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अधीनस्थ चयन सेवा आयोग पेपर लीक : माफिया, नेता और नौकरशाही के गठजोड़ का सबूत

-जयसिंह रावत

देहरादून, 6 अगस्त । स्नातक स्तरीय परीक्षा में पेपर लीक मामले में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष एस. राजू के इस्तीफे और पेपरलीक मामले में उनके खुलासे के बाद स्थिति साफ हो गयी कि उत्तराखण्ड में नौकरियों के मामले में एक बड़ा गठजोड़ सक्रिय है जिसमें माफिया के साथ ही राजनीतिज्ञ और ब्यूरोक्रेट भी शामिल हैं। ऐसा ही एक खुलासा तत्कालीन गृह सचिव एन.एन.बोरा की अध्यक्षता में गठित समिति ने भी किया था। यह गठजोड़ प्रदेश के होनहार युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ तो कर ही रहा है लेकिन नौकरियों के साथ ही अन्य क्षेत्रों में पैर पसारने का संकेत भी दे रहा है। सबसे बड़ी चिन्ता का विषय इस घपले में रूलिंग पार्टी के लोगों के शामिल होने का है। आज आप भारतीय जनता पार्टी पर ऊंगली उठा सकते हैं। लेकिन गठजोड़ के 2016 से सक्रिय होने के संकेत भी मिल रहे हैं। उस समय भाजपा तो सत्ता में नहीं थी। जाहिर है जिसकी सरकार आ रही है माफिया तंत्र उसी राज में सत्ता के दलाल तलाश रहे हैं। इस मामले में आयोग के अध्यक्ष ने तो इस्तीफा दे दिया, मगर उसके दो सदस्य अब भी कुर्सी दबोचे बैठे हैं जबकि जिम्मेदारी पूरे आयोग की बनती है और अध्यक्ष केवल समकक्षों में केवल प्रथम होता है ।  यह भी आरोप रहा है कि कुछ लोग आयोग के पद का लाभ अपनी पुस्तकें बिकवाने में करते रहे हैं।

S Raju chairman of UKSSSC, who has resigned after exposer of paper leak scam

आयोग के अध्यक्ष राजू ने जो चौंकाने वाला खुलासा किया है वह यह कि उन पर इस मामले की जांच न कराने का दबाव डाला जा रहा था। आयोग पर कोई विपक्षी दल तो दबाव नहीं डाल सकता। इस मामले में अब तक एक दर्जन से अधिक लोग गिरफ्तार हो चुके हैं और लाखों की नकदी बरामद हो चुकी है। 36 लाख में एक पेपर बिकने की बात आ रही है। राजू का अरोप है कि इस मामले में पुलिस ने उन्हें सहयोग किया और ना ही पूर्ववर्तियों की जांच में रुचि रही । भले ही राजू ने सरकार का नाम सीधे न लिया हो मगर परोक्ष रूप से संकेत तो दे ही दिया कि सरकार जिसकी भी हो, किसी को भी निष्पक्ष और पारदर्शी व्यवस्था रास नहीं आती है और सभी गलत चयन के लिये दबाव बनाते रहे हैं। ऐसी स्थिति में जीरो टॉलरेंस की बात करना भी अपने आप में एक मजाक ही है। जब सत्ताधारी अपने चहेतों को नौकरियां दिलाने का दबाव डालेंगे तो निष्पक्ष और पारदर्शी प्रकृया की कल्पना कैसे की जा सकती है। इसीलिये शायद जांच न कराने का दबाव डाला जा रहा था। राजू को उन लोगों के नाम भी बताने चाहिये जो उन पर जांच न कराने का दबाव डाल रहे थे] और उन लोगों के नाम भी सार्वजनिक करने चाहिये जो उन पर चहेतों का चयन करने के लिये दबाव बना रहे थे । चयन आयोग में पेपर सेटर और पुस्तक विक्रेताओं / लेखकों  के गठजोड़ की बातें भी छन कर आती रही हैं।

राजू के मुताबिक उनका कभी किसी नेता से संबंध नहीं रहा। सियासी लोग नियुक्ति को लेकर दबाव तो बनाते ही थे, लेकिन कभी गलत काम नहीं किया। वर्तमान प्रकरण में उन पर जांच नहीं कराने का दबाव था, लेकिन उन्होंने जांच का निर्णय लिया।

स्नातक स्तर के 13 विभाग के 916 पदों की भर्ती परीक्षा चार एवं पांच दिसबर 2021 को आयोजित की गई थी। परीक्षा के लिए दो लाख, 69 हजार से अधिक अभ्यर्थियों ने आवेदन किया था। परीक्षा में एक लाख, 46 हजार, 83 अभ्यर्थी शामिल हुए। परीक्षा के बाद आयोग ने परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया था।

आने वाले समय पर सफल अभ्यर्थियों के दस्तावेजों की जांच होनी थी और फिर अंतिम चयन सूची जारी की जानी थी। इससे पहले 22 जुलाई को उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बाबी पंवार कुछ अन्य बेरोजगारों के साथ मुख्यमंत्री से मिले और यूकेएसएसएससी की स्नातक स्तरीय परीक्षा में धांधली का आरोप लगाया। उन्होंने इससे जुड़े कुछ दस्तावेज भी  मुख्यमंत्री के समक्ष रखे।

अधीनस्थ चयन आयोग  गठन से पहले उत्तराखंड में समूह ग स्तर की भर्ती कराने की जिम्मेदारी उत्तराखंड प्राविधिक शिक्षा परिषद (यूबीटीआर) के पास थी। यूबीटीआर की ओर से आयोजित जेई भर्ती भी इसी कारण निरस्त करनी पड़ी थी। यूबीटीआर की कई भर्तियों पर संगीन आरोप लगे, लेकिन किसी मामले में कोई ठोस जांच या कार्यवाही नहीं हुई। लेकिन यूबीटीआर के जवाब में बनाया गया आयोग भी अपनी भूमिका में विफल हो गया है।

उत्तराखंड में समूह ग स्तर की भर्तियों का पूरा करने के लिए 2014 में उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग का गठन किया गया था। लेकिन शुरुआत से ही आयोग की भर्तियों पर सवाल उठते रहे, इसी पृष्ठभूमि में आयोग के लगातार दूसरे अध्यक्ष को इस्तीफा देकर बैरंग लौटना पड़ा।

2014 में इस स्वतंत्र आयोग को गठित किए जाने के समय रिटायर्ड आईएफएस अधिकारी आरबीएस रावत को अध्यक्ष नियुक्त किया गया। लेकिन उनके कार्यकाल में आयोजित भर्तियों पर भी सवाल उठते रहे। 2016 में आयोजित वीपीडीओ भर्ती में बड़े पैमाने पर गोलमाल के आरोप लगे। जिसकी विजिलेंस जांच के दौरान पता चला कि परीक्षा के बाद मूल्यांकन के लिए लाई गई ओएमआर शीट से छेड़छाड़ कर रिजल्ट प्रभावित किया गया। इस कारण उक्त परीक्षा निरस्त करनी पड़ी। तत्कालीन अध्यक्ष आरबीएस रावत ने तब इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था।

 

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