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उत्तराखण्ड : धामी शासन में पुलिसिया फरमान- आइएएस रणवीर से छीना  सूचना


-जयसिंह रावत
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की करीबी के चलते 1996 बैच के आइपीएस अभिनव कुमार की उत्तराखण्ड की सत्ता के गलियारे में धाक कम होने का नाम नहीं ले रही है, जबकि शासन में बैठी आइएएस ही नहीं बल्कि पीसीएस लॉबी भी अभिनव की धार को कुन्द करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। उत्तराखण्ड में किसी भी भाजपाई मुख्यमंत्री ने आज तक अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया और जानकारों का विश्वास है कि इस बार अगर तख्ता पलट हुआ तो उसकी पृष्ठ में कहीं न कहीं अभिनव कुमार का नाम भी किसी कोने में अवश्य होगा। सत्ता के गलियारों से छन कर आ रही सूचनाओं के अनुसार 1996 बैच के आइपीएस अभिनव कुमार आइएसएस और पीसीएस अफसरों के तबादलों में भी पूरी दखल रख रहे हैं, और मुख्यमंत्री के नाम से बाकी बड़े फैसले तो हो ही रहे हैं।

                                                             IAS Ranvir Singh Chauhan

रणवीर को गवाना पड़ा सूचना महानिदेशालय

राज्य सरकार ने मंगलवार को अपनी नौकरशाही के तबादलों की जो लिस्ट जारी की है उसमें 13 आइएएस और 10 पीसीएस के साथ सचिवालय सेवा के अधिकारी भी शामिल हैं जो कि शासन में अपर सचिव स्तर के अधिकारी हैं। इस लिस्ट में सचिन कुर्वे भी हैं जिनका कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य के साथ टकराव हो गया था। कुर्वे के अलावा लिस्ट में जगह पाने वाले रणवीर सिंह चौहान भी हैं। जिनसे न केवल सूचना महानिदेशक का बल्कि अपर सचिव सूचना का भी कार्यभार छीन लिया गया है। जबकि पत्रकारों से सीधे ताल्लुक रखने वाले सूचना विभाग को रणवीर चौहान जैसे मृदुभाषी और व्यवहार कुशल अधिकारी की आवश्यकता है। सूचना महानिदेशक रहते हुये रणवीर के प्रेस के साथ मधुर सम्बन्ध रहे हैं, जबकि इसी पद पर पंकज पाण्डे जैसे अहंकारी अधिकारी भी रहे जिनसे पत्रकार आसानी से नहीं मिल पाते थे और वह पत्रकारों के साथ ऐसा व्यवहार करते थे जैसा कि वह अपने मातहतों के साथ करते होंगे। बहारहाल पंकज पाण्डे का अहंकार उनके कर्माें ने ठण्डा कर दिया था

टकराव सूचना विभाग के अफसर के अकारण तबादले को लेकर था

माना जा रहा है कि रणवीर चौहान से सूचना विभाग छीनने में अभिनव कुमार की ही मुख्य भूमिका है। अभिनव 1996 बैच के आइपीएस हैं। क्योंकि वह सूचना विभाग के संयुक्त निदेशक कलमसिंह चौहान के तबादले के प्रकरण को लेकर स्वयं का अपमानित महसूस कर रहे थे। दरअसल अभिनव कुमार ने बिना किसी तर्कसंगत कारण बताये शासन में विशेष प्रमुख सचिव सूचना की हैसियत से कलम सिंह चौहान को बिना सूचना महानिदेशक की राय लिये तत्काल प्रभाव से हल्द्वानी स्थानान्तरित करने का आदेश जारी कर दिया था। चूंकि हल्द्वानी में विभाग का न तो इतना वरिष्ठ पद श्रृजित है और ना ही वहां इस पद के योग्य सेवा है। ऊपर से तत्काल ज्वाइनिंग देने का फरमान कलम सिंह चौहान को तो नागवार गुजरना ही था। साथ ही समूचा सूचना विभाग और पत्रकार जगत भी इस आदेश से अचम्भित था। चूंकि ऐसा ही एक बार विभाग के वरिष्ठतम् अधिकारी अनिल चन्दोला के साथ भी हो गया था। चन्दोला को तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा और उनके नाम पर अभिनव की तरह ही शासन में मजबूत दखल रखने वाले सुबोध उनियाल के कोपभाजन के कारण पद समेत हल्द्वानी स्थानान्तरित कर दिया गया था। हालांकि उस समय भी डा0 चन्दोला ने हल्द्वानी ज्वाइन नहीं किया और अपने संबंधों के बल पर मामला अन्ततः सुल्टा लिया था।

                                                                           Kalam Singh Chauhan Jt. director information

चहेते पुलिस अफसर केे लिये बना विशेष प्रमुख सचिव का पद

उस समय अनिल चन्दोला के साथ कुछ पत्रकारों की सहानुभूति अवश्य थी, फिर भी उन्होंने अपना केस स्वयं ही अपने बलबूते पर सुलझा कर अपना तबादला निरस्त करा दिया था। लेकिन इस बार कलम सिंह चौहान अकेले नहीं थे। उनके पीछे महानिदेशक और अपर सचिव रणवीर चौहान खड़े हो गये और रणवीर के पीछे समूची आइएएस और पीसीएस की बिरादरियां खड़ी हो गयीं। कारण साफ था। नौकरशाहों की इन बिरादरियों को एक पुलिसवाले (आइपीएस) की शासन में चौधराहट बेहद खल रही थी। कुछ अपवादों को छोड़ कर शासन इन्हीं दो छोटी बड़ी बिरादरियों के द्वारा चलाया जाता है। उन्हें प्रशासन की ट्रेनिंग हासिल होती है जबकि आइपीएस या पीपीएस को एक फोर्स की ट्रेनिंग दी जाती है और उनकी जिम्मेदारी प्रशासन नहीं बल्कि प्रशासन के अनुसार कानून व्यवस्था की रखवाली होती है। लेकिन अभिनव कुमार सत्ता के गलियारे में मुख्यमंत्री धामी के बाद दूसरे नम्बर के शक्तिशाली सख्श हैं जिन्हें आइएएस पर भी हुकूमत चलाने के लिये विशेष प्रमुख सचिव का दर्जा दिया गया है। उत्तराखण्ड में पहली बार अभिनव कुमार के लिये यह पद श्रृजित किया गया है।

                                               1996 batch IPS Abhinav Kumar who is number 2 in power corridore

आइपीएस के अधीन असहज हैं आइएएस

मुख्यमंत्री के करीब होने के नाते अभिनव का दबदबा होना स्वाभाविक ही है लेकिन उनके दबदबे को सचिवालय नियमावली के तहत वैधानिक स्वरूप देने के लिये शासन में विशेष प्रमुख सचिव का पद श्रृजित किया गया। आज तक ऐसा पहले नहीं हुआ था। इस व्यवस्था के अनुसार सचिवालय, जहां से शासन चलता है, के प्रोटोकॉल के अनुसार तमाम सचिव और अपर सचिव स्तर के आइएएस और पीसीएस अभिनव कुमार के नीचे आ गये। अभिनव कुमार मुख्यमंत्री धामी के चाहे कितने भी करीबी या राजदार क्यों न हों मगर शासन चलाने वाली मशीनरी को अभिनव की चौधराहट हरगिज गंवारा नहीं है और इसका असर शासन में देखा भी जा रहा है। धामी गलतफहमी में हैं, उनके आदेशों को नौकरशाही गंभीरता से नहीं ले रही है। उदाहरण कॉमन सिविल कोड का है। नौकरशाही ने उन्हें बताया नहीं कि केन्द्रीय कानूनों के चलते राज्य द्वारा उन्हीं कानूनों के समानान्तर अपना कानून लागू ही नहीं किया सकता।

रणवीर ने दिखायी थी अभिनव को आइएएस की पावर

बहरहाल अभिनव ने अपनी हेकड़ी दिखाने के लिये कलम सिंह चौहान का तबदला आदेश तो जारी कर दिया मगर विभागीय प्रमुख रणवीर चौहान ने कलमसिंह को रिलीव ही नहीं किया। कोई भी कर्मचारी जबतक रिलीव नहीं होता तब तक नयी ज्वाइनिंग भी नहीं दे सकता। जबकि कलम सिंह को अविलम्ब हल्द्वानी जाने के आदेश अभिनव ने दिये थे। अभिनव ने पुलिस की ट्रेनिंग ले रखी है जबकि रणवीर को प्रशासन का प्रशिक्षण और अनुभव प्राप्त है। उस वक्त आइएएस ही नहीं पीसीएस लॉबी भी रणवीर के साथ थी। ? मजबूरन कलमसिंह चौहान का बेतुका तबादला निरस्त करना पड़ा और अभिनव को मुंह की खानी पड़ी। एक अहंकारी के लिये ऐसी हार पच भी कैसे सकती?

अनुभवहीन शासकों का जरूरत होती है शातिर सारथी की

नेताओं के भाग से या तिकड़म से मुख्यमंत्री पद का छींका टूट कर उनके मुंह में आ तो जाता है लेकिन पद को चलाना उतना आसान नहीं होता जितना कि हासिल करना होता है। धरती पर गाय को सांस में ऑक्सीजन लेने और सांस में ऑक्सीजन छोड़ने वाला पशु बताने और भारत पर 200 सालों तक अमेरिका का राज होने का ज्ञान देने वाले महापुरुष जब मुख्यमंत्री बनेंगे तो उन्हें राजनीति के कुरुक्षेत्र में अभिनव या ओम प्रकाश जैसे सारथियों की मदद तो लेनी ही होगी। पंडित नारायण दत्त तिवारी के बाद लगभग सभी मुख्यमंत्रियों ने ऐसे सारथियों के सहारे शासन चलाया। ये सारथी शासन की पंचीदगियों और वैभव के श्रोतों से अनविज्ञ नेताओं के हरफनमौला बनकर काम आते रहे।

चार बांस चौबीस गज, मगर निशाना खुद बने चौहान

मुख्यमंत्री का सबसे करीबी होने के नाते अभिनव कुमार का उत्तराखण्ड के शासन में अब भी डंका बजता है। इसलिये नौकरशाहों के तबादलों में भी उनकी दखल स्वाभाविक ही है। जाहिर है कि रणवीर से हिसाब चुकता करने का यही सही मौका था जिसे अभिनव कुमार चूके नहीं और रणवीर से वह सूचना विभाग छीन लिया गया जहां अभिनव को रुसवाई मिली थी। भारत के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के लिये रची गयी महाकवि चन्दबरदायी की कालजयी यह कविता अवसरों का सदुपयोग या दुरुपयोग करने के मामले में आज भी दुहराई जाती है। उन्होंने उस नाजुक घड़ी में कहा था, ‘‘ चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान’’। लेकिन इस बार सुल्तान नहीं बल्कि चौहान ही निशाने पर आ गया।

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