इतना आसान नहीं है समान नागरिक संहिता लागू करना जितना प्रचार हो है : कांग्रेस
देहरादून, 2 फ़रवरी। उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा दसौनी ने राज्य सरकार द्वारा उत्तराखंड पर समान नागरिक संहिता ( UCC) थोपने को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि UCC अगर सचमुच इतना आसान होता तो केंद्र की मोदी सरकार कभी के देश पर यह कानून लागू कर देती। गरिमा के अनुसार धामी सरकार का उद्देश्य UCC के नाम पर अल्प संख्यकों को छेड़ना है ताकि साम्प्रदायिक असंतोष भड़क सके और उसका लाभ अपनी कुर्सी बचाने और लोक सभा चुनाव में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का लाभ उठाया जा सके जी तरह गत विधानसभा चुनाव में मुस्लिम यूनिवर्सिटी के काल्पनिक मुद्दे का लाभ भाजपा ने उठाया था।
दसौनी ने कहा की आसान नहीं होगा समान नागरिक संहिता लागू करना दसौनी ने कहा की यह समवर्ती सूची (concurrent list ) का विषय है, अर्थात इस विषय पर केन्द्र और राज्य दोनो ही कानून बना सकते है, किंतु जब कभी केन्द्र कानून बनायेगा तो वही अंब्रेला लॉ होगा, तब राज्यों के बने कानून निष्प्रभावी होंगे या विलय हो जाएंगे।
दसौनी ने बताया की भारत में गोवा के अलावा कहीं भी ऐसा कानून लागू नहीं है। गोवा में भी तब लागू हुआ था जब गोवा में पुर्तगाल का शासन था और गोवा भारत का हिस्सा 1961 में बना।
दसौनी ने कहा की संविधान के भाग 3 मूलाधिकारो में संशोधन करना आसान नहीं ?क्या संविधान संशोधन माननीय सुप्रीम कोर्ट में वैधानिकता पायेगा ?
दसौनी ने बताया की अनुच्छेद 368 में संसद को असीमित शक्तियां नहीं हैं।दसौनी ने कहा की
“समान नागरिक संहिता/यूनिफॉर्म सिविल कोड को सरल भाषा में समझे तो भारत के हर नागरिक के लिए एक समान कानून हो, चाहे वह किसी भी जाति,धर्म,का हों समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक, दत्तक ग्रहण, संपत्ति आदि में सभी धर्मों के लिए एक समान कानून की परिकल्पना है, तो ऐसे में यदि यह कानून इतना ही देश हित प्रदेशहित और जनहित में है तो फिर केंद्र सरकार स्कूल आने में पीछे क्यों हट रही है।
दसौनी ने कहा की भारत विविधताओं का देश है, यहा अतीत से ही धर्म पर आधारित पर्सनल लॉ बने हुए है, जैसे हिन्दू पर्सनल लॉ के तहत: हिन्दू दत्तक ग्रहण एवम भरण पोषण अधिनियम 1956, हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956,(संशोधित 2005) आदि वैसे ही मुस्लिम पर्सनल लॉ में भी अनेकों निजी कानून है, जिनमे कुछ कोडीफाइड नहीं है।
दसौनी ने कहा की समान नागरिक संहिता लागू करने से पहले सभी पर्शनल लॉ को संशोधित या समाप्त करना होगा।दसौनी ने धामी सरकार से पूछा की संविधान के भाग 3 मूलाधिकार (अनुच्छेद 12से 35तक) जो आधारभूत ढांचे है,इसमें कैसे संशोधन होगा?
दसौनी ने कहा चुकीं संविधान के भाग चार को भारत का अधिकार पत्र(Magna Carta) भी कहा जाता है । भारतीय संविधान के भाग 3 में मूलाधिकार (अनुच्छेद 12से35 तक) में प्रदत्त अधिकार, नागरिकों के मूलाधिकार है, इन्हे अनुच्छेद 368 के तहत ही संसद द्वारा बहुमत से संशोधित तो किया जा सकता है, किंतु मूलाधिकार संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर है, इसे बदले या छेड़छाड़ किए बिना संसद कोई कानून बना सकती है।
संविधान में संसद को संशोधन की शक्ति विस्तृत है, किंतु असीमित नही है, संसद इस शक्ति का प्रयोग करके संविधान के आधारभूत ढांचे में परिवर्तित नहीं कर सकती है।