21वीं सदी के आधुनिक साहित्यरत्न में शुमार हुई उत्तराखंड की नवोदित कवियत्री सुशीला राजपूत
–दिनेश शास्त्री —
समाज को स्वस्थ, कलात्मक, ज्ञानवर्धक और मनोरंजन प्रदान करने के उपक्रम को साहित्य कहा जाता है, दूसरे शब्दों में हित के सहित जो कुछ प्रस्तुत किया जाता है, उसे साहित्य कहा जाता है या फिर जिस उपक्रम से सामाजिक संस्कारों का परिष्कार होता है, वह साहित्य है। निसंदेह रचनाएँ समाज की धार्मिक भावना, भक्ति, समाजसेवा के माध्यम से मूल्यों के संदर्भ में मनुष्य हित की सर्वोच्चता का अनुसंधान करती हैं। यही दृष्टिकोण साहित्य को मानव जीवन के लिये उपयोगी सिद्ध करते हैं। इस दृष्टि से साहित्य का फलक बहुआयामी है और उसमें पद्य की बात हो तो वह ज्यादा रुचिकर होता है।
देहरादून की श्रीमती सुशीला राजपूत ने सृजन की इस सरिता में अपनी उपस्थिति दमदार तरीके से दर्ज की है। उन्हें सुमंगला सुमन द्वारा हाल में प्रकाशित 21वीं सदी के आधुनिक साहित्य रत्न पुस्तक में स्थान दिया गया है। देशभर के कुल 134 नवोदित साहित्यकारों के जीवनवृत्त को संग्रहीत और प्रतिबिंबित करने वाली इस पुस्तक में स्थान मिला है। श्रीमती सुशीला राजपूत की उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस पुस्तक में उत्तराखंड के कुल तीन नवोदित साहित्यकारों को स्थान मिला है, जिसमें सुशीला राजपूत भी एक हैं।
श्रीमती सुशीला राजपूत पिछले वर्ष ही उत्तराखंड के शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हुई हैं। वे देहरादून जिले में डोईवाला प्रखंड के अंतर्गत चक जोगीवाला राजकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की प्रधानाचार्य थीं। क्षेत्र में एक उत्कृष्ट शिक्षिका के रूप में उनकी ख्याति रही है और प्रदेश के जिन – जिन भागों में वे अपने सेवाकाल के दौरान कार्यरत रही, उन सभी जगहों पर लोग उनके स्नेहिल व्यवहार के कारण आज भी सम्मान के साथ उन्हें याद करते हैं। एक तरह से यह सुशीला की बड़ी पूंजी है और यही व्यवहार उनके द्वारा सृजित साहित्य में भी झलकता है।
मूलत: अर्थशास्त्र की शिक्षिका सुशीला राजपूत वैसे तो कॉलेज टाइम से ही छिटपुट लिखती रही। सेवाकाल के दौरान वे अपने मन के भावों को साहित्य के प्रतिष्ठित मंच “जयदीप” पत्रिका के माध्यम से निरंतर प्रस्तुत करती रही, किंतु सेवानिवृत्त होते ही उनका लेखन पूर्णकालिक सा हो गया। उनका सद्य प्रकाशित कविता संग्रह “उम्मीदों के काफिले” काफी चर्चित रहा है। साहित्यिक क्षेत्रों में इस कविता संग्रह को शिद्दत के साथ सराहा गया।
श्रीमती सुशीला राजपूत की कविताओं में मूलत: प्रकृति, प्रेम और मानव मन की कोमल भावनाओं के सहज दर्शन होते हैं। छायावाद की यह एक स्थापित विधा भी है और इसी दिशा में उनका रचनाकर्म परिलक्षित भी होता है।
अभी हाल में एक टीवी चैनल ने उनके कविता संग्रह को लेकर उनका साक्षात्कार भी लिया, जिसमें पहाड़ में वसंत ऋतु के सूचक फ्योंली पुष्प का विशेष रूप से उल्लेख हुआ था। वे कहती हैं कि फ्यूंली उत्तराखंड के परिवेश की कोमलता का प्रतिबिंब है। यहां के लोगों के मृदुल भाव को दर्शाने के लिए फ्यूंली पर्याप्त है। इसीलिए बच्चों के वसंत फुलदेई पर्व पर सर्वाधिक महत्व फ्यूंली को ही प्राप्त है।
श्रीमती सुशीला राजपूत को इससे पहले कई सम्मानों से सम्मानित किया गया है। श्री सत्य इंदिरा फाउंडेशन ने उन्हें अपने यहां संरक्षक के रूप में जोड़ा। इसके अलावा उन्हें साथ हिमालय रत्न जैसे अनेक सम्मानों सुशोभित किया जा चुका है। अनेक साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ी होने के कारण उन्हें अक्सर साहित्य साधना में व्यस्त देखा जा सकता है। उनकी इस उपलब्धि पर प्रदेश के अनेक साहित्यसेवियों और साहित्यप्रेमियों ने उन्हें बधाई दी है। सुशीला राजपूत का जन्म स्थान पौड़ी है, और साहित्यिक क्षेत्र में पौड़ी का शुरू से विशिष्ट स्थान रहा है, इसलिए वहां से उन्हें विशेष तौर पर सराहा जाना स्वाभाविक भी था। उनकी इस उपलब्धि को लेकर मित्रों ने भी प्रसन्नता व्यक्त की है।