ब्लॉग

पौड़ी के विधायक कुशला नंद के मुरीद थे हिटलर – मुसोलिनी

– डा0 योगेश धसमाना
देशभक्त और स्वाधीनता सेनानी डॉ कुशलानंद गैरोला ने ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना में मेडिकल परीक्षा एम.डी. के साथ उत्तीर्ण करने के साथ यूरोप के अन्य देशों में अध्ययन कर रहे भारतीय छात्रों के बीच सक्रिय रूप से भारत की आजादी के लिए जन्नत तैयार करने का ऐतिहासिक कार्य किया । अंग्रेजी , फ्रेंच , जर्मन और इटालियन भाषाओं में बेमिसाल पकड़ के चलते हिटलर , मुसोलिनी और फ्रांस के दार्शनिक राम रॉला उनके मुरीद हो गए थे ।

सुभाष चंद्र बोस के साथ काम करते हुए इंडो सेंट्रल यूरोपियन कमर्शियल सोसाइटी में मंत्री पद पर कार्य करते हुए उन्होंने अंग्रेजी साम्राज्यवाद के विरुद्ध विश्व के युवाओं को संगठित करने का ऐतिहासिक कार्य किया था । इस विलक्षण प्रतिभा से प्रवाभित होकर जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने वार्ता के लिए आमंत्रित कर , उनसे नाजियों के ब्रिटेन के विरुद्ध संघर्ष के लिए मदद मांगी थी । किंतु हिटलर के इस प्रस्ताव को कुशलानंद ने यह कहकर ठुकरा दिया कि,अभी वह अपने देश की आजादी के लिए संघर्ष कर रहे हैं ।

इसी तरह इटली के मुसोलिनी , फ्रांस के रामा रॉला , ऑस्ट्रिया के प्रधानमंत्री डालफुस, आयरलैंड के प्रधानमंत्री डी. वलरा, आदि विदेशी नेताओं से उनके संपर्कों के कारण यूरोप के अनेक देशों में भारतीय विद्यार्थियों के सत्य अन्य देशों को जनता ने भी तिरंगा फैरा कर भारत की आजादी के प्रति अपना समर्थन दिया । भारत में भी पंडित जवाहरलाल नेहरू , डॉ मदन मोहन मालवीय , डॉ राधाकृष्णन , प्रोफेसर दास गुप्ता , प्रोफेसर सी.वी.रमन , प्रोफेसर बीरबल साहनी , आदि प्रसिद्ध वैज्ञानी कुशलानंद गैरोला की प्रतिभा से बेहद प्रभावित थे ।

1938 में वापस लौटकर , मदन मोहन मालवीय ने उन्हें मेडिकल कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर बना दिया था । इस बीच भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होते ही मालवीय जी ने उन्हें एयर चंद्र सिंह गढ़वाली को बनारस में छात्र आंदोलन की बागडोर सौंपी थी। फलस्वरूप इन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया और दो वर्ष तक इन्ही जेल की सजा हुई । 1945 में जेल से रिहा होने के बाद जवाहरलाल नेहरू में जब इनके भाषण सुने तो उन्होंने गैरोला जी को गढ़वाल के भावी राजनेता के रूप में बताते हुए 1946 को पौड़ी से विधायक का टिकट दिया और वो विधायक भी चुने गए ।

1962 में उन्हें उत्तर प्रदेश की विधान सभा के लिए भी चुना गया । इस महान स्वाधीनता सेनानी का जन्म 15 नवंबर 1906 को टिहरी गढ़वाल की बडियारगढ़ पट्टी के थाती में हुआ था । बाद में इनके परिजन श्रीनगर गढ़वाल में बस गए ।
1927 में आगरा से इंटरमीडिएट पास करने के बाद ये अपने ऑस्ट्रियाई मित्र के माध्यम से वियना चले गए। ये हैरत की बात है कि इस महान स्वाधीनता सेनानी की शौर्य गाथा से उत्तराखंड अनविज्ञ है । हमारी सरकार भी इनके सम्मान के लिए आजतक कुछ नही कर पाई । दो बार उत्तर प्रदेश विधान सभा / विधान परिषद के सदस्य रहने के बावजूद इनका अंतिम जीवन घोर आर्थिक कष्ट में बीता , जिसके लिए उन्हें लखनऊ में क्लिनिक भी चलाना पड़ा । 1970 में लखनऊ में लकवा मार गया । और इस तरह 9 अगस्त , 1976 को लखनऊ में इनका निधन हो गया था । तब इनके निकट इनकी एक मात्र पुत्री और राजनेता चंद्र भानु गुप्त ही उपस्थित थे । उत्तराखंड की जनता राज्य सरकार से निवेदन करती है , कि इनकी स्मृति को जिंदा रखने के लिए देहरादून मेडिकल कॉलेज का नाम डॉ कुशलानंद गैरोला के नाम किया जाए। डॉ कुशलानंद के पारिवारिक भतीजे ब्रिजभूषण गैरोला वतन में डोईवाला से भाजपा के विधायक हैं ।

डॉ योगेश धस्माना

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!