भारत के 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 94 फीसदी से अधिक क्षेत्रों यानी 6.56 लाख गांवों में से 6.20 लाख से अधिक गांवों में भूमि अभिलेखों का कम्प्यूटरीकरण पूरा किया गया
- देश में कुल 1.66 करोड़ से अधिक में से 1.17 करोड़ से अधिक भूमि कर संबंधी मानचित्र (भू नक्शा) का डिजिटलीकरण किया गया
- 5,254 उप-पंजीयक कार्यालयों में से लगभग 4,000 को भूमि अभिलेखों के साथ एकीकृत किया गया
- एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली 321 जिलों और विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या को 24 राज्यों में शुरू किया गया है
- हरियाणा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में भूमि अभिलेख व पंजीकरण डेटाबेस के साथ ई-न्यायालयों को जोड़ने के लिए प्रायोगिक परीक्षण को सफलतापूर्वक पूरा किया गया
- 26 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने भूमि अभिलेख एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर और पंजीकरण डेटाबेस के साथ ई-कोर्ट एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के एकीकरण के लिए संबंधित उच्च न्यायालयों से जरूरी स्वीकृति प्राप्त की
- पुणे स्थित सी-डैक ने स्थानीय भाषा में उपलब्ध रिकॉर्ड ऑफ राइट्स को अनुसूचित 22 भाषाओं में से किसी भी भाषा में लिप्यंतरित करने की पहल की है
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) के वाटरशेड विकास घटक के तहत लगभग 295 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करने वाली 6382 परियोजनाओं की मंजूरी प्राप्त की गई
- डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 के तहत 2021-22 से 2025-26 के दौरान 28 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में लगभग 49.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में केंद्र के हिस्से से 8,134 करोड़ रुपये के वित्तीय परिव्यय के साथ कुल 1,110 वाटरशेड विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी गई
-उत्तराखंड हिमालय ब्यूरो –
भूमि संसाधन विभाग दो योजनाओं को कार्यान्वित कर रहा है। ये हैं- (i) डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी) और (ii) प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) का वाटरशेड विकास घटक।
इन योजनाओं और इनकी उपलब्धियों का संक्षिप्त सारांश नीचे सूचीबद्ध है:
- डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआईएलआरएमपी)
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत भूमि संसाधन विभाग (डीओएलआर) ने आज बताया कि देश के 94 फीसदी से अधिक गांवों में भूमि अभिलेखों का कम्प्यूटरीकरण पूरा हो चुका है। अपने वर्षांत विवरण में विभाग ने बताया कि 29 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (देश के कुल 6,56,792 गांवों में से 6,20,166 गांवों) में यानी 94 फीसदी से अधिक क्षेत्रों में रिकॉर्ड ऑफ राइट्स (अधिकार अभिलेख) पूरा कर लिया गया है।
इसी तरह 27 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (कुल 5,254 एसआरओ में से 4,905 उप-पंजीयन कार्यालय) में पंजीकरण का कम्प्यूटरीकरण का कार्य 93 फीसदी से अधिक पूरा हो गया है। इसके अलावा 20 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (कुल 5,254 एसआरओ में से 3983 एसआरओ) में भूमि अभिलेखों के साथ उप-पंजीयक कार्यालयों (एसआरओ) के एकीकरण का कार्य 75 फीसदी से अधिक पूरा कर लिया गया है।
21 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (कुल 1,66,61,435 मानचित्रों में से 1,17,33,176 मानचित्र) में 70 फीसदी से अधिक भू-कर संबंधी मानचित्रों का डिजिटलीकरण किया गया है।
भू-कर संबंधी मानचित्र, जिसे भू-नक्शा भी कहा जाता है, भूमि रिकॉर्ड का एक डिजिटल रूप है, जो भूमि के टुकड़े के विभिन्न हिस्सों की सभी सीमाओं को उनकी लंबाई, क्षेत्र और दिशा के आधार पर दिखाता है। इन मानचित्रों से कोई व्यक्ति अपनी जरूरतों के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में भूमि के टुकड़ों के स्वामित्व की स्थिति देख सकता है।
डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (पहले राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम) को 1 अप्रैल, 2016 से केंद्र द्वारा 100 फीसदी वित्तीय पोषण के साथ केंद्रीय क्षेत्र योजना के रूप में संशोधित और रूपांतरित किया गया था।
इस कार्यक्रम का उद्देश्य एक एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली विकसित करने के लक्ष्य से एक आधुनिक, व्यापक और पारदर्शी भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली विकसित करना है। साथ ही, इसके उद्देश्यों में (i) भूमि पर रियल टाइम जानकारी में सुधार करना, (ii) भूमि संसाधनों का वांछित उपयोग करना, (iii) जमींदारों और पूर्वेक्षकों, दोनों को लाभ पहुंचाना, (iv) नीति और योजना में सहायता करना, (v) भूमि विवाद को कम करना, (vi) धोखाधड़ी/बेनामी लेनदेन की जांच करना, (vii) राजस्व/पंजीकरण कार्यालयों के भौतिक दौरे की जरूरत को समाप्त करना, और (viii) विभिन्न संगठनों/एजेंसियों के साथ सूचना साझा करने में सक्षम बनाना है। सरकार ने डीआईएलआरएमपी के विस्तार को पांच साल यानी 2021-22 से 2025-26 तक के लिए मंजूरी दी है।
एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली भूमि के मालिकों, संबंधित अधिकारियों/एजेंसियों और इच्छुक व्यक्तियों/उद्यमियों आदि को संबंधित जमीन के किसी भी भूखंड की उचित व्यापक स्थिति की जानकारी देने को लेकर सभी उपलब्ध, प्रासंगिक जानकारी के लिए ऑनलाइन एकल खिड़की के माध्यम से पहुंच प्रदान करती है। इसके घटकों में आम तौर पर बैंकों, अदालतों, सर्किल दरों, पंजीयन, आधार नंबर (सहमति से) आदि को जोड़ना शामिल है। यह प्रणाली देश के 321 जिलों में पहले ही शुरू की जा चुकी है।
विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (यूएलपीन) या भू-आधार
विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या (यूएलपीआईएन) प्रणाली पार्सल की चोटी के भू-निर्देशांक के आधार पर हर एक भूमि पार्सल के लिए एक 14-अंकीय अल्फा-न्यूमेरिक अद्वितीय आईडी है। यह अंतरराष्ट्रीय मानक है और इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स कोड मैनेजमेंट एसोसिएशन (ईसीसीएमए) मानक व ओपन जियोस्पेशियल कंसोर्टियम (ओजीसी) मानक का अनुपालन करता है। इसे पूरे देश में लागू किया जा रहा है। यूएलपीन में भूमि खंड के आकार और देशांतरीय व अक्षांशीय विवरण के अलावा स्वामित्व का विवरण भी होगा। यह अचल संपत्ति लेनदेन की सुविधा प्रदान करेगा, संपत्ति कराधान के मुद्दों के समाधान में सहायता करेगा और आपदा योजना व प्रतिक्रिया प्रयासों आदि में सुधार करेगा।
यूएलपीआईएन को अब तक 24 राज्यों में लागू किया जा चुका है। इनमें आंध्र प्रदेश, झारखंड, गोवा, बिहार, ओडिशा, सिक्किम, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा, त्रिपुरा, छत्तीसगढ़, जम्मू और कश्मीर, असम, मध्य प्रदेश, नगालैंड, मिजोरम, तमिलनाडु, पंजाब, दादरा और नागर हवेली व दमन और दीव, हिमाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड हैं। इसके अलावा यूएलपीआईएन का प्रायोगिक परीक्षण अन्य 8 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में किया गया है।
सामान्य दस्तावेज पंजीकरण प्रणाली (एनजीडीआरएस)
प्रलेखों/दस्तावेजों के पंजीकरण की एकसमान प्रक्रिया के लिए “एक राष्ट्र एक पंजीकरण सॉफ्टवेयर यानी राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज पंजीकरण प्रणाली (एनजीडीआरएस)” को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में कार्यान्वित किया जा रहा है। नवंबर, 2022 तक एनजीडीआरएस को अब तक 17 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया जा चुका है। इनमें पंजाब, अंडमान और निकोबार, मणिपुर, गोवा, झारखंड, मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, महाराष्ट्र, दादरा और नगर हवेली, जम्मू और कश्मीर, छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, लद्दाख, बिहार, असम, मेघालय और उत्तराखंड हैं।
भूमि अभिलेख/पंजीकरण डाटाबेस के साथ ई-न्यायालयों को जोड़ना
भूमि रिकॉर्ड और पंजीकरण डेटाबेस के साथ ई-न्यायालयों को जोड़ने का उद्देश्य इन्हें प्रामाणिक प्रत्यक्ष जानकारी उपलब्ध कराना है। इसके परिणामस्वरूप मामलों का त्वरित निपटान होगा और आखिरकार भूमि विवादों में कमी आएगी। इसके अन्य लाभों में शामिल हैं:- (i) न्यायालयों के लिए रिकॉर्ड ऑफ राइट्स, भूमि-संदर्भित व विरासत डेटा सहित भूमि कर से संबंधित मानचित्र के ठोस और प्रामाणिक साक्ष्य को लेकर प्राथमिक (फर्स्ट हैंड) जानकारी की उपलब्धता, (ii) मामले को दर्ज करने के निर्णय के साथ-साथ विवादों के निपटान के लिए उपयोगी जानकारी, (iii) देश में भूमि विवादों की संख्या को कम करना और व्यापार करने और जीवन जीने में सुगमता को बढ़ावा देना।
विभाग में गठित एक समिति के जरिए भूमि रिकॉर्ड और पंजीकरण डेटा बेस के साथ ई-न्यायालयों को जोड़ने के लिए प्रायोगिक परीक्षण को विधि विभाग के सहयोग से तीन राज्यों- हरियाणा, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में सफलतापूर्वक पूरा किया गया है।
अब तक 26 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को भूमि रिकॉर्ड एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर और पंजीकरण डेटाबेस के साथ ई-कोर्ट एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर के एकीकरण के लिए संबंधित उच्च न्यायालयों से जरूरी मंजूरी प्राप्त हुई है। इन राज्यों में त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, तेलंगाना, झारखंड, दिल्ली, सिक्किम, मेघालय, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, पुडुचेरी और आंध्र प्रदेश शामिल हैं।
सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में अनुसूची VIII की सभी भाषाओं में भूमि अभिलेखों का लिप्यंतरण
वर्तमान में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में रिकॉर्ड ऑफ राइट्स स्थानीय भाषाओं में हैं। भाषा संबंधी बाधाएं सूचनाओं तक पहुंच और उन्हें समझने योग्य रूप में उपयोग के लिए गंभीर चुनौतियां प्रस्तुत करती हैं। देश के भूमि प्रशासन में भाषाई बाधाओं की समस्या को दूर करने के लिए सरकार ने पुणे स्थित सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग (सी-डैक) पुणे की तकनीकी सहायता के साथ स्थानीय भाषा में उपलब्ध रिकॉर्ड ऑफ राइट्स को संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं में से किसी भी भाषा में लिप्यंतरित करने की पहल की है। इस संबंध में 8 राज्यों में प्रायोगिक परीक्षण को संचालित किया जा रहा है। ये राज्य हैं- बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, पुडुचेरी, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा व केंद्रशासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर। इसे जल्द ही पैन-इंडिया आधार पर उपरोक्त पहल शुरू करने का लक्ष्य रखा गया है।
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई) का वाटरशेड विकास घटक
भूमि संसाधन विभाग वर्षा सिंचित और अवक्रमित क्षेत्रों के विकास के लिए 2009-10 से केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) ‘एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम’ (आईडब्ल्यूएमपी) लागू कर रहा था।
2015-16 में आईडब्ल्यूएमपी को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना की व्यापक योजना के वाटरशेड विकास घटक के रूप में मिलाया गया था। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ कई गतिविधियां शामिल हैं। इनमें टीला क्षेत्र उपचार, जल निकासी लाइन उपचार, मिट्टी व नमी संरक्षण, वर्षा जल संचयन, नर्सरी लगाना, वनीकरण, बागवानी, चरागाह विकास और संपत्ति रहित व्यक्तियों के लिए आजीविका आदि हैं। वाटरशेड विकास कार्यक्रम भूमि निम्नीकरण, मृदा अपरदन, जल की कमी, जलवायु संबंधी अनिश्चितताओं आदि की समस्याओं का सबसे उपयुक्त समाधान साबित हुआ है। यह कार्यक्रम विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने, गरीबी कम करने और आजीविका में सुधार करने की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देता है।
डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 1.0 के तहत, लगभग 295 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 6382 परियोजनाओं को लागू करके महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की गई हैं।
2014-15 और 2021-22 के बीच 7.65 लाख जल संचयन संरचनाओं का निर्माण/कायाकल्प किया गया है। साथ ही, 16.41 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को सुरक्षात्मक सिंचाई के दायरे में लाया गया है। इनसे 36.34 लाख किसान लाभान्वित हुए हैं। इसके अलावा लगभग 1.63 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को वृक्षारोपण (वनीकरण/बागवानी आदि) के तहत लाया गया है। साथ ही, 3.36 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य बंजर भूमि को पूर्ण वाटरशेड विकास परियोजनाओं के तहत उपचारित किया गया है और इससे 2018-19 से 2021-22 तक 388.66 लाख मानव दिवसों को सृजित किया गया है। पूरी की गई इन परियोजनाओं के अंतिम मूल्यांकन से वाटरशेड हस्तक्षेपों, जल तालिका, फसल उत्पादकता, दूध उत्पादन और प्रति व्यक्ति आय आदि में काफी सुधार दिखता है। डब्ल्यूडीसी 1.0 को 31 मार्च, 2021 को बंद कर दिया गया था।
डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0: सरकार ने 2021-22 से 2025-26 की अवधि के लिए 49.5 लाख हेक्टेयर के भौतिक लक्ष्य और केंद्रीय हिस्से के रूप में 8,134 करोड़ रुपये के सांकेतिक वित्तीय परिव्यय के साथ डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 कार्यक्रम को जारी रखने की मंजूरी दी है।
डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 के तहत 2021-22 से 2025-26 के दौरान 28 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में लगभग 49.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कुल 1,110 वाटरशेड विकास परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। इस योजना की शुरुआत के बाद 2021-22 और 2022-23 (12.12.2022 तक) की अवधि के दौरान केंद्रीय हिस्से के तहत राज्यों को 1537.41 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की गई है।
डब्ल्यूडीसी 1.0 और डब्ल्यूडीसी 2.0 के तहत प्रगति का विवरण निम्नलिखित है:
डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 1.0 के तहत भौतिक उपलब्धियां
संकेतक/मानक | उपलब्धियां (2014-15 से 2021-22) |
निर्मित/पुनर्निर्मित जल संचयन संरचनाओं की संख्या | 7,64,686 |
सुरक्षात्मक सिंचाई के तहत लाया गया अतिरिक्त क्षेत्र (हेक्टेयर) | 16,40,954 |
लाभान्वित किसानों की संख्या | 36,34,020 |
वृक्षारोपण के तहत लाया गया क्षेत्र [वनीकरण/बागवानी आदि] (लाख हेक्टेयर में)# | 1.626 |
पूर्ण जलसंभर विकास परियोजनाओं में उपचारित कृषि योग्य बंजर भूमि का क्षेत्रफल (लाख हेक्टेयर में) | 3.36 |
सृजित मानव दिवसों की संख्या (लाख मानव दिनों में) | 388.66 |
#2018-19 के दौरान नीति आयोग के दिए गए संकेतक
डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 के तहत भौतिक उपलब्धियां
संकेतक/मानक | उपलब्धियां (2022-23 की दूसरी तिमाही तक) |
निम्नीकृत/वर्षा सिंचित क्षेत्र का विकास (हेक्टेयर) | 72,063.90 |
मिट्टी और नमी संरक्षण गतिविधियों से आच्छादित क्षेत्र (हेक्टेयर) | 63,165.71 |
वृक्षारोपण के तहत लाया गया क्षेत्र [वनरोपण/बागवानी आदि] (हेक्टेयर) | 27,596.98 |
नवसृजित/पुनर्निर्मित जल संचयन संरचनाओं की संख्या | 4,139.00 |
विविधीकृत फसलों/परिवर्तन प्रणालियों के तहत आच्छादित क्षेत्र (हेक्टेयर) | 3963.49 |
शून्य/एकल फसल से दोगुनी या इससे अधिक फसल के तहत लाया गया क्षेत्र (हेक्टेयर में) | 2705.30 |
फसल क्षेत्र में बढ़ोतरी (हेक्टेयर) | 3,167.39 |
लाभान्वित किसानों की संख्या | 1,03,437 |
सुरक्षात्मक सिंचाई के तहत लाया गया क्षेत्र (हेक्टेयर) | 13,239.61 |
सृजित मानव-दिवसों की संख्या | 17,59,897 |
डब्ल्यूडीसी-पीएमकेएसवाई 2.0 योजना को 15 दिसंबर, 2021 को मंजूरी दी गई थी।