कहीं घसियारियों की हाय न लग जाय धामी सरकार को : डैमेज कण्ट्रोल शुरू
–जयसिंह रावत
चमोली जिले के हेलंग में पुलिस एवं सीआइएसएफ के जवानों द्वारा स्थानीय महिलाओं से घास छीनने के साथ ही उन्हें घण्टों तक थाने में निरुद्ध रखने की घटना तूल पकड़ती जा रही है। पहाड़ की इन घसियारियों के आंसू और उनका अपमान उत्तराखण्ड सरकार को भी भारी पड़ने लग गया है। इस घटना के विरोध में न केवल सभी विपक्षी दल बल्कि सामाजिक संगठन और अब उत्तराखण्ड हाइकोर्ट की बार भी खड़ी हो गयी है। घसियारियों के क्रुदन की आवाज नैनीताल ही नहीं दिल्ली तक पहुंच गयी है। सरकार की छवि को दाग लगाने वाली इस घटना के मारक पहलू को भांप कर अब प्रदेश सरकार ने इसकी जांच गढ़वाल के आयुक्त से कराने के आदेश देकर डैमेज कंट्रोल शुरू कर दिया है।
हेलंग की घटना के तूल पकड़ने के बाद अब प्रदेश की धामी सरकार डैमेज कंट्रोल में जुट गयी है। हालांकि सरकार ने इसे पहले चमोली के जिला अधिकारी से घटना की तहकीकात कर रिपोर्ट मंगवा ली थी। लेकिन अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ग्रामीण महिलाओं द्वारा वन से चारापत्ती लाने को लेकर हुए विवाद से संबंधित घटना का संज्ञान लेते हुए कमिश्नर गढ़वाल को त्वरित रूप से जांच के आदेश दिए हैं। जबकि प्रशासन की पूर्व रिपोर्ट में प्रताड़ित महिलाओं को ही अतिक्रमणकारी कौर घुसपैठी करार दिया गया था और उत्पीड़न करने वाले पक्ष को यह कह कर क्लीन चिट दे दी थी कि प्रोजेक्ट पर काम करने वाली कंपनी ने हेलंग के मुखिया के निवेदन पर विवादित स्थल पर खेल का मैदान बनाने का निर्णय लिया था और उस स्थान पर हेलंग गांव का यही परिवार अवैध कब्जा करना चाहता था। इस तरह का प्रेस नोट भी चमोली के जिला प्रशासन द्वारा जारी कर दिया गया था। लेकिन प्रशासन और कंपनी द्वारा की जा रही लीपापोती के बाद भी बंबडर नहीं थमता नजर नहीं आ रहा है, क्योंकि यह ग्रामीण महिलाओं से बदसलूकी और उनके परम्परागत अधिकार के हनन का मामला है।
सवाल उठाया जा रहा है कि जब एक बार प्रशासन दोषी पक्ष को निर्दोश और उत्पीड़ित पक्ष को दोषी ठहरा चुका है तो फिर दुबारा जांच किस बात की? क्योंकि कागजी खानापूरी के बाद ही टीएचडीसी को क्लीन चिट दी गयी थी। दरअसल कंपनी का प्रोजेक्ट की सुरंग से निकले मलबे को जमा करने वाला डंपिंग जोन जब भर गया तो उसे दूसरे स्थान की जरूरत पड़ी। इसके लिये कंपनी ने हेलंग की सीमा में खाली जगह देख कर वहां मलबा डालना शुरू किया तो उसे गांव वालों के विरोध का सामना करना पड़ा। इस समस्या का समाधान निकालने के लिये कंपनी के प्रबंधकों ने गांव के सरपंच समेत असरदार लोगों को यह प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर दिया कि वे उस स्थान पर खेल का मैदान बनायेंगे ताकि बच्चों को खेलने की जगह और गांव वालों को सार्वजनिक कार्यों के लिये खुला मैदान मिल जाय। लेकिन गांव के कुछ परिवार इस सौदे से सहमत नहीं थे। उनका तर्क था कि मैदान के नाम पर डंपिंग जोन बन रहा है और पुश्तैनी घास का मैदान बरबाद हो रहा है। मैदान बनने के बाद गांव के लोगों को अपने पशुओं के चारे के लिये बहुत दूर जाना पड़ेगा।
इस दौरान कंपनी वालों ने सरपंच से अनुरोध पत्र लिखवा कर एसडीएम जोशीमठ से राजस्व विभाग की उस जमीन पर खेल का मैदान बनाने की अनुमति ले ली। खेल का मैदान सुरंग का मलबा वहां पर जमा करके ही बनना है। इस तरह खेल के मैदान की आड़ में कंपनी वहां डंपिंग जोन बना रही है। जो कि पर्यावरर्णीय और आपदा की दृष्टि से बहुत खतरनाक है।
हेलंग में गोचर पनघट की भूमि पर अपने पशुओं के लिए घास काटने वाली घसियारी महिलाओं के साथ अभद्रता के संबंध में उच्च न्यायालय नैनीताल के संवेदनशील अधिवक्ताओं द्वारा आज 21 जुलाई, को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन सभागार में दोपहर 1:30 बजे चिंतन बैठक अयोजित की गई।बैठक में चर्चा हेतु राज्य आंदोलन से जुड़े अधिवक्ता सहित जनहित के मुद्दों पर संवे
दनशील अधिवक्ताओं द्वारा हेलंग गांव के ग्रामीणों एवम महिलाओं के उपर हो रहे अत्याचार पर आक्रोश व्यक्त किया गया। चर्चा में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री प्रभाकर जोशी, पूर्व अध्यक्ष एम सी पंत, पूर्व अध्यक्ष सैयद नदीम मून, डी के जोशी प्रभारी विधि प्रकोष्ठ उत्तराखण्ड क्रांति दल, बी एस नेगी, नवनीश नेगी, योगेश पचोलिया, डॉ कैलाश तिवारी , भुवनेश जोशी, दुर्गा सिंह मेहता, आदि ने अपने विचार रखे।अध्यक्ष हाई कोर्ट बार एसोसिएशन प्रभाकर जोशी ने कहा कि महिलाओं व ग्रामीणों के संघर्ष में हाई कोर्ट बार एसोसिएशन उनके साथ है और साथ ही यह भी कहा कि जल्द ही प्रदेश के सभी जिला बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं की संयुक्त बैठक हाई कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा अयोजित की जाएगी जिसमें उत्तराखण्ड के विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर विचार विमर्श किया जायेगा।
जोशीमठ के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्त्ता अतुल सती का दावा है कि प्रोजेक्ट निर्माण का मलवा डंप कर जिस जगह पर खेल का मैदान बनाने की बात की जा रही है, वह निम्नलिखित कारणों से असंभव है। तीक्ष्ण ढलान पर डाले गए मलवे से अस्थाई तौर पर डंप के ऊपर कुछ समतल जमीन दिखती जरूर है परंतु वह कभी टिक ही नहीं सकती। बरसात के दिनों में सारा मलवा नदी में समा जाता है और वो नदी के निचले क्षेत्रों में ज्यादा तबाही का सबब बनता है 2013की आपदा में गढ़वाल विश्वविद्यालय के चौरास स्टेडियम के पार्श्व में डाला गया मलवा आपदा के दौरान भयानक तबाही का कारण बना था इससे पूरा स्टेडलियम ही क्षतिग्रस्त हो गया था। डंप की टो याने कि जड़ सीधे नदी की सतह तक होगी जो नियम विरुद्ध भी होगा।