अदालत के आदेश पर भी नहीं बनेगा उत्तराखंड में लोकायुक्त
–जयसिंह रावत
नैनीताल हाई कोर्ट ने 8 सप्ताह के अंदर उत्तराहण्ड में लोकयुक्त् के गठन का आदेश तो दे दिया मगर आदेश का पालन होता नहीं दिखता। अगर अदालत के आदेश पर लोकायुक्त बनाना होता तो इससे पहले सुप्रीम कोर्ट 3 महीने के अंदर लोकायुक्त के गठन का आदेश दे चुका था। उस समय भी कहा गया था कि मामला विधानसभा की प्रवर समिति के पास है। अदालत सरकार को तो आदेश दे सकती है मगर विधान सभा को नहीं दे सकती। लिहाजा अदालत के आदेश का पालन न करने का जो आधार या कारण पहले था वही आधार अब भी है।
जबकि पिछली विधानसभा में लोकायुक्त एक्ट को लेकर प्रकाश पंत की अध्यक्षता में गठित प्रवर समिति अपनी रिपोर्ट कई साल पहले दे चुकी थी और विधेयक का मसौदा विधानसभा की आलमारी में वह बंद है। उस समिति में महेन्द्र भट्ट जी भी थे।
उत्तराखंड में लोकायुक्त कार्यालय है जिस पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है, मगर उसमे लोकायुक्त नहीं है। जो लूला लंगड़ा लोकायुक्त पहले था वह भी 2013 से नहीं है। सन 2016 में जिस नये लोकायुक्त का गठन किया गया था उसकी हत्या बेहतर खंडूरी मॉडल के लोकायुक्त के नाम पर कर दी गयी और वह खंडूरी मॉडल का लोकायुक्त धरती पर उतारने के बजाय विधान सभा में फंसा दिया गया। ऐसे में कैसे कहा जा सकता है कि उत्तराखंड कभी भ्र्ष्टाचार मुक्त हो सकेगा। क्योंकि भ्रष्टाचार की गंगोत्री राजनीति, नौकरशाही और माफिया तंत्र के गठजोड़ से निकलती है।