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पुलिस में ही महिलाएं सबसे अधिक असुरक्षित !

-जयसिंह रावत –

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने गत रविवार को चेन्नई में पुलिस बलों से महिलाओं के विरूद्ध अपराधों से संबंधित मामलों में अतिरिक्त संवेदनशील होने की अपील की। उन्होंने कहा कि महिलाओं को आगे बढ़ने और उनकी पूरी क्षमता हासिल करने में सहायता करने के लिए महिलाओं के लिए सुरक्षित और सक्षमकारी वातावरण का निर्माण करना बहुत महत्वपूर्ण है।श्री नायडू ने चेन्नई में तमिलनाडु पुलिस को प्रेसिडेंशियल पुलिस कलर प्रदान करने के बाद पुलिस कर्मियों को संबोधित करते हुए, देश में सबसे अधिक महिला पुलिस थानों और महिला पुलिस कर्मियों की दूसरी सबसे बड़ी संख्या होने के लिए तमिलनाडु की प्रशंसा की। उन्होंने जोर देकर कहा कि महिलाओं के लिए सुरक्षित और सक्षमकारी वातावरण का निर्माण करना उनकी प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। महिलाएं हमारी आधी आबादी हैं लेकिन उन्हें विभिन्न मोर्चों पर समान अवसर प्रदान करने के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

उपराष्ट्रपति का तमिलनाडू में इस तरह के उद्गार व्यक्त करना इसलिये भी गौरतलब है कि पिछले ही साल दिसम्बर में मद्रास हाइ कोर्ट ने एक पुलिस इंस्पेक्टर द्वारा महिला कांस्टेबल के यौन उत्पीड़ के मामले में कहा था कि देश में पुलिस बल में महिलाओं का सबसे अधिक यौन उत्पीड़न होता है। अपने फैसले में उक्त जज ने अपने एक पूर्व फैसले का भी उल्लेख किया था जिसमें उन्होंने कहा कि एक शीर्ष पुलिस अधिकारी अपनी मातहत आइपीएस अधिकारी का गंदे संदेश भेज कर उत्पीड़न कर रहा था।

हमारे देश में कई अन्य संस्थानों की तरह, पुलिस बल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। 2019 में जारी ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (BPRD) के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय पुलिस में महिलाओं की भर्ती में 21 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। कुल मिलाकर, 1 जनवरी, 2018 को पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़कर 1.69 लाख हो गई, जो एक साल पहले 2017 में 1.40 लाख थी। पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो (2020 तक) के अनुसार, भारत के पुलिस बल में महिलाओं की संख्या केवल 8-98 प्रतिशत है । यह 2009 में गृह मंत्रालय द्वारा निर्धारित 33 प्रतिशत महिलाओं की भागीदारी के लक्ष्य से कम है। यह कम प्रतिनिधित्व राज्य सरकारों द्वारा पुलिस में महिलाओं के लिए 4 प्रतिशत से 38 प्रतिशत तक आरक्षण लक्ष्य निर्धारित करने के बावजूद है । 7.28 प्रतिशत में से 0.85 प्रतिशत पर्यवेक्षी रैंक के हैं, 9.76 प्रतिशत विवेचना/ जांच  स्तर  के हैं और 89.37 प्रतिशत कांस्टेबुलरी के हैं।

यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इनमें से अधिकांश महिलाएं पर्यवेक्षी ( supervisory) पदों पर केवल एक प्रतिशत के साथ कांस्टेबल जैसे प्रवेश स्तर के पदों पर काबिज हैं। यहां तक कि जो महिलाएं पुलिस बल में आती हैं] वे ज्यादातर इन- हाउस कार्यों पर काम करती हैं।  जैसे कि फाइलों डेटा का रखरखाव, न कि फील्ड, आधारित कार्य, जैसे गश्त, कानून और व्यवस्था, आदि ।

पुलिस विभाग में यौन उत्पीड़न महिलाओं को बल में नौकरी की तलाश करने से हतोत्साहित करता है, जिसका सीधा असर देश में आपराधिक न्याय प्रणाली पर पड़ता है। पुलिस सेवाओं को महिलाओं के लिए एक उपयुक्त और सुरक्षित करियर विकल्प बनाने की दिशा में काम करने के बजाय  पुरुष प्रधान पुलिस विभाग अपनी वर्तमान महिला कर्मचारियों को को समुचित सुरक्षा नहीं दे पा रहा है । देश भर के पुलिस विभाग में सेक्सिज्म और यौन उत्पीड़न आम बात है। पिछले वर्ष के आंकणों के अनुसार अकेले दिल्ली में 150 से अधिक पुलिस कर्मी बलात्कार, पीछा करना, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न और छेड़छाड़ जैसे गंभीर अपराधों के लिए जांच के दायरे में थे ।

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी और बीएसएफ के महानिदेशक रहे, प्रकाश सिंह, जो भारत में पुलिस सुधार में सबसे आगे रहे हैं, ने एक साक्षात्कार में कहा था कि “हालांकि इस मामले में कोई आंकड़े संकलित नहीं किए गए हैं,फिर भी मैं इस तथ्य से परिचित हूं कि पुलिस बलों में शामिल होने वाली महिलाएं असुरक्षित हैं। विशेष रूप से संकटग्रस्त महिलाएं सबसे निचले पायदान पर हैं, जैसे कॉन्स्टेबुलरी में। सब-इंस्पेक्टर सहित अधिकारी खुद की देखभाल कर सकती हैं, लेकिन बल में शामिल होने वाली युवा लड़कियों को खतरा ज्यादा होता है।”

महिला पुलिस का रिटेंशन भी उतना ही जरूरी है। ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट के आंकणों  से पता चलता है कि यौन उत्पीड़न और लैंगिक भेदभाव के कारण पुलिसकर्मियों में नौकरी छोड़ने की उच्च दर है। जाहिर है, जब तक राज्य सरकारें अपने  संस्थानों को जेंडर-फ्रेंडली नहीं बनातीं और महिलाओं की जरूरतों और भूमिकाओं को पूरा करने वाली सुविधाएं नहीं बनातीं, तब तक महिला पुलिस  के मनोबल को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण है। इसमें क्रेच स्थापित करना, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकना और अलग विश्राम कक्ष बनाना शामिल है। अफसोस की बात है कि पुलिस प्रशिक्षण वाले स्कूलों में भी ये सुविधाएं नहीं हैं, यहां तक कि अलग शौचालयों जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं।

 

महिलाओं के लिए विशिष्ट संवैधानिक प्रावधान इस प्रकार हैं:

1-अनुच्छेद 14: पुरुषों और महिलाओं को राजनीति, आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में समान अधिकार

प्रदान करता है

2 अनुच्छेद 15:  धर्म, जाति, जाति, लिंग आदि के आधार पर किसी भी नागरिक से भेदभाव प्रतिबंधित करता है

अनुच्छेद 16: राज्य के अधीन किसी कार्यालय में नियुक्ति/ रोजगार से संबंधित अवसर मामले में

समानता का प्रावधान करता है

3-. संविधान का अनुच्छेद 23  :   मनुष्यों की ट्रैफिकिंग, जबरन श्रम और बेगार और अन्य समान रूपों को प्रतिबंधित करता है और इसका कोई भी उल्लंघन एक दंडनीय अपराध बनाता है।

4. अनुच्छेद 39 (ए) (डी) : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39 (d) का उद्देश्य समान कार्य के लिए पुरुषों और महिलाओं के बीच समान वेतन सुनिश्चित करना है।

5-अनुच्छेद 39a : में क्या कहा गया है कि  “राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे कि समान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह, विशिष्टतया, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योषयता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए”,

2014 में संविधान के 39 में संशोधन किया गया था और निम्नलिखित प्रावधान शामिल किया गया था:

राज्य में: विशेष रूप से अपनी नीति को सुरक्षित करने की दिशा में निर्देशित करें (च) कि बच्चों को अवसर और सुविधाएं दी जाती हैं, स्वस्थ तरीके से और की स्थितियों में विकसित होना, स्वतंत्रता और गरिमा और वह बचपन और युवावस्था,  शोषण के खिलाफ और नैतिकता के खिलाफ संरक्षित हैं, और भौतिक परित्याग।

6 अनुच्छेद 42: काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध: राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिए और प्रसूति सहायता के लिए उपबंध करेगा।

 

 

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