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बाल विवाह को लेकर उत्तराखंड सरकार सख्त ; अक्षय तृतीय पर नहीं होने देंगे बच्चों की शादियां

 

  • इस अक्षय तृतीया बाल विवाह की रोकथाम के लिए तैयार उत्तराखंड सरकार, बाल विवाह मुक्त भारत अभियान भी प्रयासों में शामिल
  • मुख्य सचिव ने अक्षय तृतीया के दौरान बाल विवाहों पर पंचायत प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय करने के निर्देश दिये 
  • अधिकारियों को जनजागरूकता अभियान चलाने को कहा
  • बाल विवाह मुक्त भारत अभियान 161 गैरसरकारी संगठनों का एक गठबंधन है, जो बाल विवाह की रोकथाम के प्रयासों में सरकार का पूरा सहयोग कर रहा है

 

देहरादून, 8 मई। उत्तराखंड सरकार ने सभी जिलाधिकारियों और पंचायती राज अधिकारियों को पत्र लिखकर अक्षय तृतीया के बाल विवाह होने पर उन्हें पंचायत प्रतिनिधियों की जवाबदेही तय करने के निर्देश दिए हैं। देश से 2030 तक बाल विवाह के खात्मे के लक्ष्य के साथ राष्ट्रीय औसत से अधिक बाल विवाह की दर वाले देश के 257 जिलों में इसके उन्मूलन के लिए जमीन पर काम कर रहे 161 गैरसरकारी संगठनों के गठबंधन बाल विवाह विवाह मुक्त भारत अभियान ने राज्य सरकार की इस पहल जो राज्य को बाल विवाह मुक्त बना सकती है, का स्वागत करते हुए कहा कि वह इन प्रयासों में हरसंभव सहयोग को तैयार है।

 

राज्य के मुख्य सचिव के कार्यालय से इस बाबत जारी अधिसूचना में कहा गया है कि इस बार अक्षय तृतीया 10 मई को पड़ रही है और इसे विवाह के लिए शुभ दिन मानते हुए इस दिन बड़े पैमाने पर बाल विवाह होते हैं। परिपत्र में कहा गया है, “अक्षय तृतीया पर बाल विवाहों को रोकने के लिए ग्राम पंचायतों और स्थानीय निकायों में जनजागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए और इस दौरान लोगों को बाल विवाह के नाबालिग बच्ची के स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए। फिर भी यदि कोई बाल विवाह होते हैं तो इसकी जानकारी तत्काल ग्राम पंचायतों और स्थानीय निकायों के अधिकारियों को दी जानी चाहिए जो उत्तराखंड अनिवार्य विवाह पंजीकरण अदिनियम 2016 पर अमल सुनिश्चित करने के लिए इसकी जानकारी पुलिस या बाल विवाह निषेध अधिकारी (सीएमपीओ) को देंगे।”

अधिसूचना जारी कर और इस परिपत्र को सभी जिलों के अधिकारियों को भेज कर उत्तराखंड सरकार यह सुनिश्चत करने के प्रयास कर रही है कि अक्षय तृतीया के अवसर पर कहीं भी बाल विवाह नहीं होने पाए।

अधिसूचना में कहा गया है कि राज्य में कहीं भी कोई विवाह हो रहा है तो उसका अनिवार्य पंजीकरण अधिनियम 2012 के तहत पंजीकरण अनिवार्य है।

मुख्य सचिव के कार्यालय से जारी आदेश में कहा गया है, जिलाधिकारी अपने जिले के पंचायत प्रतिनिधियों के साथ बैठक में यह सुनिश्चित करें कि इस दौरान बाल विवाह और इसका नाबालिग बच्ची के स्वास्थ्य पर होने वाले दुष्परिणामों पर मुख्य रूप से चर्चा की जाए और लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाए।

राज्य के सभी जिला कार्यक्रम अधिकारियों व संरक्षण सह निषेध अधिकारियों को भेजे गए इस पत्र में कहा गया गया है कि तात्कालिक कदम के रूप में गांवों में जागरूकता अभियान आयोजित होने चाहिए और इस दौरान पंचायत प्रतिनिधियों, सभी धर्मों के पुरोहितों और पुलिस अफसरों के साथ बड़े पैमाने पर संपर्क करने और उन्हें जागरूक करने की जरूरत है।

बाल विवाह को रोकने के लिए इस वर्ष उत्तराखंड सरकार के कड़े रुख की सराहना करते हुए बाल विवाह मुक्त भारत अभियान के संयोजक रवि कांत ने कहा, “ बाल विवाह की चुनौती से निपटने के लिए उत्तराखंड सरकार का बहुआयामी दृष्टिकोण सरकार की प्रतिबद्धता और इस मुद्दे पर उसकी समझ का परिचायक है। जब राज्य सरकारें इस तरह के कदम उठाएंगी तभी हम बाल विवाह के अपराध को अपने सामाजिक ताने-बाने से शीघ्रता से और प्रभावी तरीके से खत्म करने में कामयाब होंगे। उत्तराखंड लगातार इस बुराई के खिलाफ संघर्ष कर रहा है और उसने उल्लेखनीय नतीजे हासिल किए हैं। अक्षय तृतीया के मौके पर जारी निर्देश बाल विवाह मुक्त उत्तराखंड के सपने को हकीकत में बदलने में सुनिश्चित करने में सहायक होगा।”

बाल विवाह मुक्त भारत अभियान अपने सहयोगी संगठनों के साथ मिलकर देश में बाल विवाह के राष्ट्रीय औसत से ज्यादा दर वाले जिलों में बाल विवाह के खिलाफ अभियान चला रहा है। ये सहयोगी गैरसरकारी संगठन बाल अधिकार कार्यकर्ता भुवन ऋभु की बेस्टसेलर किताब ‘व्हेन चिल्ड्रेन हैव चिल्ड्रेन : टिपिंग प्वाइंट टू इंड चाइल्ड मैरेज’ में सुझाई गई रणनीतियों और कार्ययोजना को अंगीकार करते हुए उस पर अमल कर रहे हैं।

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (एनएफएचएस 2019-21) के आंकड़ों के अनुसार देश में 20 से 24 आयुवर्ग की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष की होने से पहले ही हो गया था जबकि उत्तराखंड में यह दर 9.8 प्रतिशत है जो राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है।

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