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भारत ने भूटान जैसा पड़ोसी देश भी खोया

 

 –श्याम सिंह रावत 

14 अक्टूबर को चीन और भूटान के विदेश मंत्रियों ने दोनों देशों के बीच कई वर्षों से चल रहे सीमा विवादों को सुलझाने के लिए तीन चरणों में सम्पन्न होने वाले एक समझौते पर दस्तख़त किये हैं।
इस समझौते से जहां दोनों देशों के बीच 1984 से चल रही सीमा वार्ताओं का दौर समाप्त हुआ, वहीं भारत ने नेपाल के बाद एक अन्य पड़ोसी देश का भरोसा खो दिया।
इसके साथ ही ड्रैगन ने भारत की पूरे 360 डिग्री घेरेबंदी को और भी अधिक मजबूत कर लिया है। वह भारत के पड़ोसी देशों को अपने पाले में लेकर इसे सामरिक, आर्थिक और रणनीतिक तौर पर घेरने में लगातार सफल होता जा रहा है।
इसके बाद यदि चीन सिलीगुड़ी कॉरिडोर के क़रीब आता है तो यह भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय होगा क्योंकि यह देश के पूर्वोत्तर राज्यों से सम्पर्क के लिए ख़तरा बन सकता है।
यहां पर गौर करें, मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पाकिस्तान को छोड़ भी दें तो श्रीलंका, मालदीव, ईरान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यांमार और अब भूटान सब चीन के नजदीक होते गये हैं। पूछा जाना चाहिए कि ये सभी मित्र देश मोदी की तरफ पीठ क्यों फेर रहे हैं?
हालांकि इस समझौते पर भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, “हमने आज भूटान और चीन के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए जाने को नोट किया है।” तो क्या जब ड्रैगन श्रीलंका, ईरान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश और मालदीव में अपने पांव फ़ैला रहा था, तब नोटिस नहीं लिया गया था? यदि लिया गया था तो उसका परिणाम क्या निकला? यही न कि अब एक अन्य पड़ोसी देश भी चीन के खेमे में चला गया।
पूर्वी लद्दाख के तमाम प्रमुख रणनीतिक ठिकानों तक चीन घुस आया है। गोदी मीडिया मोदी सरकार से सवाल करने के बजाय चीन से कारोबार के 100 बिलियन डॉलर पर पहुंचने से लहालोट है। जबकि सीमा पर तनाव के बाजवूद वर्ष 2021 की जनवरी से जून तक पहली छमाही में भारत-चीन व्यापार में 62.7 फीसदी की जबरदस्त बढ़त हुई। यह व्यापार पूरी तरह से चीन के पक्ष में झुका हुआ है।
इधर, भारत-अमेरिका कारोबार दो साल से नेगेटिव है। देश का षड्यंत्रकारी मीडिया मोदी को ‘विश्व गुरु’ बता रहा था लेकिन हाल ऐसा है कि मोदी के हालिया अमेरिकी दौरे में रेत का महल धराशाई हो गया।
भूटान के साथ चीन का यह समझौता सिर्फ सीमा विवाद सुलझाने तक ही सीमित नहीं है बल्कि उसने अपना कारोबार बढ़ाने के लिए भी भूटान से ही डील कर ली है जो उसकी सस्ते क़र्ज़ पर आधारित है। और, भूटान इस बात को अच्छी तरह से समझ गया है कि मोदी के नेतृत्व में आर्थिक और रणनीतिक तौर पर अपेक्षाकृत कमजोर भारत चीनी दबाव को रोकने में नाकाम है।

कुलमिलाकर आज देश ऐतिहासिक रूप से निराशा और तबाही के भयानक दौर से गुजर रहा है और देश का पूंजीपतियों तथा सत्ताधारियों द्वारा संचालित षड्यंत्रकारी मीडिया जनता को गुमराह करने में जुटा हुआ है।

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