किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों में राजनीतिक नियुक्तियो का खेल
देहरादून, 16 नवंबर (उ हि ) उत्तराखंड में किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों का गठन पिछले दो सालों से नहीं किया गया । लेकिन अब जब कि चयन की प्रक्रिया शुरू हुयी भी तो योग्य और निष्पक्ष लोगो का चयन करने के बजाय सत्ताधारी दल के लोगों को एडजस्ट करने का प्लान पहले ही तय हो गया।
आज तक इन पदों पर साक्षात्कार नही होते थे ,लेकिन इस बार पहले जिला स्तर पर और अब राज्य स्तर पर साक्षात्कार लिया गया,पिछली बोर्ड ,समिति का कार्यकाल मई 2019 में समाप्त हो चुका है अग्रिम आदेशों तक कार्य कर रहे है ,विज्ञप्ति जारी होने के लगभग तीन वर्ष का समय हो चुका है परन्तु नये बोर्ड/ समितियों का गठन नही हो पाया ,जिसका मुख्य कारण सत्तारूढ़ दल के कार्यकर्ताओं का सामाजिक क्षेत्र में कार्य करने का अनुभव न होना था ,28-29 अक्टूबर से 12 नवम्बर के बीच हुए विभिन्न जनपदों के साक्षात्कार में सत्तारूढ़ दल के पदाधिकारी, उनकी पत्नियां और परिजन ही ज्यादा राजधानी में दिखाई दिये,जिससे इस आशंका को बल मिलता है कि पूरे प्रदेश के 13जनपदों में लगभग 91पदों पर अपने कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करने के लिए इतना समय और दो साक्षात्कार लिये जा रहे है।
प्रदेश में महिला कल्याण विभाग की ओर से किशोर न्याय अधिनियम के तहत प्रत्येक जनपद में किशोर न्याय बोर्ड और बाल कल्याण समितियों का गठन किया जाता है ,जिसके लिए उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में राज्य स्तर पर चयन समिति गठित होती है ।प्रत्येक जनपद में दो सदस्य किशोर न्याय बोर्ड तथा एक अध्यक्ष और चार सदस्य बाल कल्याण समिति में होते है,एक-2 महिला सदस्य अनिवार्य है । एक से अधिक बोर्ड और समितियों का गठन भी किया जा सकता है । जिनका कार्यकाल तीन वर्ष के लिए होता है,सभी को प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट के कार्यो का सम्पादन करने का अधिकार होता है ,जिसके लिए अन्य शर्तों के अलावा 07 वर्षो का बच्चों के साथ या सामाजिक कार्य करने का अनुभव होना चाहिए, किसी राजनैतिक दल का सदस्य नही होने का नोटरी से शपथपत्र प्रस्तुत करना पड़ता है।