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टमाटर के आसमान छूते दामों का लाभार्थी कौन? आखिर क्यों हुआ टमाटर लाल ?

–दिनेश शास्त्री –
 प्याज के दामों को लेकर सरकार बनती – बिगड़ती रही हैं, आज वही तेवर टमाटर दिखा रहा है।  टमाटर क्यों लाल हुआ? इसकी पड़ताल की जानी चाहिए। गरीब आदमी की रसोई से टमाटर कब का विदाई ले चुका है। टमाटर का गणित भी लाजवाब है। जो किसान करीब चार माह की कठिन मेहनत के बाद फसल तैयार करता है, उसके हिस्से मामूली रकम ही आ पाती है जबकि जिस आढ़ती के पास टमाटर पहुंचता है, वह मात्र चार घंटे में मालामाल हो जाता है। यह सीधे तौर पर सरकार के विपणन तंत्र की विफलता ही है। चार महीने तक फसल तैयार करने वाला खाली हाथ और चार घंटे का सौदागर मालामाल। यह देखना बेशक सरकार के उच्च पदों पर बैठे लोगों की जिम्मेदारी न हो, लेकिन जमीनी स्तर पर जो मंडी समितियां बनाई गई हैं, वहां बेलगाम व्यवस्था दुरुस्त करने का काम कम से कम आम आदमी का तो नहीं है।
काश्तकार को लाभ हो, आम आदमी उसके लिए तत्पर रहता है लेकिन बीच के तंत्र को लूट की छूट की व्यवस्था तो स्वीकार्य नहीं हो सकती।
अभी तक खबरें यही आती थी कि पड़ोसी देश पाकिस्तान में ही टमाटर के दाम आसमान छू रहे हैं, लेकिन वह ताप आज खुद हम पूरे देश में देख रहे हैं। सौ से दो सौ रुपए किग्रा की दर से टमाटर बिक रहा है तो पड़ताल जरूरी हो जाती।
सिर्फ देहरादून की बात करें तो यहां का अपना कोई उत्पादन नहीं रह गया है। तेजी से पनप रहे कंक्रीट के जंगल ने खेती की जमीन को लील लिया है। जिले का जौनसार और उत्तरकाशी जिले की यमुना घाटी ही यहां की जरूरत पूरी करती है। बेमौसमी फसलों के उत्पादन में इन दोनों क्षेत्रों ने एक नया इतिहास रचा है। यह यहां के किसानों की कर्मठता का प्रमाण है लेकिन किसान से उपभोक्ता के बीच की चेन इतनी जटिल है कि आखिरकार उपभोक्ता ही लुटता है। हालांकि बचता तो किसान भी नहीं है किंतु अब थोड़ा व्यवस्था बदली है तो किसान के हाथ पाई पैसा आने लगा लेकिन उसके बावजूद मंडी के सौदागर ही ज्यादा मुनाफे में रहते आ रहे हैं।
आपको बता दें, हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर यानी हार्क ने बड़ी जद्दोजहद के बाद यमुना घाटी को सब्जी और खासकर टमाटर उत्पादन के लिए तैयार किया। हार्क के प्रमुख डा. महेंद्र सिंह कुंवर बताते हैं कि पिछले वर्ष यमुना घाटी के किसानों के खातों में अकेले टमाटर से 92 करोड़ रुपए आए थे, इस बार उत्पादन कम रहा, इससे भी दाम बढ़े हैं लेकिन लाख टके का सवाल यह है कि प्रदेश में भारी भरकम कृषि और बागवानी के विभाग किस मर्ज की दवा हैं कि वे प्लानिंग नहीं कर पाते? आप सवाल कर सकते हैं कि ये विभाग क्या हाथी के दांत हैं या इनकी कोई भूमिका होनी चाहिए।
बहुत कम लोग जानते हैं कि पिछले साल यमुना घाटी के किसानों को भारी नुकसान हुआ था। हाल यह रहा कि 25 किग्रा की क्रेट का दाम बीते साल बमुश्किल दो सौ रुपए ही मिल पाया था। घाटे का सौदा देखते हुए इस बार टमाटर उत्पादन में किसानों ने कम रुचि दिखाई और नतीजा यह हुआ कि मांग और आपूर्ति के बीच भारी अंतर के चलते टमाटर जरूरत से ज्यादा लाल हो गया। बड़कोट के पत्रकार सुनील थपलियाल बताते हैं कि अगर समय रहते बागवानी विभाग ने किसानों के लिए प्रोत्साहन योजना घोषित की होती तो शायद यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती। वे मानते हैं कि इस बार यमुना घाटी में डेढ़ हजार से दो हजार रुपए तक में टमाटर की एक क्रेट बिकने का नतीजा यह हुआ है कि उनकी पिछले दो वर्षों के नुकसान की भरपाई हो गई है।
एक नजर यमुना घाटी के प्रमुख टमाटर उत्पादक क्षेत्रों के मिजाज पर डाली जाए। इस बार पुरोला में 1800 से 2000 रुपये तक में टमाटर की एक क्रेट बिकी है जबकि नौगाँव में 1600 से 2000 तक दाम किसानों को मिले हैं।
पुजेली गांव प्रमुख टमाटर उत्पादक गांवों में है, यहां के  श्यालिक राम नौटियाल बताते हैं कि कम उत्पादन के बावजूद इस बार अच्छे दाम मिले हैं जबकि पिछले साल उन्हें मायूसी झेलनी पड़ी थी। ग्राम खलाड़ी के धनवीर सिंह, ग्राम करडा के अमीन सिंह और अंकित रावत, ग्राम नेत्री के त्रेपन सिंह ने भी कमोबेश यही राय व्यक्त की।
इसी तरह नौगाँव क्षेत्र के ग्राम मुराड़ी के मनवीर सिंह और ग्राम तुनालका के विकास मैठाणी ने बताया कि किसानों को उतना दाम नहीं मिल रहा है, जिस दाम पर टमाटर बाजार में बिक रहा है। वे कहते हैं कि टमाटर के दामों को लेकर किसानों को दोष देना उचित नहीं है बल्कि सरकार को अपना सिस्टम सुधारना चाहिए।
इस बीच देहरादून में जिला प्रशासन हरकत में आया है। टमाटर के दाम नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने डंडा तो उठाया है किंतु इसका असर अगले सप्ताह तक दिखेगा कि सिस्टम कितना हरकत में आया है।
देहरादून के बाजार में चार सौ से छह सौ रुपए धडी की दर से थोक भाव दर्ज हुआ है। फुटकर दाम एकदम दूने होने से उपभोक्ता के आंसू निकलने स्वाभाविक हैं। थोक और फुटकर दोनों स्तरों पर मंडी प्रबंधन को ध्यान देना होगा, वरना अगले साल चुनाव भी हैं। लोग बाकी चीजें बेशक भूल जाएं, बाजार में आसमान छूते दामों को नहीं भूलते। प्याज के दाम को लेकर सरकार बदलते आप देख ही चुके हैं।
वैसे अभी हाल में महंगाई के आंकड़ों को लेकर एक रिपोर्ट अभी जारी हुई है जिसमें कहा गया है कि तमिलनाडु के बाद महंगाई के लिहाज से दूसरे नंबर पर उत्तराखंड ही है जहां आम उपभोक्ता वस्तुओं के दाम पड़ोस के अन्य राज्यों की तुलना में कहीं ज्यादा हैं। ऐसा न हो कि 2024 का लोकसभा चुनाव महंगाई के मुद्दे पर ही अटक जाए।

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