आजादी का 75 वर्ष और संगठित छात्र आन्दोलन का 86 वां तथा एस एफ आई स्थापना का 53 बर्ष
– अनन्त आकाश
भारत मेंअंग्रेजी हुकूमत लगभग 200 साल तक रही ,23 जून 1757 पलासी युद्ध में अंग्रेजों की जीत के सौ साल बाद अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम विद्रोह की शुरूआत 1857 में बैरकपुर सैनिक विद्रोह के रूप में हुई जिसका नेतृत्व सैनिक मंगलदेश पाण्डेय ने किया ।
बाद को यह विद्रोह मेरठ ,कानपुर ,लखनऊ ,बरेली दिल्ली से लेकर विहार आदि अनेक छावनियों फैला और 1857 क्रान्ति के नाम से जाना जाता है । यह सैनिक विद्रोह अन्ततः जन विद्रोह में बदल गया क्योंकि जनता का हर हिस्सा अंग्रेजी कुशासन से दुखी था तथा वह उनके साथ हो रहे भेदभाव तथा अत्याचारों से मुक्ति चाहता था । विद्रोही दिल्ली दरवार गये जहाँ उन्होंने हिन्दुस्तान के अन्तिम बादशाह से जन क्रान्ति का नेतृत्व करने के लिए कहा ,हिन्दुस्तान के अन्तिम बादशाह बहादुर शाह जफर ने इस न्यौते को सहर्ष स्वीकार किया । अपना सब कुछ गवाने तथा अपने दोनों पुत्रों की शहादत के बावजूद वे झुके नहीं । मजबूरन अंग्रेजों को उन्हें बन्दी बनाकर सुदूर रंगून (वर्मा )ले जाकर कैद में रखा जहाँ उन्होंने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे ।
इस क्रान्ति को कुचलने के बाद अंग्रेज समझ चुके थे कि यदि उन्हें हिन्दुस्तान की सरजमीं पर राज करना है , तो कुछ सुधार के साथ ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी से शासन की बागडोर लेकर महारानी को राजकाज संभालना ही होगा । इस प्रकार इस क्रान्ति की विफलता के बाद अंग्रेजी शासन की विधिवत शुरुआत हुई । एक अनुमान के अनुसार इस क्रान्ति में दो सालों में लगभग 10 हजार अंग्रेज तथा लाखों हिन्दुस्तानी मारे गये । क्रान्ति को बड़े ही निर्म्मता से कुचलने के बाद अंग्रेज हिन्दुस्तानियों के बीच ही अपने हितैषियों तैयार करने लगे । इसके बाद उन्होंने अनेक सुधारों की घोषणा की तथा अंग्रेजी शिक्षण संस्थानों का बिस्तार किया जो कि उनकी राज करने की नीति का ही एक हिस्सा था । 1885 में अंग्रेज रिटायर्ड आई सी एस अधिकारी ए ओ ह्यूम द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का उद्देश्य भी यही रहा होगा । ताकि बढ़ रहे जन असन्तोष को किसी तरह मोड़ा जा सके
1914 से 1918 द्वितीय विश्व युद्ध के बाद गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे । बैसाखी के दिन 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा सैकड़ों निहत्थी जनता का नरसंहार के खिलाफ देशभर में आक्रोश व्याप्त था ।गांधीजी के नेतृत्व में अहिंसक असहयोग आन्दोलन बर्ष 1920 से 022तक चला ।
इस आन्दोलन ने देश की जनता के मध्य जोश भरा तथा बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर आये तथा छात्रों ने
गांधी जी के आह्वान पर स्कूल कालेजों के बहिष्कार कर आजादी की मुख्यधारा से जुड़े । सरकारी टैक्स तथा विदेशी बस्तुओं का जोरदार विरोध ने अंग्रेजों की चुले हिलाकर रख दी । दूसरी तरफ देश की आजादी के लिए क्रान्तिकारियों के अनेक ग्रुप सक्रिय रहे ।क्रान्तिकारी आन्दोलन के संचालन के लिए 9 अगस्त 1925 को काकोरी में रेल रोककर सरकारी खजाने की लूटने का भी मकसद यही था ताकि आन्दोलन आगे चलाया जा सके । सुधार के बहाने 3 फरवरी 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के आन्दोलन के दौरान लाला लाजपतराय पर बर्बर लाठीचार्ज तथा उनकी मौत तथा क्रान्तिकारियों ने उनके मौत के बदले का फैसला लिया जो कि उनकी वैचारिक परिपक्वता को ही दर्शाता है ।
मजदूरों के सभी अधिकारों पर अकुंश लगाने के लिए 1929 में ही विवादास्पद ट्रेड यूनियन विल को रोकने के लिए भगतसिंह ,बटुकेश्वर दत्त द्वारा दिल्ली एसेम्बली में बम एवं पर्चे फेंककर अंग्रेजों की कोशिशों को नाकाम किया ।सविनय अवज्ञा आन्दोलन के तहत 1930 में गांधीजी का नमक सत्याग्रह आन्दोलन तथा दाण्डी मार्च तथा दूसरी तरफ अंग्रेजों द्वारा सावरकर को माफी देकर जनता की व्यापक एकता तोड़ने के लिए साम्प्रदायिकता का जहर घोलकर आजादी के आन्दोलन में बनी एकता को तोड़ऩे की नापाक कोशिश भी जारी थी । जिसमें अंग्रेज हिन्दु मुस्लिम के बीच मनमुटाव करने में कुछ हद तक सफल हुऐ ।
अंग्रेजी हुकूमत द्वारा क्रान्तिकारी एवं कम्युनिस्ट आन्दोलन पर दमनात्मक कार्यवाही करना आजादी के आन्दोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है । 23 मार्च1931को साण्डर्स मर्डर केश ,असेम्बली बमकाण्ड आदि मुकदमों में भगतसिंह ,सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी व उससे पहले चन्द्र शेखर आजाद पर इलाहाबाद एल्फैर्ड पार्क में पुलिस द्वारा गोलीबारी के बीच उनके द्वारा खुद को गोली से उड़ाना की इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है ।इससे पहले देशभर में 1929 में 31 श्रमिक नेताओं को गिरफ्तार कर मेरठ षढ़यन्त्र केस के तहत लम्बी सुनवाई के बाद 27लोगों को बर्ष 1933 में काले पानी की कठोरतम सजा सुनाई गई,सजा पाने वाले सभी कम्युनिस्ट थे ।मेरठ षढ़यन्त्र केस की तरह कानपुर ,लाहौर आदि शहरों में कम्युनिस्टों पर मुकदमा चलाया जाने की घटनाओं ने देश को झकझोर करके रख दिया ।
आजादी के आन्दोलन में अंग्रेजों से लाभ ले रहे अन्ध राष्ट्रवादी वास्तव में उन्हीं के लिए काम कर रहे थे तथा आन्दोलन को तरह तरह से क्षति पहुंचा रहे थे तथा सरकार के लिए मुखबिरी तथा झूठी गवाही दे रहे थे ।दूसरी तरफ पेशावर,लाहौर ,कलकत्ता ,मुम्बई सहित देश के अनेक हिस्सों में अंग्रेजों के खिलाफ अनेक विचारों के आन्दोकारियों द्वारा जन संघर्ष चलाये जा रहे थे ।इसके साथ ही सुधारवादियों द्वारा देशभर में अनेक सामाजिक सुधार के लिऐ आन्दोलन चलाये जा रहे थे ।
12 अगस्त 1936 को देश के प्रगतिशील तथा वामपंथी विचारों के छात्रों द्वारा लखनऊ में एक अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन का आयोजन किया जिसका उद्घाटन जवाहरलाल नेहरु तथा अध्यक्षता मौहम्मद जीना ने की ।यहाँ से संगठित छात्र आन्दोलन की शुरुआत हुई तथा आल इण्डिया स्टूडेंट्स फैडरेशन (एआईएसएफ) की स्थापना हुई , जिसका मुख्य उद्देश्य आजादी के आन्दोलन में छात्रों की भूमिका सुनिश्चित करना था ।हालांकि यह प्रयास सन् 1920-022 के दौर से शुरू हो चुके थे , किन्तु फलीभूत डेढ़ दशक बाद हो पाया । गांधीजी के बार बार आन्दोलनों के वापस लेने के बाद छात्र समुदाय उहापोह की स्थिति में था तथा भारत की आजादी का लक्ष्य क्या हो ? ऐ सवाल उसके सामने प्रमुख थे । छात्र आन्दोलन पर गांधी जी के प्रभाव के साथ साथ अनेक विचारधाराओं का प्रभाव स्पष्ट था । छात्र आन्दोलन का हिरावल हिस्सा सोवियत क्रान्ति तथा क्रान्तिकारियों के प्रगतिशील हिस्से को अपना आदर्श मानता था । इस आदर्श के केन्द्र में वह कम्युनिस्टों के विचारों से प्रभावित था ।एआईएसएफ के अन्तर्गत अनेक विचारधाराऐं ं कार्य कर रहे थी ।आजादी का हमारा लक्ष्य क्या हो ?,ऐ सभी सवाल मुंह बाहे खड़े थे । छात्र आन्दोलन का सर्वाधिक प्रगतिशील हिस्सा समाजवाद को अपना लक्ष्य मानता था तथा दूसरों का लक्ष्य फौरी था ।दूसरी तरफ अंग्रेजी हुकूमत की समानांतर आन्दोलन को कमजोर करने के षढ़यन्त्र जारी थे । इस बीच 1940 में छात्र आन्दोलन में मुस्लिम छात्र फैडरेशन के रूप में विभाजन हुआ । जिसका नेतृत्व मौहम्मद जीना ने किया । ध्दितीय विश्व युद्ध जारी था ,फासीवाद के खिलाफ सोवियत संघ के नेतृत्व में मित्र राष्ट्र लड़ रहे थे ।प्रगतिशील आन्दोलन ने फासीवाद के खिलाफ अपना रूख स्पष्ट किया ।क्योंकि इस युद्ध से दुनिया का भबिष्य तय होना था । अन्ततः सोवियत खेमे की जीत के साथ ही हिटलर की हार सुनिश्चित हुई तथा,इग्लैंड की विश्व स्तर पर स्थिति कमजोर हो गई ।समाजवादी खेमा ताकत के रूप में उभरा ।अब इग्लैण्ड की सत्ता समझ गयी कि भारत सहित अन्य देशों में ज्यादा दिन उपनिवेशवादी व्यवस्था सम्भव नहीं है ,इसलिए उन्होंने हिन्दुस्तान के नवोदित पूंजीवादी ,सामन्तवादी गठबंधन से समझौता कर सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया की शुरुआत की ।साथ ही अपनी पूर्व नियोजित योजना के तहत भारत के विभाज न की नीव भी डाल दी जिसके लिऐ हिन्दू व मुस्लिम कठ्ठरपंथियों का उन्हें भरपूर समर्थन एवं सहयोग मिला ।
इस समझौते में दोनों पक्षों ने देश कम्युनिस्ट एवं अन्य महत्वपूर्ण हिस्से को बाहर रखा जबकि भारी दमन के बावजूद कम्युनिस्टों की शक्ति में भारी इजाफा मजदूर ,किसान ,छात्र ,युवा आन्दोलनों का जोर के साथ ही अनेक बन्दगाहों नौ सैनिकों का विद्रोह इस विद्रोह में आई एन ए सैनिकों की भूमिका उल्लेखनीय है जो कि कहीं न कहीं कम्मुनिस्टों से प्रेणा ले रहा था ।किन्तु अंग्रेज घोर हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिक तत्वों की मन की करके चले गये तथा उन्होंने हिन्दू मुस्लिम के आधार पर देश का विभाजन कर दिया जिसका उपयोग कठ्ठपंथियों द्वारा साम्प्रदायिक जहर फैलाने के लिए किया ।
न चाहते हुऐ भी 1947में देश बंट गया साम्प्रदायिक एवं असामाजिक तत्वों ने इस अवसर का लाभ आपसी मारकाट ,लूटपाट तथा वैमनस्यता के लिए किया । यहाँ तक कि संघ से जुड़े नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधीजी की गोली मार कर हत्या कर दी , “अफसोस है कि अंग्रेजों तथा उनके मुखविरों द्वारा आपसी मनमुटाव का जो कार्य किया गया था वह आज तक चला आ रहा जिसे अपने निहित स्वार्थों के लिए वे और अधिक गहरा कर रहे हैं! ”
देश में नेहरू के नेतृत्व में समाजवाद का नारा देकर मिश्रित पूंजीवादी व्यवस्था अपनायी गई किन्तु संगठित छात्र आन्दोलन के सवाल जस के तस बन रहे ।1950आते आते छात्र आन्दोलन में एक और विभाजन एन एस यू आई के रूप में हुआ क्योंकि सत्ता पक्ष कांग्रेस अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए अपने सांगठनिक आधार बनाने में जुट चुकी थी ।अब एआईएसएफ की हालात कमजोर होने के कारण उसके नेतृत्वकारी साथियों ने नेहरू माडल अपनाना स्वीकार किया ।किन्तु इसी संगठन के अन्तर्गत एक हिस्सा सहमत नही था, अतः वे अपने उद्देश्यों को लेकर निरन्तरता के साथ कार्य कर रहे थे 1960आते आते एक बार भी साम्प्रदायिक आधार पर छात्र आन्दोलन का विभाजन हुआ और एबीवीपी अस्तित्व में आयी जिसने हिन्दुत्व के नारे के इर्दगिर्द छात्रों को संगठित करना शुरु किया ।इसके बाद एक के बाद एक विभाजन का दौर की शुरुआत हुई । एआईएसएफ नेतृत्व से अलग विचार रखने वाले विभिन्न राज्यों में अलग अलग छात्र फैडरेशन बन गये । जो 1970 में त्रिवेंद्रम में इकठ्ठे हुऐ तथा स्टूडैण्ट्स फैडरेशन आफ इण्डिया (SFI)की स्थापना हुई । संगठन ने अपना लक्ष्य शिक्षा की बेहतरी तथा समाजवाद रखा ।
त्रिवेंद्रम सम्मेलन में साम्प्रदायिक ,सदभाव आपसी भाईचारे के संकल्प के साथ यह तय किया गया निशुल्क एवं सार्वभौमिक व वैज्ञानिक शिक्षा ,रोजगार के संघर्ष के साथ ही संगठन का अन्तिम लक्ष्य होगा , वास्तविक समाजवाद की उद्देश्यों की प्राप्ति ।इन लक्ष्यों को लेकर संगठन की शुरुआत हुई । संगठन व्यापक हितों को देखते हुऐ समान विचार के संगठनों के साथ मिलकर अखिल भारतीय आन्दोलन की शुरूआत की । कुछ मायने में अनेक उपलब्धियां हासिल हुई तथा संगठन ने छात्रों से जुडे़ मुद्दों को बड़े ही सिद्दत एवं ईमानदारी के साथ उठाकर देश सबसे छात्र संगठनों में अपना स्थान बनाया ।आपातकाल का विरोध करते हुऐ कांग्रेस की सरकार ने अनेक साथियों को गिरफ्तार किया । इस दौर में संगठन ने जनतंत्र की रक्षा के लिए देशव्यापी अभियान चलाया । सन् 1977में जनतंत्र की बहाली के बाद जनतांत्रिक सरकार के सामने छात्रों की मांगों को रखा । 15 सितम्बर 1981को दिल्ली के वोट क्लब संसद के सामने ऐतिहासिक संसद मार्च कर छात्रयुवाओं वोट क्लब पर विशाल सभा का आयोजन कर सबको शिक्षा ,सबको काम का नारा बुलन्द कर देश के छात्रयुवा आन्दोलन को दिशा देने का कार्य किया ।
बर्ष 90 से हमारे देश के सत्ताधारी वर्ग ने नव उदारवादी नीतियों को लागू कर हमारे देश के पूंजीवादी विकास के मापदंडों को ही बदल डाला । आज काग्रेंस ,भाजपा सहित तमाम छोटी बडी़ पूंजीवादी पार्टियों ने नव उदारवादी नीतियों को आत्मसात कर दिया है । जिसका कि एस एफ आई ने जोरदार विरोध किया तथा संयुक्त वाम एवं प्रगतिशील छात्र आन्दोलन को विकसित किया । इसप्रकार प्रगतिशील वाम छात्र आन्दोलन द्वारा निरन्तरता से नव उदारवादी नीतियों के परिणामस्वरूप आऐ साम्राज्यवादपरस्त तथा साम्प्रदायिक नीतियों का जोरदार विरोध कर अपनी राजनैतिक एवं सामाजिक प्रतिबध्दता को प्रर्दशित किया है । इन छात्र संगठनों द्वारा जनता के विभिन्न जनमुद्दों तथा मजदूरों ,किसानों के साथ एकजुटता उनके समाज के प्रति दायित्व को ही दर्शाता है ।आज तेजी से नीजिकरण और हिन्दुत्ववादी ताकतों के उभार के परिणामस्वरूप समान विकास, धर्मनिरपेक्ष ,जनतांत्रिक ताकतों के सामने गम्भीर चुनौती खडी़ कर दी है ।बर्ष 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने से स्थितियों में भारी परिवर्तन आया है । अब सत्ता ऐसी पार्टी चला रही है जिसकी हिन्दुत्ववादी विचारधारा आर एस एस द्वारा नियन्त्रित है ,जिसके धर्मनिरपेक्षता ,जनतंत्र तथा मेहनतकश वर्ग के लिये सत्यनाशी नतीजे सामने आ रहे हैं । जिसका असर सीधे तौर पर शिक्षा जगत में भी देखने को मिल रहा ।पहले से चले आ रहे उच्च शिक्षा केन्द्रों एवं शिक्षा क्षेत्र में मिल रही थोड़ी बहुत सुविधाओं को आम छात्रों से छिनने का कार्य किया जा रहा है । यही नहीं लम्बे संघर्ष एवं कुर्बानी के कारण मिली शिक्षा के वैज्ञानिक एवं धर्मनिरपेक्ष तथा जनतांत्रिक स्वरूप को बदलकर शिक्षा साम्प्रदायिकरण करना इस सरकार की प्राथमिकता है।प्रगतिशील इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेशकर इसे छद्म हिन्दुत्व की ओर मोड़ा जा रहा है ।आजादी के आन्दोलन में संघ परिवार द्वारा की गई देश के साथ गद्दारी को छिपाने के लिए आजादी के नेताओं का उपयोग अपनी विभाजनकारी नीतियों को आगे बढा़ने का कुत्सित प
प्रयास जारी है । आज देश में एक ऐसी विचारधारा के लोग सत्तासीन हैं ,जिनका आजादी के आन्दोलन से कोई लेना देना नहीं रहा । इसीलिए वे निरन्तर जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता,साम्राराज्यवादी विरोधी परम्परा तथा संविधान एवं न्याय व्यवस्था पर एक के बाद एक हमला करने में लगे हुये हैं तथा कारपोरेट तथा गोदी मीडिया उनके साथ है । हमारी साझी शहादत ,साक्षी बिरासत की परम्परा इस सरकार के रहते सुरक्षित नहीं है ।आज मोदी सरकार ने नई शिक्षा नीति को लागूकर शिक्षा को कारपोरेट एवं विदेशी हाथों में सौंपने का कार्य कर आजादी के बाद बड़े संघर्षों के बाद शिक्षा क्षेत्र में मिली उपलब्धियों को छीनने का कार्य किया है ।नई शिक्षा नीति देरसवेर गरीब एवं मध्यम वर्ग को मिल रही सस्ती शिक्षा को छीनने का कार्य ही करेगी ,जिसकी शुरुआत देश के कई विश्वविद्यालयों एवं शैक्षणिक संस्थानों में भारी फीस बढो़तरी के साथ शुरू हो चुकी है ।इसलिए संगठित छात्र आन्दोलन पर नई शिक्षा नीति के खिलाफ व्यापक आन्दोलन विकसित किये जाने जिम्मेदारी है ,इसमें छात्रों के अभिवाहकों को जोड़ने की आवश्यकता है क्योंकि अन्ततः मोदी सरकार की शिक्षा विरोधी नीतियों का आर्थिक बोझ उन्हीं पर पड़ेगा ।
*इसलिए आजादी के 75 बर्षगांठ ,संगठित छात्र आन्दोलन की 86 वीं बर्षगांठ तथा एस एफ आई स्थापना की 53 वीं बर्षगांठ के अवसर पर हम संकल्प लें, देश की सत्ता में काबिज जो अब हिन्दुस्तान की बिरासत पर अपना दावा ठोक रहे हैं तथा जनतंत्र ,धर्मनिरपेक्ष तथा कारफोरेट तथा फूटपरस्त नीतियों ,शिक्षा के विरोध में कार्य कर रहे हैं । इनके खिलाफ जनता को लामबंद करें तथा उन्हें बेनकाब करते हुऐ आजादी की साझी शहादत तथा साझी बिरासत की रक्षा करें “संगठन की 53 वीं बर्षगांठ के अवसर पर छात्र आन्दोलन के शहीदों को याद करते हुऐ एस एस आई के संघर्षशील साथियों को हार्दिक शुभकामनाएं ।*