गाँधी जिंदा होते तो आज देश तरक्की की राह पर होता।।
–देवेश आदमी–
कोई यदि मुझ से पूछे कि गाँधी जी जिंदा होते तो आज 2022 में क्या कर रहे होते ? सवाल कठिन है और जवाब सरल क्यों कि जिस तरह से गाँधी जी का व्यक्तित्व था जिस तहत की उन की शैली थी आज अनुमान लगाना आसान है कि वे यदि जिंदा होते तो क्या कर रहे होते।
यदि गाँधी जी जिंदा होते तो वे देश में फैली धार्मिक अराजकता के खिलाप लड़ रहे होते। वे डिमोनीटाइजेश के विरुद्ध लड़ रहे होते वे GST का विरोध करते वे नमक पर लगे टेक्स का विरोध करते आज फिर एक नमक आंदोलन होता। दूध पर लगे टेक्स का विरोध करते निजीकरण के खिलाप वे आंदोलन करते और जेल भरो आंदोलन में लाखों युवा आज जेल में सड़ रहे होते। गाँधी होते तो उत्तराखंड में शिक्षा चिकित्सा संचार व भृष्टाचार के खिलाप वे लोगों को लड़ना सिखाते हो सकता महिलाएं आज के दिल देहरादून सचिवालय में दरांती लेकर खड़ी होती।
गांधी होते तो तमिलनाडु महाराष्ट्र जल विवाद सुलझ चुका होता। गाँधी एक बनिया थे तो GST के नियमों का वे विरोध करते और आज GST या तो सब की समझ में आता या भी GST को सरकार लागू नही करती। गाँधी होते तो सरकारों के हजारों लाखों करोड़ की घोषणाओं का एक अंश धरातल पर होता। कृषि योजना जिस किसान के लिए बनती उसे उस का लाभ मिलता किसान आत्महत्या नही करते देश में देहव्यापार नही होता बच्चे कुपोषण का शिकार नही होते कानून सब के लिए होता शिक्षा चिकित्सा न्याय हर नागरिक को समान रूप से मिलता।
गांधी होते तो देश में दलितों को कुचला नही जाता मन्दिर मठों के निर्माण से पहले शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता। शिक्षा नीतियों में सुधार होता। धर्म का पाखण्ड नही होता पूंजीवाद सामंतवाद खत्म होता। देश में समाजवाद पर बल दिया जाता। लोकतंत्र की हत्या रुकती विधायक सांसदों की खरीदफरोख्त नही होती।
गाँधी होते तो आज हमारे देश के नेता उन्हें सरकारी काम में बाधा डालने समाज को बरकलाने देश में अराजकता का माहौल पैदा करने के जुल्म में जेल डाल देते। गाँधी राम मंदिर के लिए लड़ते तो सबरिकांठा में महिलाओं के प्रवेश के लिए जेल जाते गाँधी होते तो वे देश में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा में आंदोलन करते जिस से उन्हें देश निकाल होता और वो पाकिस्तान की शरण में जाते। पाकिस्तान में रह कर वे वहां के अल्पसंख्यकों की हितों की लड़ाई लड़ते जैसे हिन्दू बौद्ध सिखों के हितों की रक्षा के लिए उन्हें पाकिस्तान से देश निकाल होता और वे सऊदी की शरण में जाते। सऊदी जाकर वे शिया सुन्नी की लड़ाई में कूदते ओर सऊदी से भी उन्हें देश निकाल होकर बलूचिस्तान काबुल अफगानिस्तान जैसे दशों की शरण में जाना पड़ता। जहां वे फिर माइनॉरिटी धर्मिक कट्टरता पूंजीवाद आतंकवाद चीन ह्नस्तक्षेप अमरीका की दखल अफीम की खेती जैसे मुद्दों पर आंदोलन करते और आज अंतराष्ट्रीय अदालत में अपना मुकदमा खुद लड़ रहे होते।
गाँधी होते तो आज वे देश के व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के बच्चों को समझा सकते कि उन्होंने भगतसिंह का मुकदमा क्यों नही लड़ा। गाँधी होते तो वह सारी दुनिया के लिए सिरदर्द बन जाते या तो उन्हें कोई गौड़से गोली मारता या फिर वे किसी जेल में अपने आखरी दिन गुजार रहे होते। उन्हें समाज का दबा कुचला वर्ग अपने अपने धर्म के अनुसार पूजता कोई उन्हें राम कहता तो कोई अल्लाह तो कोई ईशु का रूप बौद्ध भिक्षु उन्हें 2022 का दलाई कहते तो जैन उन्हें जैन मुनि कहते हर धर्म के गरीब असहाय निर्धन उन की तस्बीर अपने जेब में रखते। देश दुनिया में दो समुदाय होते गरीब और अमित दो ही धर्म होते गरीब और अमीर दो जाति होती गरीब और अमीर।
गांधी जिंदा होते तो भारतीय पैसे पर उन की तस्बीर नही होती देश के धनकुबेरों की तसबीरें भारतीय मुद्रा पर अंकित होती।
गांधी होते तो देश में झूठे पर्यावरण प्रेमियों का कुनबा तैयार नही होता वन्यजीवों का सरक्षण होता मानवाधिकार आयोग अपना काम ठीक से करता अवसरवाद का खात्मा होता। लोकतंत्र स्थापित होता संसद में नोटो के बंडल नही लहराते कोल घोटाला cwg घोटाला 2G घोटाला स्टाम्प घोटाला नही होता। झूठा हिंदुत्ववादी समाज नही होता गोवंश की रक्षा होती गाँव से पलायन रुकता चराहों पर नमाज व हनुमान चालीसा का पाठ नही होता गाँधी होते तो आज का दिन आज नही होता आज का दिन कल होता। गाँधी होते तो नेशनल कॉंग्रेस की इतनी बुरी दसा नही होती। देश को एक मजबूत विपक्ष मिलता संसद की कार्यवाही बाधित नही होती देश का पैसा स्विस बैंक में नही सड़ता काला धन नही होता स्वदेशी उत्तपादों पर भरोसा होता।