जस्टिस देसाई प्रेस काउंसिल की अध्यक्ष बनीं, अब क्या होगा कॉमन सिविल कोड का ?
-जयसिंह रावत
केंद्र सरकार ने न्यायमूर्ति श्रीमती रंजना प्रकाश देसाई को भारतीय प्रेस परिषद का अध्यक्ष नियुक्त किया। श्रीमती जस्टिस देसाई उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं। रंजना देसाई सुप्रीम कोर्ट की रिटायर्ड जज हैं. रंजना उत्तराखंड के कॉमन सिविल कोड लागू करने के लिए बनाई गई कमेटी की अध्यक्ष भी हैं.
न्यायमूर्ति रंजना देसाई के भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष पद पर नियुक्त होने के बाद अब सवाल खड़ा हो गया है कि उत्तराखण्ड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता कानून का ड्राफ्ट बनाने के लिये गठित विशेषज्ञ समिति का नेतृत्व कौन करेगा। जज देसाई को उत्तराखण्ड सरकार ने पिछले ही महीने 28 मई को इस कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त किया था। इसलिये नया सवाल उठता है कि जस्टिस रंजना देसाई की नियुक्ति से पहले क्या उत्तराखण्ड सरकार ने उनसे अनुमति ली थी या नहीं। अगर नहीं ली थी तो एक ढकोसले के लिये सरकार ने दूसरा ढकोसला क्यों किया। चूंकि संसद द्वारा पारित और मान्य वैयक्तिक कानूनों के चलते उत्तराखण्ड सरकार को नया कानून लागू करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 254 के अनुसार हिन्दू विवाह अधिनियम, उत्तराधिकार अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लॉ और क्रिश्चियन पर्सनल लॉ को समाप्त किये बिना किसी भी राज्य सरकार को इस दिशा में अपना कानून लागू करने का अधिकार ही नहीं है। सामान्य सी बात है कि संसद द्वारा पारित कानूनों को संसद ही समाप्त कर सकती है या संशोधित कर सकती है। इसलिये उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता की घोषणा मात्र एक ढकोसला थी और उस ढकोसले को जीवित रखने के लिये कमेटी का गठन करना दूसरा ढकोसला था। अब सरकार को दूसरे ढकोसले को जीवित रखने के लिये तीसरा ढकोसला करना पड़ेगा। जस्टिस देसाई की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने एक महीने में क्या किया, यह उत्तराखण्ड सरकार भी नहीं जानती।
उनके अलावा रिटायर जज प्रमोद कोहली के साथ सामाजिक कार्यकर्ता मनु गौर, पूर्व मुख्य सचिव शत्रुघ्न सिंह और दून विश्वविद्यालय की कुलपति सुरेखा डंगवाल को बतौर सदस्य कमेटी में जगह दी गई है। यह कमेटी उत्तराखंड में प्रस्तावित यूनिफार्म सिविल कोड का ड्राफ्ट बनाकर राज्य सरकार को सौंपना था।
न्यायमूर्ति रंजना देसाई जम्मू-कश्मीर के लिये गठित परिसीमन आयोग की अध्यक्ष भी रही हैं और इस आयोग की सिफारिशों से कश्मीरियों में बेचैनी साफ नजर आती है। विपक्षी दल परिसीमन आयोग की निष्पक्षता पर निरन्तर ऊंगली उठाते रहे हैं। न्यायमूर्ति देसाई वही जज हैं जिन्होंने न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर के साथ वाली बेंच में 2022 तक हज यात्रियों को दी जाने वाली सबसिडी बन्द करने के आदेश दिये थे। उन्हें वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत होने के तत्काल बाद से निरन्तर बड़े-बड़े पदों पर आसीन किया जाता रहा। वह 2014 से लेकर 2017 तक बिजली के अपीलीय न्यायाधिकरण की अध्यक्ष रहीं। कुछ ही महीनों के अन्तराल में उन्हें 2018 में आयकर की एडवांस रूलिंग अथारिटी की अध्यक्ष बनाया गया। इस पद पर वह 2019 तक रहीं। इसी दौरान लोकपाल का गठन होना था, इसलिये मोदी सरकार ने 28 सितम्बर 2018 को उन्हें लोकपाल सर्च कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। यह बात छिपी नहीं है कि किसी भी राजनीतिक दल की सरकार लोकपाल, सीएजी या निर्वाचन आयुक्त जैसे पदों पर ऐसे व्यक्ति को चाहती है जो कि सरकार के लिये परेशानी खड़ी न करे। इस कमेटी ने 28 फरबरी 2020 को अपनी रिपोर्ट दी तो अगले ही महीने 13 दिन के अन्तराल में न्यायमूर्ति देसाई को जम्मू-कश्मीर के लिये गठित परिसीमन आयोग का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया। परिसीमन की रिपोर्ट देने के बाद उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार ने 28 मई को कॉमन सिविल कोड का ड्राफ्ट बनाने वाली कमेटी का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया। कमेटी ने काम शुरू भी नहीं किया था कि मोदी सरकार ने उन्हें 17 जून को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष पदपर नियुक्त कर दिया। इस पद पर पूर्व जज सी.के. प्रसाद थे, जिनका कार्यकाल 21 नवम्बर 2021 को समाप्त हो गया। तब से परिषद बिना अध्यक्ष के थी। इस पद का चयन उपराष्ट्रपति की अध्यक्षता वालीकमेटी करती है जिसमें लोकसभा अध्यक्ष भी सदस्य होते हैं।