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विक्रांत का अत्याधुनिक पुनरावतरण : 1971 के युद्ध में जिसने करांची को किया था बर्बाद

नयी दिल्ली, 2  सितम्बर ।  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 02 सितंबर, 2022 को कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) में स्वदेशी निर्माण में देश की बढ़ती शक्ति और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक प्रमुख पड़ाव के प्रतीक के रूप में देश के पहले स्वदेशी वायुयान वाहक पोत आईएनएस विक्रांत को राष्ट्र की सेवा में समर्पित किया।

प्रधानमंत्री ने कहा कि विक्रांत जब हमारे समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा के लिये उतरेगा, तो उस पर नौसेना की अनेक महिला सैनिक भी तैनात रहेंगी। समंदर की अथाह शक्ति के साथ असीम महिला शक्ति, ये नये भारत की बुलंद पहचान बन रही है। अब भारतीय नौसेना ने अपनी सभी शाखाओं को महिलाओं के लिये खोलने का फैसला किया है। जो पाबंदियां थीं, वे अब हट रही हैं। जैसे समर्थ लहरों के लिये कोई दायरे नहीं होते, वैसे ही भारत की बेटियों के लिये भी अब कोई दायरा या बंधन नहीं होंगे।

अपने सम्बोधन में रक्षामंत्री श्री राजनाथ सिंह ने कहा कि ‘अमृतकाल’ के आरंभ में आईएनएस विक्रांत को राष्ट्र-सेवा में समर्पित करना सरकार के उस दृढ़ संकल्प का परिचायक है कि सरकार अगले 25 वर्षों में देश की सुरक्षा और संरक्षा को सुनिश्चित करेगी। उन्होंने कहा, “आईएनएस विक्रांत आकांक्षी और आत्मनिर्भर ‘नये भारत’ का प्रकाशवान प्रतीक है। वह राष्ट्र के गौरव, शक्ति और संकल्प का प्रतीक है। उसे राष्ट्र-सेवा में समर्पित करना स्वदेशी युद्धपोतों के निर्माण की दिशा में एक अभूतपूर्व उपलब्धि है। भारतीय सेना की परंपरा है कि ‘पुराने जहाज कभी मरते नहीं।’ विक्रांत का यह नया अवतार, जिसने 1971 के युद्ध में शानदार भूमिका निभाई थी, हमारे स्वतंत्रता सेनानियों तथा वीर सैनिकों के प्रति हमारी विनम्र श्रद्धांजलि है।”

इस अवसर पर, नौसेनाध्यक्ष एडमिरल आर. हरि कुमार ने 2047 तक देश के पूरी तरह आत्मनिर्भर बन जाने के हवाले से इंडिया@100 के लिये अपनी प्रतिबद्धता का उल्लेख किया। इसके तहत ‘मेड इन इंडिया’ पोत, पनडुब्बियां, विमान, चालक रहित जहाज और प्रणालियां तथा हमेशा ‘कॉम्बैट रेडी, क्रेडिबल, कोहेसिव एंड फ्यूचर-प्रूफ फोर्स’ की अवधारणा शामिल है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की परिकल्पना के अनुरूप नौसेना पांच संकल्पों पर आगे बढ़ने के लिये प्रतिबद्ध है – विकसित भारत, गुलामी के निशानों को दूर करना, विरासत के प्रति गर्व, एकता और कर्तव्य निर्वहन।

नौसेनाध्यक्ष ने पूर्ववर्ती विक्रांत की गौरवशाली विरासत को आगे ले जाने के लिये आईएनएस विक्रांत के कमांडिंग ऑफिसर और नौसेना दल की सराहना की। उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती विक्रांत का राष्ट्र-सेवा का 36 वर्षों का गौरवशाली इतिहास रहा है तथा उसने 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

आईएनएस विक्रांत के बारे में

आईएनएस विक्रांत को राष्ट्र-सेवा में समर्पत करना राष्ट्र के लिये गौरवशाली क्षण है, क्योंकि  इसके जरिये ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ के दौरान ‘आत्मनिर्भर’ भावना परिलक्षित होती है। हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में यह देश के जोशो-खरोश का सच्चा परिचायक है। राष्ट्र-सेवा में इसके समर्पित होने के साथ ही भारत उन चुनिंदा राष्ट्रों के समूह में शामिल हो गया है, जिनके पास स्वदेशी स्तर पर विमान वाहक पोत की डिजाइन तैयार करने तथा उनके निर्माण की क्षमता है। यह राष्ट्र के आत्मनिर्भर और ‘मेक इन इंडिया’ के संकल्प का सच्चा प्रमाण है।

आईएनएस विक्रांत का डिजाइन भारतीय नौसेना की अपनी संस्था वॉरशिप डिजाइन ब्यूरो ने तैयार किया है तथा इसका निर्माण पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र की शिपयार्ड कंपनी, कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने किया है। विक्रांत का निर्माण अत्याधुनिक स्वचालित विशेषताओं से लैस है और वह भारत के समुद्री इतिहास में अब तक का सबसे विशाल निर्मित पोत है।

262.5 मीटर लंबा और 61.6 मीटर चौड़ा विक्रांत का वजन लगभग 43,000 टन है। इसकी अधिकतम रफ्तार 28 नॉट की बनाई गई है और यह 7,500 नॉटिकल माइल तक की रफ्तार झेल सकता है। पोत में 2,200 कंपार्टमेंट हैं, जिसमें महिला अफसरों और नाविकों को मिलाकर लगभग 1600 कर्मी रह सकते हैं। पोत को यांत्रिक संचालन, नौवहन और हर स्थिति का सामना करने के योग्य बनाया गया है, जिसके लिये उच्च कोटि की मशीनें लगाई गई हैं। विमान वाहक को उत्कृष्ट उपकरणों और प्रणालियों से लैस किया गया है।

यह पोत वायु यान संचालन की क्षमता रखता है और इसके तहत 30 वायु यान आते हैं, जिनमें मिग-29के युद्धक विमान, कामोव-31, एमएच-60आर बहुउद्देशीय हेलीकॉप्टर शामिल हैं। इनके अलावा स्वदेशी स्तर निर्मित उन्नत हल्के हेलीकॉप्टर और हल्के युद्धक विमान (नौसेना) को भी शामिल किया गया है। शॉर्ट टेक-ऑफ बट एरेस्टेड रिकवरी (स्टोबार) नामक एक नई वायुयान संचालन प्रणाली का इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह आईएनएस विक्रांत को लॉन्चिंग एयरक्राफ्ट के लिये एक स्की-जम्प तथा विमानों के पोत पर ही रोकने के लिये ‘अरेस्टर वायर्स’ से भी लैस किया गया है।

आईएनएस में 76 प्रतिशत स्वदेशी सामान लगा है। इस तरह सीएसएल के दो हजार से अधिक कर्मचारियों को सीधे रोजगार मिला। इसके साथ ही 550 ओईएम के लिये लगभग 12,500 कर्मचारियों, उप-ठेकेदारों, सहायक उद्योगों और 100 से अधिक सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को भी काम मिला। इस तरह अर्थव्यवस्था पर इसका रचनात्मक प्रभाव हुआ।

नौसेना का नया निशान

औपनिवेशिक अतीत के बोझ से छुटकारा पाने के क्रम में देश के वर्तमान प्रयासों के मद्देनजर इस बात की जरूरत महसूस की गई कि अपने इतिहास से प्रेरित कोई नया डिजाइन तैयार किया जाये। सफेद निशान नौसेना की राष्ट्रव्यापी उपस्थिति का प्रतीक है। अब उसमें दो प्रमुख घटक जुड़ गये हैं– ऊपर बाईं तरफ राष्ट्रीय ध्वज, बीच में गहरा नीला– स्वर्ण अष्टभुजा आकार (स्तंभ से हटकर) बना है। अष्टभुजा आकार में दो दोहरे स्वर्ण अष्टकोणीय छोर बने हैं, जो स्वर्ण राष्ट्रीय चिह्न (अशोक का सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष) स्थित है। नीले रंग में देवनागरी लिपि में ‘सत्यमेव जयते’ अंकित है। इसे एक ढाल पर अंकित किया गया है। ढाल के नीचे, अष्टभुजाकार के भीतर, सुनहरे किनारे वाला रिबन बना है, जो गहरे नीले रंग के ऊपर है। वहां सुनहरे अक्षरों में भारतीय नौसेना का ध्येय-वाक्य ‘शं नो वरुणः’ लिखा है। डिजाइन के तहत अष्टभुजाकार के भीतर भारतीय नौसेना की कलगी, लंगर बना था, जो औपनिवेशिक अतीत से जुड़ा था। इसके स्थान पर अब स्पष्ट लंगर बना है, जो भारतीय नौसेना की दृढ़ता का प्रतीक है।

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