आजादी का 75 वां वर्ष और कम्युनिस्टों के संघर्ष व कुर्बानी की परम्परा ( Part -1)
– अनन्त आकाश
भारत में अंग्रेजी हुकूमत लगभग 200 साल से भी अधिक रही । अंग्रेजों के खिलाफ प्रथम विद्रोह की शुरूआत 1857 में सैनिक विद्रोह के रूप मे सैनिक मंगलदेश पाण्डेय के नेतृत्व में हुई जो आगे चलकर हिन्दुस्तान के बड़े भाग मे फैला इतिहास मे इसे 1857 क्रान्ति
के रूप में जाना जाता है। विद्रोहियों ने दिल्ली जाकर इसका नेतृत्व हिन्दुस्तान के अन्तिम बादशाह बहादुरशाह जफर को देकर अपनी स्वर्णिम बिरासत का परिचय दिया। बादशाह जफर ने अपना सब कुछ यहाँ तक अपने दो बच्चों की शहादत देकर मातृभूमि के प्रति अपना फर्ज बखूबी निभाया । अंग्रेजों ने उन्हें बन्दी बनाकर सुदूर रंगून ले जाकर कैद में रखा जहाँ उन्होंने जीवन के अन्तिम दिन गुजारे । इस क्रान्ति को कुचलने के बाद अंग्रेज समझ चुके थे कि यदि उन्हें हिन्दुस्तान की सरजमीं पर लम्बे समय तक राज करना है तो कुछ सुधार के साथ ईस्ट इण्डिया कम्पनी से राज लेकर सीधे तौर पर महारानी के तहत देश की कमान सम्भालनी होगी । 1920-30में गांधी जी के नेतृत्व में देश की जनता ने अनेक महत्वपूर्ण आन्दोलन तथा क्रान्तिकारियों के अनेक ग्रुप सक्रिय रहे अपने आन्दोलन के संचालन के लिए काकोरी में रेल रोककर सरकारी खजाने की लूट । जलियांवाला बाग में निहत्थे लोगों के नरसंहार ने दिल दहला कर रख दिया ।
साइमन कमीशन के बहिष्कार के आन्दोलन के दौरान लाला लाजपतराय पर बर्बर लाठीचार्ज तथा उनकी मौत ने क्रान्ति
कारियों ने उनके मौत का बदला लेने की ठान ली । मजदूरों के सभी अधिकारों पर अकुंश लगाने के लिए विवादास्पद ट्रेड यूनियन विल को रोकने के लिए भगतसिंह ,बटुकेश्वर दत्त द्वारा दिल्ली असेम्बली में बम एवं पर्चे फेंककर अंग्रेजों की कोशिशों को नाकाम करना तथा दूसरी तरफ अंग्रेजों द्वारा सावरकर को माफी देकर जनता की व्यापक एकता तोड़ने के लिए साम्प्रदायिकता का जहर घोलकर आजादी के आन्दोलन में बनी एकता को तोड़ऩे के साथ ही ,क्रान्तिकारी एवं कम्युनिस्ट आन्दोलन पर दमनात्मक कार्यवाही करना आजादी के आन्दोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा
है ।
बर्ष 1931को भगतसिंह ,सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी उससे पहले आजाद पर इलाहाबाद एल्फैर्ड पार्क में पुलिस द्वारा गोलीबारी के बीच उनके द्वारा खुद को गोली से उड़ाना भी इतिहास की महत्वपूर्ण घटना रही है जिसने युवाओं को उद्देलित करने का कार्य किया।
मेरठ षढ़यन्त्र केश के तहत कम्युनिस्टों पर मुकदमा चलाये जाने की घटनाओं ने देश को झकझोर करके रख दिया । आजादी के आन्दोलन में अंग्रेजों से लाभ ले रहे अन्ध राष्ट्रवादी वास्तव उन्हीं के लिए काम कर रहे थे तथा आन्दोलन को तरह तरह से क्षति पहुंचा रहे थे । दूसरी तरफ पेशावर सहित देश के अनेक हिस्सों में अंग्रेजों के खिलाफ अनेक विचारों के आन्दोकारियों द्वारा जन संघर्ष चलाये हुऐ थे ।
1930 में चन्दसिंह गढ़वाली के नेतृत्व गढ़वाली सैनिकों ने पठानों आन्दोलनकारियों पर गोली न चलाना एक ऐतिहासिक घटना के साथ ही साम्प्रदायिक एकता के लिए महत्वपूर्ण मुकाम है । आजादी के आन्दोलन के दौरान देशभर में अनेक समाज सुधार के आन्दोलन भी अपने महत्वपूर्ण हैं ।1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन ने अंग्रेजों की चूले हिलाकर रख दी ।द्वितीय विश्वयुद्ध में फांसीवादी हिटलर का खात्मा तथा सोवियत संघ की समाजवादी व्यवस्था का फैलाव तथा अंग्रेजों की ताकत में भारी कमी । हिन्दुस्तान में आन्दोलन का उभार कम्युनिस्टों की शक्ति में भारी इजाफा मजदूर ,किसान ,छात्र ,युवा आन्दोलनों पर जोर के साथ ही अनेक बन्दगाहों नौ सैनिकों का विद्रोह इस विद्रोह में आई एन ए सैनिकों की भूमिका उल्लेखनीय है ।किन्तु अंग्रेज जाते जाते घोर हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिक तत्वों की मन की करके चले उन्होंने हिन्दू मुस्लिम के आधार पर देश का विभाजन कर दिया जिसका उपयोग इन तत्वों द्वारा साम्प्रदायिक जहर फैलाने के लिए किया ।
न चाहते हुऐ भी 1947में देश बंट गया साम्प्रदायिक एवं असामाजिक तत्वों ने इस अवसर का लाभ आपसी मारकाट ,लूटपाट तथा वैमनस्यता के लिए किया यहाँ तक संघ नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधीजी की गोली मार कर हत्या कर दी , “अफसोस है कि आपसी खटास जो आज तक चली आ रही जिसे अपने निहित स्वार्थों के लिए और अधिक गहरा किया जा रहा है! ”
जारी —-