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आवारा ख्याल : कोई धर्म अंतिम होने का दावा ही चिंता पैदा करता है

–डा0 सुशील उपाध्याय –

अगर प्रश्न पैदा न हुए होते तो संभवतः आज बौद्ध धर्म का वजूद न होता। भगवान बुद्ध अपने प्रश्नों को लेकर संजय वेलिवट्ठ, सुदत्त रामफल, अजित केशकंबली जैसे दिग्गजों के पास गए। जब संतुष्ट नहीं हुए तो खुद अपने प्रश्नो से जूझे। और जब प्रश्नों का हल पा गए तो उन्हें सारिपुत्त और मोदग्गलायन के प्रश्नों का सामना करना पड़ा। वे जिंदगी भर प्रश्नों का सामना करते रहे, उत्तर पाने के लिए प्रेरित करते रहे।

आज यदि कोई भी धर्म प्रश्नों के खिलाफ है तो वह कैसे मानवता को राह दिखाएगा! अंतिम होने का दावा ही अपने आप में चिंता पैदा करता है। सैंकड़ों साल या कई हजार साल पहले कही गई बात आज के संदर्भ में प्रासंगिक तो हो सकती है, लेकिन अंतिम सत्य कैसे हो सकती है! मैं अपने आसपास ऐसे तमाम लोगों को देखता हूं जो दावा करते हैं कि उन्हीं का धर्म अंतिम सत्य पर केंद्रित है। बाकी सब त्याज्य हैं। उनमें कोई सार नहीं।
और बुद्ध की नकल करके या उनकी पूजा करके भी कुछ हासिल हो सकेगा, ये प्रश्न के घेरे में है। एक ही बात याद रखने लायक है –
अत्तो दिप्पो भव.

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