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आखिर आगजनी पर क्यों उत्तर आये ये भविष्य के अग्निवीर ?

 

जयसिंह रावत

कोरोना महामारी के कारण पूरे दो साल तक इंतजार करने के बाद देश के नौजवानों के लिये फौज में भर्ती हो कर शान की जिन्दगी जीने और मातृभूमि की रक्षा के जज्बे को साकार करने का समय आया तो केन्द्र सरकार ने ’’अग्निपथ’’ योजना के जरिये नौजवानों के अरमानों को ही अग्नि में झौंक दिया। विपक्ष की आलोचना को अगर दरकिनार कर भी दिया जाय तो रक्षा विशेषज्ञों को भी यह योजना हजम नहीं हो रही है। सेना के पूर्व अधिकारी तो खुल कर योजना के विरोध में बोल रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार पेंशन और ग्रेच्युटी आदि में जाने वाली राशि को बचाने के लिये देश की सुरक्षा की अनदेखी कर रही है। महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने यहां तक ट्वीट किया, है कि, “अग्निपथ राजकोष की कीमत पर एक मिलिशिया को प्रशिक्षित करने की एक चतुर चाल है। सशस्त्र बलों में एक छोटा कार्यकाल और संघ के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता। अग्निपथ एस.एस…..’’

उत्तराखण्ड जैसे राज्य की आर्थिकी में सेना का महत्वपूर्ण योगदान

हमारी सेना विश्व की तीन सबसे बड़ी सेनाओं में से एक है। जिसमें सर्वाधिक 11.29 लाख सैनिक थलसेना, 1.27 लाख वायु सेना और लगभग 58 हजार नौसेना के सैनिक शामिल हैं जो कि आन्तरिक और बाह्य खतरों से सुरक्षा की गारंटी देने के साथ ही दैवी आपदा जैसे संकट में देशवासियों के काम आते हैं। इन लाखों सैनिकों में से हर साल बड़ी संख्या में सैनिक सेवाकाल पूरा कर रिटायर हो जाते हैं तो उतने ही नये भर्ती भी होते हैं। अनुमानतः अकेली आर्मी में ही लगभग 60 हजार नये सैनिक हर साल भर्ती होते हैं। चूंकि कोरोना के कारण पिछले दो सालों से भर्तियां बंद थीं लेकिन अब भर्तियां खुलने की बारी आयी तो सरकार ने 4 साल वाली ’’अग्निपथ’’ योजना शुरू कर नौजवानों की आशाओं पर ही पानी फेर दिया। गुजरात जैसे राज्य पर इस योजना की मार इसलिये नहीं पड़ेगी, क्योंकि वहां मोदी जी अपने 15 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में भी फौज में भर्ती होने का जज्बा नौजवानों में पैदा नहीं कर पाये। लेकिन उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, तमिलनाडू और म.प्र. जैसे सैन्य बाहुल्य राज्यों के नौजवानों आशाओं और अभिलाषाओं पर तो तुषारापात ही हो गया। उत्तराखण्ड जैसे राज्य की आर्थिकी में तो सेना का महत्वपूर्ण योगदान अब भी है।

34 साल के सैन्य जीवन कीसाल  में ही  छुट्टी 

अग्निपथ में परिकल्पना की गयी है कि नया खून आने से सेना 4से 5 साल तक युवा हो जायेगी। वर्तमान में थल सेना के ग्रुप वाइ के जवान का अधिकतम सेवाकाल 19 साल या उसकी रिटायरमेंट उम्र 42 साल और ग्रुप एक्स वाले जवान का सेवाकाल 22 साल है। इसी तरह नायक का सेवाकाल 24 साल, हवलदार का 26 साल, नायब सूबेदार का 30 साल, सूबेदार का 30 साल और सूबेदार मेजर का सेवाकाल 34 साल या उम्र सीमा 54 साल है। जो भी जवान फौज में भर्ती होता है उसकी अभिलाषा 34 साल वाले सूबेदार मेजर तक पहुंचने की होती है। लेकिन 4 साल की सिपाहीगिरी करने वाले अग्निवीरों के लिये सुबेदार तक पहुंचने के रास्ते तो बंद हो ही गये। सरकार ने अग्निपथ योजना के माध्यम से सेना में भर्ती का शॉर्टकट रास्ता तो निकाल लिया मगर स्थाई भर्ती को लेकर एक सवाल भी छोड़ दिया। सरकार के इस कदम को चरणबद्ध तरीके से सेना का आकार छोटा करने और उसकी जगह सेना को हाइटेक करने का भी माना जा रहा है। लेकिन सेना का आकार छोटा होने से रोजगार के अवसर स्वतः ही कम हो जायेंगे।

कमांडर बनने की उम्मदों पर भी फिरा पानी 

सेना में सबसे निचले स्तर पर एक युवा सिपाही रैंक से कैरियर की शुरुआत करता है। फिर अपनी मेहनत, निष्ठा, बहादुरी और काबिलयत के बलबुते वह लांस नायक, नायक, हवलदार, नायब सूबेदार, सूबेदार और फिर सूबेदार मेजर के पद तक पहुंच कर उसे अपने साथियों को कमाण्ड करने का अवसर मिलता है। स्वर्गीय सीडीएस जनरल बिपिन रावत के पिता एक जवान के रूप में भर्ती हुये और लेफ्टिनेंट जनरल के पर से रिटायर हुये थे। महज 4 साल की नौकरी वाले अग्निवीरों केे लिये ये सम्मान और पदोन्नतियां महज ख्वाब बन कर रह जायेंगी।

6 महीने में तो अधपका सिपाही ही बनेगा अग्निवीर 

सेना के ट्रेनी जवान को रंगरूट कहा जाता है, जिसके बारे में धारणा है कि उसे जितना कसा जायेगा वह उतना ही निखरेगा। टेªनिंग में वह जितना पसीना बहायेगा, रणभूमि में उसका उतना ही कम खून बहेगा। उसे शरीर के साथ ही मानसिक रूप से इतना मजबूत बनाया जाता है ताकि वह किसी भी तरह के खतरे का सामना कर सके। मोटिवेशन से उसके दिलो दिमाग से मौत का खौफ निकाला जाता है ताकि वक्त आने पर सर्वोच्च बलिदान के लिये भी तैयार रहे। लेकिन ये अग्निवीर न तो पूरी तरह प्रशिक्षित होंगे और ना ही पूरे सैनिक होंगे। इतना ज्यादा मोटिवेशन 6 महीने में नहीं मिलता। एक जवान को पूरे 28 हफ्तों की कठोर ट्रेनिंग के बाद ही थल सेना में शामिल किया जाता है। फिर भी माना जाता है कि एक जवान 5 या 6 साल की सेवा के बाद ही परफेक्ट सैनिक बन पाता है।

अनुशासनहीनता का भी रिस्क

रक्षा मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार इन सैनिकों को ‘‘अग्निवीर’’ कहा जायेगा और वे सशस्त्र बलों में एक अलग रैंक बनायेंगे जो किसी भी मौजूदा रैंक से अलग होगी। थल सेना में जवान को रायफल मैन, सिपाही, गनर, पैरा ट्रूपर, ग्रिनेडियर, सैपर और गार्डसमैन आदि के नाम से संबोधित किया जाता है। नेवी में उन्हें सीमैन और वायुसेना में ऐयरमैन कहा जाता है। इस तरह देखा जाय तो तीनों सेनाओं में एक नया काडर शुरू हो जायेगा। जिसे समानान्तर ही कहा जा सकता है। ये नये ‘‘अग्निवीर’’ रेगुलर यूनिटों में कैसे एडजस्ट हो पायेंगे? नियमित सैनिकों के साथ इनका और इनसे नियमित सैनिकों का व्यवहार कैसा होगा? चूंकि ये केवल 4 साल के सैनिक हैं इसलिये अपने वरिष्ठों के साथ इनका तालमेल और अनुशासन कैसा होगा, इसे लेकर भी भारी आशंकाएं ही नहीं बल्कि भय भी है। आजकल अनुशासनहीनता के मामले बढ़ रहे हैं।

पैरामिलिट्री में आपस में गोलीबारी की कई घटनाएं सामने आ रही है। फौज को ‘‘प्रोफेशन ऑफ आर्म्स’’ कहा जाता है। सैनिक का सबसे करीबी दोस्त या रिस्तेदार उसका हथियार ही होता है। सेना की यूनिटों में नये हथियारबंद काडर का खड़ा होना कई आशंकाओं को जन्म देता है। इन अग्निवीरों को थल सेना में सेक्शन या पलाटून स्तर पर एक एनसीओ और जेसीओ या वायु सेना में कारपोरल, सार्जेंट या वारंट आफिसर तथा नेवी में पेटी आफिसर, चीफ पेटी आफिसर या मास्टर चीफ पेटी आफिसर ही कमाण्ड करेगा, जोकि रेगुलर सेना के होंगे।

मिलिशिया बनने का खतरा, गोपनीयता पर भी आशंका

सेना की गोपनीयता पर आशंका भी उठ रही है, क्योंकि विगत में दुश्मन द्वारा हमारे सैनिकों को हनी ट्रैप आदि में फंसाने की घटनायें सामने आ चुकी हैं। जब इतने मोटिवेटेड और पक्के सैनिक को फंसाया जा सकता है तो 21 साल से कम उम्र के कच्चे सैनिकों को फंसाने में और भी असानी हो जायेगी। खासकर 4 साल के बाद की बेरोजगारी के दिनों में वे खुद ही मकड़जाल में फंस सकते हैं। धर्म, जाति और भाषा के नाम पर जो उग्रता पनप रही है। स्वर्ण मंदिर को खालिस्तानियों का दुर्ग बनाने वाला सुबेग सिंह आखिर फौजी ही तो था। बजरंगदल जैसे संगठन खुले आम कानून व्यवस्था को अपने हाथ में ले रहे हैं। धर्म की रक्षा में हथियार उठाने की आवाजें बेरोकटोक उठ रही हैं। गांधी जी के पौत्र तुषार गांधी का भय पुलिस के होते हुये लाठी-डंडों और तलवारों का प्रशिक्षण दिये जाने से ही तो पैदा हुआ होगा।

युवाओं का पैतृक यूनिटों से रहता है भावनात्मक लगाव 

हमारे यहां सेना की विभिन्न यूनिटों से पीढ़ियों का भावनात्मक लगाव होता है। कोई सैनिक रिटायर होता है तो भर्ती होने पर उसके बेटे को अपने पिता की ही यूनिट दी जाती है। इसी तरह एक अफसर के बेटे को भी पिता की यूनिट एलाट की जाती है, क्योंकि उस यूनिट से सैनिक का पीढ़ियों का भावनात्मक लगाव होता है। अग्निपथ की 4 साला योजना पीढ़ियों के उस लगाव की कड़ी को तोड़ देगी। फौज में भावनात्मक लगाव देशभक्ति, बहादुरी और सर्वोच्च बलिदान के लिये मोटिवेट करता है। कहा जा रहा है कि 25 प्रतिशत अग्निवीरों को सेना में स्थाई कर दिया जायेगा। स्थाई नौकरी के लिये भ्रष्टाचार का एक नया श्रोत शुरू हो सकता है।

पेंशन राशि तो बचेगी मगर देश की सुरक्षा का क्या होगा?

सरकार इस योजना को सेना और सेना भर्ती में युगान्तरकारी सुधार मान रही है। लेकिन इसके पीछे सरकार की मंशा सेना का आकार छोटा करने के साथ ही पेंशन आदि से लाखों करोड़ बचाने की भी है। केन्द्र और राज्य सरकारों ने अपने कर्मचारियों की पेंशन 2005 में ही बंद कर दी थी। लेकिन सेना और अर्द्धसैनिक बलों की पंेशन बंद करना आसान न था। वर्ष 2022-23 के 5,25,116 करोड़ के रक्षा बजट में पेंशन मद में 1,19,96 करोड़ का प्रावधान किया गया है। बचत की भावना तो अच्छी ही है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ बचत के नाम पर समझौता नहीं किया जा सकता।

 

 

 

 

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