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सावधान – बदरी नारायण भी रूठने वाले हैं …..

डा0 योगेश धस्माना
देवभूमि में भोगवाद की पराकाष्ठा इससे अधिक क्या होगी कि बदरीधाम के पूर्व धर्माधिकारी कोविड काल में जब सरकार यात्रियों से अनावयक यात्रा न करने की सलाह दे रही थी, तब वे एक विडियो के माध्यम से देश के तीर्थयात्री एवं सैलानियो का आहवान कर कह रहे थे कि हमारे यहाॅ कोविड का कोई असर नही है, बस सीधे बदरी विशाल के दर्शन करने बिना किसी डर के पहुॅचे। मुझे बाद में पता चला कि उनके इस आहवान के पीछे उनके द्वारा संचालित होटल और गेस्ट हाउस के हित जुडे हुए हैं।

आज पुनः जोशीमठ की श्रासदी के समय यही लालची और धनाड्य वर्ग कह रहा है कि यदि उन्हें बदरीधाम की तर्ज पर सरकार दुगना मूल्य (76 लाख प्रति नाली) दे तो वे अपना स्थान छोड़ने के लिए तैयार है। मेरा इससे यही कहना है कि ज्योर्तिमठ और वेदान्त भूमि के प्रति यही उनका अनुराग प्रेम है।

मुझे याद है कि जब कुछ वर्ष पूर्व तपोवन में एन.टी.पी.सी. परियोजना का काम शुरू हुआ था तब नेतृत्व किया गया था। तब कुछ ठेकेदारनुमा नेताओ द्वारा जिनका एन.टी.पी.सी अपना कारोबार होटल, वाहन, लाॅज और ठेकेदारी से हित जुड़े थे। उन्होंने सबसे पहले लालच में उनके कार्यालयों को अपने होटल उपलब्ध कराए गए थे। इसके कारण तब अतुल सती पर प्राण घातक हमला तक किया गया था। इसी तरह का एक हमला श्रीनगर स्थित विद्युत परियोजना के ठेकेदारो द्वारा ई.टी.वी के सम्वाददाता सुधीर भट्ट भी कहा गया।

मेरा कहने का आशय इतना है कि इन ठेकेदारनुमा जनप्रतिनिधि जिन्हे बाॅध कम्पनियां पालती पोषती हैं, उन्होंने हमेशा लालच के कारण आन्दोलनो को कुचलने का काम किया।

चमोली में कुछ वर्ष पूर्व एन.टी.पी.सी के अवैध कामो पर नकेल कसने वाले उपजिलाधिकारी का तो इन्ही नेताओं ने ट्रासफर करवा दिया था।
यही लालची लोग अब अति सम्वेदनशील बदरीनाथ में मास्टर प्लान से बसाए जाने के पक्ष में एक करोड़ रूपये नाली का मुआवजा मांग रहे है। भूकम्प की दृष्टि से अति सम्वेदनशील गढ़वाल में भू एंव बिल्डिग माफियाओं के प्रभाव के चलते अब केवल बदरी विशाल ही पहाड़ की निरीह और गरीब जनता के साथ हमारे अस्तित्व को बचा सकते है। जोशीमठ आपदा से हमें सबकनलेना चाहिए कि , अति संवेदनशील क्षेत्रों में भवन्निर्माणशैली निर्धारित वैज्ञानिक मानकों पर बनाई जानी चाहिए । इसका सख्ती से पालन होना चाहिए । और भवन्निर्माण में पहाड़ी स्थापत्य कला का समावेश होना चाहिए। मकानों की ऊंचाई भी काम की जानी चाहिए । इसका नक्शा भूस्वामियों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए ।

सरकार द्वारा 1976 की मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के साथ के.एस. वाल्दिया जैसे- भूवेज्ञानिको को रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर देना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।

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