एक्शन लेते लेते बहुत देर कर दी धामी जी!
–दिनेश शास्त्री–
उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के बहुचर्चित भर्ती घोटाले में धामी सरकार ने एक्शन तो लिया लेकिन बहुत देरी से। एक तो सीबीआई जांच की मांग कर रहे युवाओं को अब भी भरोसा नहीं हो रहा है कि सरकार के इस कदम से भ्रष्टाचार के जरिए हुई भर्तियों का पर्दाफाश हो सकेगा, दूसरे जब लाल बिल्डिंग में बैठने वाले पांच अफसरों की विजिलेंस जांच करवानी थी तो यह काम भी उसी दिन कर देते जिस दिन मामला एसटीएफ को सौंपा था।
आपको याद दिलाने की जरूरत नहीं है कि अपर सचिव कार्मिक और सतर्कता ललित मोहन रयाल ने पेपर लीक मामले में अब अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पूर्व सचिव संतोष बडोनी, पूर्व परीक्षा नियंत्रक नारायण सिंह डांगी और तीन अनुभाग अफसरों के खिलाफ विजिलेंस जांच के आदेश दिए हैं। लेकिन इस मामले में तत्कालीन अध्यक्ष एस. राजू को छुआ तक नहीं गया है। निसंदेह विजिलेंस जांच का यह अर्थ कतई नहीं है कि लाल बिल्डिंग के ये पांच अफसर दोषी हैं। वैसे भी विजिलेंस का ट्रैक रिकॉर्ड बहुत शानदार नहीं है। विजिलेंस ने रिश्वत लेते जिन लोगों को रंगे हाथ पकड़ा, कई बार वे अदालत से बरी हुए हैं। शायद इसीलिए ठगे गए उत्तराखंड के युवा पूरे प्रकरण की जांच सीबीआई से कराने की मांग कर रहे हैं।
बडोनी और चार अन्य अफसरों के विरुद्ध विजिलेंस की जांच में तत्कालीन अध्यक्ष को भी शामिल किया जाता तो शायद भड़कती आग में पानी पड़ जाता लेकिन अब बहुत देर हो गई है और कई बार क्या अक्सर देर से उठाए गए कदम का वांछित लाभ नहीं मिलता। जाहिर है जब आप एक नजीर बनाने की बात पर तुले हों तथा सार्वजनिक रूप से ऐलान भी कर चुके हों तो कमी सिर्फ और सिर्फ सलाहकारों की ही है, जो समुचित सलाह दे नहीं पाए अथवा निर्णय नहीं ले पाए। यह दोनों स्थितियां घातक सिद्ध हो सकती हैं। नीतिकारों ने भी परिभाषा दी है कि जो व्यक्ति अपने नेतृत्व को निष्पक्ष होकर सलाह नहीं देते वे राज्य के लिए घातक होते हैं। इस बात में तो किसी रॉकेट साइंस की भी जरूरत नहीं थी। सवाल तो अपनी जगह पर आज भी कायम है कि जब आप भ्रष्टाचार का पूरी तरह सफाया करने और सिस्टम की सफाई का मंतव्य जाहिर कर चुके हों तो उस दिशा में बढ़ता दिखना भी चाहिए।
सादिक मूसा अभी तक एसटीएफ के कब्जे में नहीं आ पाया है और बहुत संभव है वह कभी काबू आए भी नहीं, अगर कभी हत्थे चढ़ा भी तो तब तक लोग सब कुछ भूल चुके होंगे।
इसमें किसी को संशय नहीं है कि नकल माफिया का मकड़ जाल बहुत मजबूत रहा है। फारेस्ट गार्ड भर्ती में जब हाकम सिंह नामजद होता है तो वह कौन सी अदृश्य कड़ी थी जिसने उसे कानून के हाथों से बचा लिया?
सवाल और भी हैं। सोशल मीडिया पर इन दिनों लोक सेवा आयोग के एक सदस्य द्वारा एक महिला को प्रवक्ता बनाने के बदले अनुचित मांग करने का वीडियो खूब वायरल हो रहा है। आयोग ने न तो अभी तक उसका खंडन किया है और न कोई प्राथमिकी ही दर्ज करवाई है। जाहिर है दाल में कुछ काला जरूर है, बहुत संभव है पूरी दाल ही काली हो, ऐसे में सिर्फ अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ही नहीं लोक सेवा आयोग में भी सफाई अभियान की स्वाभाविक दरकार है। इस स्थिति में अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के बाकी परीक्षाएं लोक सेवा आयोग से करवाने पर इस बात की गारंटी कौन देगा कि वहां घपला घोटाला नहीं होगा। मेरा लोक सेवा आयोग की प्रतिष्ठा कम करने का कोई इरादा नहीं है, किंतु प्रवक्ता भर्ती का जो मामला चर्चा में है, उसका निस्तारण तो लोक सेवा आयोग को करना ही चाहिए। आखिर उसकी प्रतिष्ठा का सवाल जो ठहरा।
वास्तव में इस समय सबसे ज्यादा चिंता का विषय भरोसे का है। खासकर युवाओं को व्यवस्था पर भरोसा नहीं रह गया है। पूरे प्रदेश में हो रहे धरना प्रदर्शन इसका प्रमाण है।
अब तो पूर्व सीएम तीरथ सिंह रावत और धामी के मंत्री गणेश जोशी भी अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के घपले की सीबीआई जांच की मांग कर चुके हैं। दबे स्वर में कुछ और नेता भी यही मांग कर रहे हैं, वे क्यों सार्वजनिक रूप से यह मांग करने में संकोच कर रहे हैं, यह तो वही जानें लेकिन बात हर तरफ से हो रही है। ऐसे में सरकार के सामने भरोसा अर्जित करने की चुनौती है। देखना यह है कि 2024 के चुनाव से पहले सरकार ऐसा कर पाती है या नहीं? आप भी नजर बनाए रखियेगा। आने वाले दिनों में बहुत कुछ सामने आ सकता है। वैसे हर कोई उस नजीर का इंतजार कर रहा है, जिसकी बात धामी जी कर रहे हैं।