पहाड़ों में सूचना पट्ट तक ही सीमित रह गये आयुर्वेदिक औषधालय
–रिखणीखाल से प्रभुपाल रावत–
पहाड़ों में ब्रिटिश काल से चले आ रहे आयुर्वेदिक औषधालय अब सिर्फ सूचना पट्ट तक ही सीमित रह गये।
ये आयुर्वेदिक औषधालय रिखणीखाल प्रखंड के दूरस्थ गाँव द्वारी में हुआ करता था,जिसका संचालन सन 1880 से सन 1965 तक पंडित वैद्यराज रामानंद मैदोला जी किया करते थे।तत्पश्चात उनके ज्येष्ठ पुत्र पंडित वैद्यराज चिरंजी लाल मैंदोला ने चलाया, जो कि सन 1990 तक चला।इस औषधालय में फल,फूलों, जड़ी, बूटियों आदि से निर्मित औषधियाँ तैयार की जाती थी।उस समय तक इस पूरे क्षेत्र में एक भी औषधालय व अस्पताल नहीं होता था।पूरा इलाका इन्हीं के द्वारा निर्मित दवाइयों पर निर्भर रहता था।ये दवाइयाँ अचूक व कारगर साबित होती थी।पंडित चिरंजी लाल मैदोला के स्वर्गलोक जाने के बाद ये सिर्फ बोर्ड तक ही सीमित रह गया।
अभी अभी इस कमरे के अन्दर हजारों शीशियों, पुडिया आज भी मौजूद हैं। उस वक्त कोई भी दवाइयाँ पीसकर बनायी जाती थी।ये औषधालय इस इलाके में प्रसिद्ध था।
अब ये नाममात्र का बोर्ड तक रह गया है।इसके अन्दर अभी भी कई औषधियाँ निष्प्रयोज्य हैं।