22 साल की हो गयी गौचर हवाई पट्टी मगर अभी तक नियमित हवाई सेवा नहीं देखी

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-गौचर से दिग्पाल गुसाईं–
पर्यटन व सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण माने जाने वाले सीमांत जनपद चमोली के गौचर क्षेत्र में बनाई गई हवाई पट्टी पर 22 साल बीतने को हैं लेकिन आज तक हवाई जहाज सेवा शुरू ही नहीं की जा सकी है। हवाई पट्टी से हैलीकॉप्टर सेवा चला कर सरकार अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री समझ रही है इससे इसके औचित्य पर ही सवाल उठने लगे हैं।

नव्वे के दशक में जब गौचर में हवाई पट्टी के लिए जमीन तलाशने का काम शुरू हुआ तो विरोध के स्वर भी मुखर होने लगे थे। शुरुआती दौर में इसके लिए पनाई सेरे की अति उपजाऊ जमीन का चयन किया गया तो कास्तकारों ने सरकार के इस निर्णय का जमकर विरोध किया।कास्तकारों की विरोध की आवाज जब लखनऊ तक पहुंची तो तत्कालीन प्रमुख सचिव आर के धर ने यहां पहुंचकर पनाई सेरे की जमीन का मौका मुआयना कर कास्तकारों से वार्ता के उपरांत कहा था कि हवाई पट्टी के लिए इतनी उपजाऊ जमीन को कंक्रीट के जंगल में नहीं बदला जा सकता है।इसके पश्चात भटनगर की जमीन का सर्वे शुरू किया गया तो यहां भी विरोध के स्वर उठने लगे। लेकिन इस जमीन में हवाई पट्टी न बनने का सबसे बड़ा कारण विशेषज्ञों द्वारा इस जमीन को फेल किया जाना था। इसके बाद तत्कालीन राजनेताओं की जिद् के बाद पोखरी विकास खंड के केलाकठार व खड़पतिखाल में भी जमीन तलाशने का काम शुरू किया गया लेकिन तत्कालीन कर्णप्रयाग व बद्री केदार के विधायक हवाई पट्टी को अपने विधानसभा में बनवाने के लिए आपस उलझ गए। आखिरकार सरकार ने पनाई सेरे की जमीन में ही हवाई पट्टी बनाने का निर्णय लिया।जव इस जमीन का सर्वे शुरू हुआ तो शासन प्रशासन को भारी विरोध का सामना करना पड़ा था। मान-मनौव्वल का दौर शुरू हुआ तो प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को नौकरी, परिवहन व पर्यटन व्यवसाय के लिए आसान व्याज पर ऋण, क्षेत्र का समुचित विकास आदि तमाम प्रलोभन कास्तकारों के सामने रखे लेकिन कास्तकार टस से मस नहीं हुए। इसके बाद सरकार ने फूट डालो राज करो की नीति अपनाई और आंदोलन को दो धड़ों में बांट दिया। इससे भी बात नहीं बनी तो मामले को हाईकोर्ट में ले जाया गया और सरकार ने कोर्ट में दलील दी कि सीमांत क्षेत्र में बनाई जाने वाली इस हवाई पट्टी का सामरिक व पर्यटन की दृष्टि से बनाया जाना महत्वपूर्ण है इस तर्क के आधार पर आखिरकार सरकार की जीत हुई और औने-पौने दामों पर जमीन का अधिग्रहण किया गया।भारी सुरक्षा वल के साथ जमीन के अधिग्रहण के लिए लहलहाती फसल पर डोजर चला दिया गया। किसी तरह मुआवजा भी बांटा गया भाई को भाई से लड़ाने का काम किया गया। वर्ष 2000 में बनकर तैयार गौचर हवाई पट्टी से आज तक हवाई जहाज सेवा शुरू नहीं की जा सकी है।गत वर्ष से सरकार ने उड़ान योजना के तहत 1450 मीटर लंबी व तीस मीटर चौड़ी हवाई पट्टी से हैलीकॉप्टर सेवा चलाकर अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री कर ली है। इससे इस हवाई पट्टी के औचित्य पर लगातार सवाल उठाए जाने लगे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष मुकेश नेगी, संदीप नेगी, कांग्रेस नगर अध्यक्ष सुनील पंवार आदि का कहना है कि जब हैलीकॉप्टर सेवा ही चलनी थी तो इसके लिए गौचर का विशाल मैदान ही काफी था कास्तकारों की आजीविका को कंक्रीट के जंगल में तब्दील करने की क्या आवश्यकता थी। सरकार की नाइंसाफी का खामियाजा आज भी क्षेत्रवासी भुगतने को मजबूर हैं।इन लोगों का कहना था कि वर्तमान में यात्रा चरम सीमा पर है गौचर हवाई पट्टी पर हवाई जहाज सेवा शुरू की जाती तो इसका लाभ यात्रियों के साथ साथ स्थानीय बेरोजगारों को भी मिलता। लेकिन वर्तमान सरकार सीमांत जनपद की उपेक्षा कर रही है।इन लोगों का कहना है कि हरीश रावत के मुख्यमंत्री व राजेंद्र भंडारी के उड्डयन मंत्री रहते हुए पिथौरागढ़, उत्तरकाशी व चमोली की हवाई पट्टियों पर हवाई जहाज सेवा शुरू कर दी गई है।तब भाजपा के ही कुछ लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था।जिसका खामियाजा आज सीमांत जनपद के लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

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पिछले 22 सालों में गौचर हवाई पट्टी पर हवाई जहाज उतारने में जिस तरह से तरह-तरह के बहाने लगाए जाते रहे हैं इससे ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार सीमांत जनपद की इस हवाई पट्टी से हवाई जहाज सेवा चलाना ही नहीं चाहती है।
प्रदेश में सरकार किसी भी दल की रही हो लेकिन सामरिक व पर्यटन की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण समझी जाने वाली गौचर हवाई पट्टी पर हवाई जहाज सेवा चलाने के लिए कभी सामने वाली पहाड़ी को अवरोधक बता कर तो कभी इसकी लंबाई को लेकर बहाना बनाया जाता रहा है। लेकिन जिन पायलटों ने जहाज उतारना है उनकी बातों पर गौर किया जाए तो हकीकत कुछ और ही सामने आती है। 28 नंबर 2008 में गौचर हवाई पट्टी पर पहली बार नौ सीटर हवाई जहाज उतारने वाले विंग कमांडर सचान व रिजवी के अनुसार इस हवाई पट्टी पर 30 सीटर एटीआर विमान आसानी से उतारा जा सकता है। वावजूद इसके सरकारें हर साल कभी हवाई पट्टी की लंबाई बढ़ाने का तो कभी अवरोधक पहाड़ी को काटने का सिगूफा छोड़ती रहती है।यही नहीं अब तक हवाई पट्टी में दो हैंगरों के अलावा अन्य कार्यो पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं।जो बेकार साबित हो रहे हैं।

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