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चीन में 6 माह तक युद्ध बंदी रहे बहादुर सैनिक बलवंत सिंह बिष्ट नहीं रहे

-रिपोर्ट-हरेंद्र बिष्ट —
थराली, 25 मार्च।  भारत—चीन के बीच 1962 में हुए रण के योद्धा महावीर चक्र विजेता (मरणोपरांत) शहीद साथी रहे नायक बलवंत सिंह बिष्ट अब इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने शनिवार को अंतिम सांस ली। उनकी उम्र 86 साल थी। वह पिछले कुछ समय से अस्वस्थ्य चल रहे थे। मूलरूप से चमोली जिले के दूरस्थ गांव घेस निवासी बलवंत सिंह वर्तमान में अपने बड़े बेटे अर्जुन सिंह बिष्ट के साथ देहरादून के लोअर नत्थनपुर स्थित श्री सिद्ध विहार कालोनी में रह रहे थे। उनका छोटा बेटा लक्ष्मण सिंह बिष्ट चौथी गढ़वाल राइफल्स में सुबेदार मेजर पद पर तैनात हैं।

भारत—चीन युद्ध के बाद वर्ष 1971 के भारत—पाक युद्ध में भी दुश्मनों के दांत खटे करने वाले नायब बलवंत सिंह अपने पीछे दो बेटों व एक बेटी का भरा—पूरा परिवार छोड़ गए। प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी श्री सिद्ध विहार कालोनी स्थित आवास पहुंचकर उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प चढ़ाकर कर श्रद्धांजलि अर्पित की। महावीर चक्र विजेता बाबा जसवंत सिंह के साथी रहे नायक बलवंत सिंह के निधन पर सीएम ने दुख जताया। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की शांति व शोक संतृप्त परिजनों को धैर्य प्रदान करने की ईश्वर से कामना की। कहा कि भारत—चीन व भारत—पाक युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाले नायक बलवंत सिंह के साहस व वीरता को वह नमन करते हैं। उनकी बहादुरी को कभी भुलाया नहीं जाएगा। वहीं, सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी, कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज, कैबिनेट मंत्री डॉ धन सिंह रावत, कैबिनेट मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेन्द्र भट्ट, पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण महरा, थराली विस क्षेत्र के विधायक भूपाल राम टम्टा, विधायक उमेश शर्मा काऊ, सूचना महानिदेशक बंशीधर भगत आदि ने भी वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन बिष्ट के पिता के आकस्मिक निधन पर दुख जताया।
पारिवारिक सदस्यों से मिली जानकारी के अनुसार उनका अंतिम संस्कार रविवार को हरिद्वार में किया जाएगा। उलेखनीय है कि 1962 के भारत—चीन युद्ध में महावीर चक्र विजेता बाबा जसवंत सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दुश्मन सेना से दो—दो हाथ करने वाले नायक बलवंत सिंह बिष्ट का जीवन बड़ा ही जीवट रहा है। वर्ष 1959 में वह चौथी गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हुए थे। इसके तीन साल बाद भारत—चीन युद्ध में उन्होंने भाग लिया। बाबा जसवंत सिंह व नायक बलवंत सिंह एक ही सेक्शन में थे, लिहाजा युद्ध के मोर्चे पर भी साथ—साथ तैनात रहे। इस युद्ध में जसवंत सिंह शहीद हो गए और नायक बलवंत सिंह को छह महीने तक चीन में युद्ध बंदी रहना पड़ा था। वर्ष 1965 के भारत—पाक युद्ध में भाग लेने के बाद वह 1969 में रिजर्व सेवानिवृत्त हो गए। पर 1971 में भारत—पाक के बीच युद्ध होने पर उन्हें फिर वापस सेना में बुलाया गया। सेना से रिटायर होने के बाद वह दो बार घेस—हिमनी गांव के प्रधान भी रहे। इस दौरान उन्होंने गांव में जूनियर हाईस्कूल व चार बेड का आयुर्वेद अस्पताल खोलने के लिए भरसक प्रयास किया। प्रधान पद से त्यागपत्र देने के बाद वह वर्ष 1979 में फिर डीएसी में भर्ती हो गए और पंद्रह साल की सेवा के उपरांत 1993 में सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद वह गांव में ही रहकर सामाजिक कार्यों को आगे बढ़ाने लगे। साढ़े आठ दशक तक जीवन के विविध पहलुआें से बेहद करीब से रूबरू हुए नायब बलवंत सिंह अब इस दुनिया में नहीं रहे

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