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भारती अनंता के काव्य संकलन, ‘कहे-अनकहे रंग जीवन के’ का लोकार्पण

-uttarakhandhimalaya.in–

देहरादून, 1 अगस्त। गत शाम दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से युवा लेखिका एवं उद्घोषिका भारती आनन्द अनन्ता के पहले काव्य संकलन ‘कहे-अनकहे रंग जीवन के’ का लोकार्पण किया गया। सुपरिचित कवि, साहित्यकार पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी और प्रसिद्ध कहानीकार महाबीर रवांल्टा और प्रगतिशील किसान पद्मश्री प्रेम चंद शर्मा और डॉ.स्वराज्य विद्वान ने संस्थान के सभागार में इस पुस्तक का लोकार्पण किया।

अपने वक्तव्य में इस अवसर पर पद्मश्री जगूड़ी ने कहा कि यह इक्कसवीं सदी की कवियत्री का पहला काविता संकलन है जिसमें आज की महिलाओं की स्वच्छन्दता का वर्णन किया है। कविताओं में पुरानी तुकबन्दी की को नये रूप में प्रस्तुत किया गया है। कविता की हर एक पंक्ति कुछ न कुछ बात कहती है। उन्होंने कहा कि महिला की स्वतन्त्रता पर और कई कविताएं पाठकों के बीच में है मगर भारती आनन्द अनन्ता ने स्वतन्त्रता की परिभाषा को कविता के रूप में प्रस्तुत किया है।

लोकार्पण समारोह में विशेष वक्ता वरिष्ठ कहानीकार व लोक साहित्यकार महाबीर रवांल्टा ने कहा कि भारती की कविता समाज में महिला प्रतिनिधि के रूप में प्रखरता से सामने आई है । कविता संकलन की शीर्षक कविता ‘जीवन है क्या? एक जलता दिया। जिसने जैसा समझा, वैसे ही जिया’। बहुत ही सरल ढंग से सहज शब्द विन्यास से मानव प्रवृति की बात प्रस्तुत की गई है। आम पाठकों के लिए लिखी गई कविताएं निश्चित समाज के काम आयेगी।

उल्लेखनीय है कि काव्य संकलन की सभी कविताएं कुछ न कुछ न कह रही है और चिन्तन के लिए बाध्य करती दिखती हैं। स्वतन्त्रता और परतन्त्रता को भारती ने अपनी कविताओं में प्रबलता से उठाया है। लोकार्पण कार्यक्रम के दौरान रंजना , अशिका और आकांक्षा ने ‘कहे अनकहे रंग जीवन के’ कविता संग्रह की कुछ कविताओं का पाठ भी किया।

इस दौरान कई साहित्यकार,साहित्यिक प्रेमी, लेखक,रंगकर्मी सहित युवा पाठक उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ कवियत्री और लेखिका बीना बेंजवाल ने किया। पुस्तक के प्रकाशक रानू बिष्ट व प्रवीन भट्ट,लोकेश नवानी, सुनील त्रिवेदी, चन्दन सिंह नेगी, गिरीश सुंदरियाल,डॉ.योगेश धस्माना, जगदीश सिंह महर, रमाकांत बेंजवाल,सुन्दर सिंह बिष्ट भी इस अवसर पर मौजूद थे।

काव्य संकलन के बारे में

कहे-अनकहे रंग जीवन के भारती आनन्द ‘अनन्ता’ का पहला कविता संग्रह है। इस संग्रह में 82कविताएं संकलित हैं।
कहे-अनकहे रंग जीवन के कविता संकलन की भूमिका में पद्मश्री व प्रतिष्ठित कवि लीलाधर जगूड़ी ने भूमिका में लिखा है कि अनुभव प्रायः सबके पास होते हैं, पर उसकी अभिव्यक्ति सबके पास नहीं होती। यह अलग ढंग से होती है। यह अलग होने का संघर्ष ही कविता को मौन कथन में बदल देता है। इसी कविता संकलन की अगली भूमिका में वरिष्ठ साहित्कार महाबीर रवांल्टा लिखते हैं कि पहाड़ में अपनी थाती-माटी के प्रति गहरे जुड़ाव के कारण भारती अपनी स्मृतियों में विचरण करती हैं। उनकी कविताओं में पलायन का दर्द भी दिखाई देता है। लेखिका भारती का कहना है कि अपने मन के भावों को कविता के रूप में लिख पाना माउंट एवरेस्ट को पार करने जैसा था। चूंकि पुस्तकों के प्रति बचपन से ही लगाव रहा है। तभी लेखन के बीज रोपित हुए है। किंतु कागज पर उन्हें उतारना इतना आसान नहीं था। स्त्री होने और घर की जिम्मेदारियों व जीवन को निभाने के बीच कितना कुछ खो देते हैं। हम स्वयं नहीं जान पाते। इसी इसी खोये हुए को समेटने का एक सूक्ष्म प्रयास है यह काव्य-संग्रह।

कुलमिलाकर भारती ने अपने मन के प्रश्नों, अनुभवों, जीवन के बदलाव को चिन्हित कर कविताओं के रूप में सहेजने का बेमिसाल प्रयास किया है।

लेखन के तौर पर भारती आनन्द की अनेक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं यथा युगवाणी, धाद, प्रेरणा अंशु, साहित्यनामा, सुवासित, देहरादून डिस्कवर तथा हिमांतर में कवितायें एवं रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।अनेक साझा संग्रह में कविताएं प्रकाशित होती रही हैं। प्रतिष्ठित हिंदी हाइकु कोश व स्वप्नों की सेल्फी संग्रह में भी भारती की हाइकु विधा की रचनाएं संकलित हैं।

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