कोरोना मौतों पर घिरी मोदी सरकार : डब्ल्यूएचओ का दावा भारत में 4.47 लाख नहीं 47 लाख मरे थे: आखिर सच्चा कौन और झूठा कौन?
–जयसिंह रावत
भारत में कोरोना मौतों को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और भारत सरकार के बीच विवाद खड़ा हो गया है। भारत का दावा है कि कोरोना से 2 साल में केवल 4 . 47 भारतीयों की मौतें हुईं जबकि WHO ने भारत के दावे को ख़ारिज करते हुए देश में कम से कम 47 लाख लोगों के मरने का दावा किया है। यही नहीं WHO के एक विशेषज्ञ ने तो अपने ही संगठन के 47 लाख के दावे को कम बताया है। भारत में भी कई सगठन मोदी सरकार पर अपनी छवि बचाने के लिए सच्चाई छिपाने का आरोप लगाते रहे हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि भारत में कोरोना से 47 लाख लोगों की मौत हुई है. ये संख्या आधिकारिक आँकड़ों से क़रीब 10 गुना ज़्यादा है. हालाँकि, भारत सरकार ने उनके इस दावे पर सवाल उठाए हैं. डब्ल्यूएचओ का आकलन है कि कोरोना महामारी के कारण अभी तक दुनिया में क़रीब डेढ़ करोड़ लोगों की मौत हुई है.
डब्ल्यूएचओ से ही जुड़े महामारीविद एरिक फेल-डिंग ने डीडब्ल्यू को बताया कि इन दो सालों में करीब 1.5 करोड़ लोगों के कोविड से मारे जाने का संगठन का अनुमान बहुत ‘कंजर्वेटिव’ है. फेल-डिंग संगठन की ही कोविड-19 पर विशेषज्ञ समिति के सदस्य हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत का संगठन की रिपोर्ट को ब्लॉक करने की कोशिश करना दिखाता है कि कैसे राजनीति जन स्वास्थ्य के आड़े आ रही है. फेल-डिंग ने कहा, “मुझे लगता है कि कई विकासशील देशों के पास अमीर देशों के जैसी अच्छी, सुदृढ़ स्वास्थ्य प्रणालियां नहीं हैं और वो आसानी से संकट में डूब जाती हैं.”
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का अनुमान है कि पिछले दो वर्षों में लगभग 1.5 करोड़ लोगों ने या तो कोरोना वायरस से या स्वास्थ्य प्रणालियों पर पड़े इसके प्रभाव के कारण जान गंवाई है। विभिन्न देशों द्वारा मुहैया कराए गए आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 60 लाख मौत के दोगुने से अधिक है।इनमें से ज्यादातर मौतें दक्षिण पूर्व एशिया, यूरोप और अमेरिका में हुईं हैं। वहीं भारत में ये आंकड़ा 47 लाख है। ये संख्या आधिकारिक आंकड़ों से करीब 10 गुना ज़्यादा है।
गौरतलब है कि डब्ल्यूएचओ के तहत वैज्ञानिकों को जनवरी 2020 और पिछले साल के अंत तक मौत की वास्तविक संख्या का आकलन करने की जिम्मेदारी दी गई थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक 1.33 करोड़ से लेकर 1.66 करोड़ लोगों की मौत या तो कोरोना वायरस या स्वास्थ्य सेवा पर पड़े इसके प्रभाव के कारण हुई। यह आंकड़ा देशों की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों और सांख्यिकी मॉडलिंग पर आधारित है। डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 से सीधे तौर पर मौत का विवरण नहीं मुहैया कराया है।
भारत सरकार की ओर से पीआईबी द्वारा जारी खंडन के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जिस गणितीय मॉडल के आधार पर ज्यादा मौतों की संख्या का अनुमान लगाया है, भारत लगातार उस कार्यप्रणाली पर आपत्ति जताता रहा है। इस मॉडलिंग अभ्यास की प्रक्रिया, कार्यप्रणाली और परिणाम पर भारत की आपत्ति के बावजूद, डब्ल्यूएचओ ने भारत की चिंताओं को दूर किए बगैर अतिरिक्त मृत्यु दर का अनुमान जारी कर दिया। भारत ने डब्ल्यूएचओ को यह भी सूचित किया था कि भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) द्वारा नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) के माध्यम से प्रकाशित प्रामाणिक डेटा की उपलब्धता को देखते हुए देश के लिए अधिक मृत्यु दर का अनुमान लगाने के लिए गणितीय मॉडल का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। भारत में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण की बेहद मजबूत प्रणाली है और यह दशकों पुराने वैधानिक कानूनी ढांचे यानी ‘जन्म और मृत्यु पंजीकरण अधिनियम, 1969’ के तहत संचालित होता है। नागरिक पंजीकरण डेटा के साथ-साथ आरजीआई द्वारा सालाना जारी किए जाने वाले नमूना पंजीकरण डेटा का इस्तेमाल घरेलू और वैश्विक दोनों स्तर पर बड़ी संख्या में शोधकर्ताओं, नीति निर्माताओं और वैज्ञानिकों द्वारा किया जाता है।
भारत सरकार के अनुसार अपने विशाल क्षेत्र, विविधता और 1.3 अरब की आबादी के कारण, जिस देश ने जगह और समय दोनों में महामारी की परिवर्तनशील गंभीरता को देखा है, भारत ने लगातार ‘एक तरीका सभी के लिए उपयुक्त’ वाले दृष्टिकोण और मॉडल के उपयोग पर आपत्ति जताई है, जो छोटे देशों पर तो लागू हो सकता है लेकिन भारत पर लागू नहीं हो सकता है। एक मॉडल में, भारत में आयु-लिंग वितरण, दूसरे देशों द्वारा रिपोर्ट किए गए अतिरिक्त मृत्यु दर के आयु-लिंग वितरण के आधार पर अनुमान लगा लिया गया जबकि जनसांख्यिकी और आकार के मामले में भारत से कोई तुलना ही नहीं हो सकती है। इतना ही नहीं, प्रामाणिक भारतीय स्रोत से उपलब्ध डेटा का इस्तेमाल करने के अनुरोध पर भी विचार नहीं किया गया। मॉडल ने तापमान और मृत्यु दर के बीच एक विपरीत संबंध का अनुमान लगाया, जिस पर भारत के बार-बार अनुरोध के बावजूद डब्ल्यूएचओ द्वारा कभी तथ्य सामने नहीं रखा गया।
भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) के कार्यालय के तहत नागरिक पंजीकरण प्रणाली (सीआरएस) रिपोर्ट-2020 में जारी आंकड़ों को अतिरिक्त मृत्यु दर पर रिपोर्ट तैयार करने के लिए डब्ल्यूएचओ से साझा किया गया था। प्रकाशन के लिए इस डेटा को डब्ल्यूएचओ को देने के बावजूद, डब्ल्यूएचओ ने भारत के उपलब्ध आंकड़ों की अनदेखी की, इसकी वजह उन्हें पता होगी। इसके बाद अत्यधिक मौतों के उन अनुमानों को प्रकाशित किया गया जिसकी पद्धति, डेटा के स्रोत और परिणामों पर भारत की ओर से लगातार सवाल उठाए गए हैं।
साल | अनुमानित मौतें | पंजीकृत मौतें | मृत्यु पंजीकरण का स्तर | पिछले वर्षों में दर्ज मौतों की संख्या में वृद्धि |
2018 | 82,12,576 | 69,50,607 | 84.6 % | 4,86,828 |
2019 | 83,01,769 | 76,41,076 | 92 % | 6,90,469 |
2020 | 81,20,268 | 81,15,882 | 99.9 % | 4,74,806 |