आराध्य देवी की उत्सव यात्रा का मार्ग चढ़ा विकास की भेंट ; पौराणिक संस्कृति हो रही प्रभावित
-गौचर से दिग्पाल गुसांईं-
पालिका क्षेत्र के सात गांवों की आराध्य देवी की उत्सव यात्रा का मार्ग विकास की भेंट चढ़ने से इस यात्रा के लिए रास्तों का संकट पैदा हो गया है। इससे इस यात्रा की पौराणिक संस्कृति भी प्रभावित हुई है।
पालिका क्षेत्र के सात गांवों की आराध्य देवी का मूल मंदिर भटनगर गांव की सीमा पर अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। भटनगर गांव निवासी देवी के ससुराली माने जाते हैं। पनाईं मल्ली तल्ली रावलनगर मल्ला तल्ला बंदरखंड आदि गांव मायके पक्ष तथा शैल गांव के शैली पंडित देवी के गुरु माने जाते हैं।
पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार क्षेत्र के सात गांवों की आराध्य देवी कांलिका को मायके पक्ष के लोग नंदाष्टमी के दिन पूजा अर्चना के लिए मायके के मंदिर में लाते रहे हैं। तब देवी के मायके मंदिर में आने का रास्ता भटनगर तोक की जमीन के बीचों बीच से होकर पनाई सेरे की जमीन में गुजरता था देवी की यह यात्रा उस समय निकलती है जब दोनों तोकों की जमीन फसलों से लबालव होती थी। तब यात्रा फसलों को रौंदते हुए मंदिर तक पहुंचती थी। तब किसी को ऐतराज भी नहीं होता था माना जाता था कि जिन खेतों से होकर देवी की यात्रा गुजरती है उन खेतों में फसल भी अच्छी होती है।
मायके पक्ष के मंदिर के समीप एक ऐसा स्थान भी था जहां देवी को मुर्छा आ जाती थी तब बलि देकर देबी मुर्छा की हटाई जाती थी। यह स्थान गौचर हवाई पट्टी की भेंट चढ़ गया है। ऐसा ही यात्रा के इतिहास से जुड़ा हुआ स्थान भटनगर तोक में भी था। बताया जाता है कि इस पर यात्रा के दौरान देवी का गहना खो गया था। इस स्थान देवी घूम घूम कर अपना गहना ढूंढती है यह स्थान भी अब ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन की भेंट चढ़ गया है।
यही नहीं मूल मंदिर भी डंपिंग जोन के जद में है। बताया तो यह भी जा रहा है कि धारी देवी की तर्ज पर मंदिर को ऊपर उठाया जाएगा।यह भी भविष्य के गर्भ में है। मायके का मंदिर हवाई पट्टी से सटा होने की वजह से इसे भी अन्यत्र शिफ्ट करने की कार्यवाही गतिमान है। इस तरह से देवी की इस यात्रा का इतिहास विलुप्त होने की कगार पर अग्रसर है