उत्तराखंड के सरकारी स्कूलों में बच्चों की जान जोखिम में : चम्पावत में 1 बच्चे की मौत 3 अन्य घायल
देहरादून 14 सितम्बर। चम्पावत जिले के मोन कांडा गांव के प्राइमरी स्कूल के शौचालय की जर्जर छत गिरने हुयी एक बच्चे की मौत ने राज्य सरकार की संवेदनहीनता और राज्य की जर्जर हो चुकी शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी है। प्रदेश में ऐसे जर्जर स्कूलो की संख्या 500 से अधिक बताई जा रही है। जबकि राजनीतिक शासकों और नौकरशाहों के लिए आलीशान इमारतें बनती जा रही हैं। आम जनता का मानना है की अगर नेताओं और नौकरशाहों के बच्चे भी इसी तरह के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे होते तो राज्य के स्कूलों की हालत बेहतर होती क्योंकि तब नेताओं और अफसरों को अपने बच्चों की जान की फ़िक्र होती।
चंपावत जिले के पाटी ब्लॉक के मोन कांडा ग्राम में राजकीय प्राथमिक विद्यालय के जर्जर हो चुके शौचालय की छत ढहने से एक छात्र की मौत हो गई है, जबकि 3 छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए हैं। प्रशासन की टीमों द्वारा गंभीर घायलों को लोहाघाट चिकित्सालय में इलाज के लिए भेज दिया गया है। एसडीएम रिंकु बिष्ट ने घटना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि आज इंटरवल के समय कुछ बच्चे विद्यालय के जर्जर हो चुके शौचालय के पास खेल रहे थे, तभी शौचालय की जर्जर छत ढह कर बच्चों के ऊपर गिर गई। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर जिलाधिकारी चम्पावत ने राजकीय प्राथमिक विद्यालय मौनकाण्डा के शौचालय की छत गिरने की घटना के मजिस्ट्रियल जांच के लिये एस.डी.एम पाटी को जांच अधिकारी नियुक्त किया है।
गांव वालों का कहना है कि विद्यालय भवन की स्थिति भी काफी जर्जर है। जिसमें कभी भी कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती है. हालांकि ग्रामीण विद्यालय भवन को सुधारने की मांग कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों व शासन से कर चुके हैं, लेकिन सुनने वाला कोई नहीं है। ग्रामीणों ने विद्यालय के जर्जर भवन को सुधारने, दुर्घटना में मृतक व घायल छात्र के परिजनों को मुआवजा देने और दोषियों पर कार्रवाई करने की मांग प्रशासन से की है। इस विद्यालय में कुल 14 छात्र अध्ययनरत हैं जिनमें से आज 8 छात्र विद्यालय आए हुए थे।
उत्तराखंड में सरकारी स्कूलों की बदहाल व्यवस्था किसी से छुपी नहीं हुई है. आलम यह है कि प्रदेश में प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय मिलाकर करीब एक हजार से अधिक स्कूल जर्जर स्थिति में हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसारप्रदेश में सरकारी प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों के 1288 भवन जर्जर हालत में हैं। इनमें से सिर्फ 522 की मरम्मत या पुनर्निर्माण का काम शुरू हो पाया है। 766 विद्यालय भवनों की अब तक सुध तक नहीं ली गई। केंद्र से मदद मिलने के बाद ही इन विद्यालयों का पुनरोद्धार होगा। जबकि शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी के अनुसार प्रदेश में 580 प्राथमिक विद्यालय ऐसे हैं, जो कि जर्जर स्थिति में हैं।
शिक्षा विभाग हर साल स्कूलों के मरम्मतीकरण के नाम पर करोड़ों का खर्च करता है। 816 स्कूलों में बिजली तो 1500 से अधिक स्कूलों में पेयजल नहीं है। हैरानी की बात यह है कि माध्यमिक के बच्चों के लिए भी पर्याप्त फर्नीचर तक नहीं है। कुर्सी मेज तो छोड़िए ,कई स्कूलों में बैठने के लिए चटाइयां भी नहीं है।और तो और किसी स्कूल में भवन नहीं है ।तो कई स्कूलों में भवनों में पर्याप्त कमरे ही नहीं हैं ।जिस वजह से बच्चों को तपती दोपहरी धूप में बैठकर खुले आसमान के नीचे पढ़ाई करनी पड़ती है।या कई बार पेड़ की छांव के नीचे बैठ कर भी उनको पढ़ाई करनी पड़ती हैं। पिथौरागढ़ जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी अशोक कुमार जुकरिया से इस संबंध में जब जानकारी मांगी गई, तो जर्जर बन चुके भवनों की चौंकाने वाली संख्या सामने आई। जिले में 87 ऐसे भवन हैं, जो बच्चों के बैठने लायक नहीं हैं. जो बजट के अभाव में खंडहर बनते जा रहे हैं। अल्मोड़ा जिले में 1255 प्राथमिक विद्यालय हैं. दर्जनों स्कूल भवन जर्जर हालत में हैं. बारिश होने पर कई विद्यालयों की छत से पानी टपक रहा है । ऐसे में छात्र कैसे पढ़ाई करेंगे और कैसे विद्यालय में बैठेंगे, यह बड़ा सवाल है ।
मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर जिलाधिकारी चम्पावत ने राजकीय प्राथमिक विद्यालय मौनकाण्डा के शौचालय की छत गिरने की घटना के मजिस्ट्रियल जांच के लिये एस.डी.एम पाटी को जांच अधिकारी नियुक्त किया है। जिलाधिकारी ने अपने आदेश में एस.डी.एम को निर्देश दिये हैं कि इस दुर्घटना के कारणों की तत्काल जांच पूर्ण कर 15 दिन में जांच आख्या उपलब्ध कराये। जिलाधिकारी चम्पावत ने बताया है कि मुख्यमंत्री के निर्देश पर मृतक छात्र के परिजनों को दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से दी जाएगी तथा घायल छात्रों के निशुल्क उपचार की व्यवस्था की गई है।