की गलत सूचना नहीं दी जाती तो मुजफ्फरनगर काण्ड नहीं होता। दिल्ली पुलिस को ऐसी खतरनाक सूचना देने वाले का चेहरा आज तक बेनकाब नहीं हो सका। दिल्ली पुलिस के तत्कालीन
उपायुक्त दीपचन्द द्वारा आन्दोलनकारी नेता दिवाकर भट्ट को 30 सितम्बर 1994 को लिखी गई चिट्ठी में कहा गया था कि गढ़वाल के सांसद मेजर जनरल (सेनि) भुवनचन्द्र खण्डूड़ी ने पूर्व सैनिकों से बावर्दी दिल्ली रैली में भाग लेने की अपील की थी। चिट्ठी में हथियार लेकर आन्दोलनकारियों के पहुंचने की संभावना व्यक्त की गयी थी। लेकिन बाद में स्वयं तत्कालीन गृहमंत्री एस बी चह्वाण ने न केवल खण्डूड़ी को क्लीन चिट दे दी बल्कि उन पर गलत आरोप के लिये खेद भी प्रकट किया। सवाल उठता है कि जब कुमाऊं मण्डल के आन्दोलनकारी रामपुर, मुरादाबाद एवं गाजियाबाद होते हुये बेरोकटोक सकुशल दिल्ली पहुंच गये थे तो फिर गढ़वाल से आने वाले आन्दोलनकारियों को ही क्यों बंदूक की नोकों पर रोका गया?
दशकों के जनसंघर्षों के बाद भारतीय गणतंत्र के 27वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आने वाला उत्तराखण्ड राज्य शीघ्र ही अपने जीवनकाल के 21वें वर्ष में प्रवेश कर गया। इन 21 वर्षों में 10 नेताओं को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गयी, दर्जनों को मंत्री पद और हजार से अधिक को मंत्रियों के जैसे ठाटबाट वाले पद के साथ ही 350 विधायक मिल गये। मगर जिन लोगों ने इस राज्य की मांग के लिये अपनी जानें कुर्बान कर दीं और जिन महिलाओं की आबरू तक लुटी उन्हें 27 साल बाद भी न्याय नहीं मिला। उत्तराखण्ड आन्दोलन के दौरान हुये दमन को इलाहाबाद हाइकोर्ट ने राज्य प्रायोजित आतंकवाद बताया था।