दुनिया भर में प्रवासी भारतीयों ने अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़े
About 3 crore expatriates of India are performing all the important responsibilities and roles in the countries where they are living and thus contributing to determining the destiny of these countries.
–प्रगित परमेश्वरन
1990 में जब सद्दाम हुसैन की ईराकी सेनाओं ने कुवैत पर हमला किया तो मुतुन्नि मैथ्यूज ने, जिन्हें टोयोटा सनी के नाम से अधिक पहचाना जाता है, मसीहा मैथ्यूज बनकर वहां फंसे भारतीयों की जीवन रक्षा की. सनी ने जैसा अनोखा कार्य किया उससे कुवैत युद्ध में फंसे 1,70,000 हजार भारतीयों को 488 उड़ानों के जरिए भारत लाने में बड़ी मदद मिली.
गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई से लेकर नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना तक और माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला तथा जानेमाने संगीत निर्देशक जुबिन मेहता जैसे प्रवासी भारतीयों की सूची बड़ी लंबी है और विश्व के प्रति उनके अवदान भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
आज हमें जीवन के तमाम क्षेत्रों में भारतीय नजर आते हैं. चाहे फिल्मकार हों, वकील हों, पुलिसकर्मी हों, लेखक हों या व्यापारी हों, दुनिया भर में विभिन्न क्षेत्रों में प्रवासी भारतीयों ने अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़े हैं.
राष्ट्र आज दुनिया में सबसे अधिक प्रवासी देने वाला देश होने का दावा कर सकता है क्येांकि भारतीय मूल के तीन करोड़ से भी अधिक लोग आज विदेशों में प्रवास करते हैं. हालांकि कुल संख्या की दृष्टि से प्रवासी भारतीयों की तादाद देश की कुल जनसंख्या का मात्र एक प्रतिशत है, लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि ये लोग भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 3.4 प्रतिशत का योगदान करते हैं. पिछले साल जारी विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत 2015 में प्रवासियों द्वारा सबसे अधिक रकम प्राप्त करने वाला देश था क्योंकि इस दौरान उसे 69 अरब डालर की अनुमानित आमदनी हुई.
भारतवंशियों की छवि कुशल, शिक्षित और धनी समुदाय के रूप में उभरी है. पिछले दशक में व्यापार, पूंजी और श्रम के वैश्वीकरण की बुनियाद मजबूत होने से अत्यंत कुशल प्रवासी भारतीयों की तादाद में जबरदस्त इजाफा हुआ है.
भारत के करीब 3 करोड़ प्रवासी जिन-जिन देशों में रह रहे हैं वहां की तमाम महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां और भूमिकाएं निभा रहे हैं और इस तरह इन देशों की नियति का निर्धारण करने में योगदान कर रहे हैं.
ड्यूक विश्वविद्यालय और कैलीफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा कराए गये एक अध्ययन के अनुसार अमेरिका में 1995 से 2005 तक प्रवासियों द्वारा स्थापित इंजीनियरी और आईटी कंपनियों में से एक चौथाई से ज्यादा भारतीयों की थीं. इतना ही नहीं देश के होटलों में से करीब 35 प्रतिशत के स्वामी प्रवासी भारतीय ही थे.
अमेरिका की सन् 2000 की जनगणना के अनुसार वहां रह रहे प्रवासी भारतीयों की औसत वार्षिक आय 51 हजार डॉलर थी जबकि अमेरिकी नागरिकों की औसत वार्षिक आय 32 हजार डॉलर थी. करीब 64 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों के पास स्नातक की डिग्री या इससे ऊंची शैक्षिक योग्यताएं थीं जबकि डिग्रीधारी अमेरिकियों का समग्र औसत 28 प्रतिशत और डिग्रीधारी एशियाई-अमेरिकियों का औसत 44 प्रतिशत था. करीब 40 प्रतिशत भारतीय-अमेरिकियों के पास स्नातकोत्तर, डाक्टरेट या अन्य पेशेवर डिग्रियां थीं जो अमेरिकी राष्ट्रीय औसत से पांच गुना अधिक है. विदेशों में जब भारतीय मूल के किसी व्यक्ति को सम्मान मिलता है तो इससे हमारे देश का भी सम्मान होता है और भारत बारे में लोगों की समझ बढ़ती है. प्रभावशाली भारतवंशी न सिर्फ उस देश के जनमत पर असर डालते हैं बल्कि वहां की सरकारी नीतियों पर भी उसका प्रभाव पड़ता है जिसका लाभ भारत को मिलता है. भारत को इन लोगों के माध्यम से एक बड़ा फायदा यह भी होता है कि वे बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उद्यमिता वाले उपक्रमों को भारत जाने को प्रेरित करते हैं.
सरकार ने भारत के विदेश नीति संबंधी कार्यक्रमों के माध्यम से स्वदेश में बदलाव लाने पर जोर देना जारी रखे हुए है. स्वदेश लौटकर नया कारोबार शुरू करने वाले भारतवंशी अपने साथ तकनीकी और किसी खास कार्यक्षेत्र की विशेषज्ञता लेकर आते हैं जो देश के लिए बड़े मददगार कारोबारी साबित होते हैं. विदेशों में कार्यरत शैक्षणिक क्षेत्र के भारतवंशी भारतीय शिक्षा संस्थाओं में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए स्वेच्छा से अपना समय और संसाधन मुहैया करा रहे हैं. इंडो यूनीवर्सल कोलैबोरेशन ऑफ इंजीनियरिंग एजुकेशन की सदस्य संस्थाएं इसका उदाहरण हैं. इसका पता मेक इन इंडिया, स्किल इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्ट अप इंडिया के साथ-साथ बुनियादी ढांचे तथा परिवहन संपर्क सुधारने और शहरी व ऊर्जा क्षेत्र में चहुंमुखी टिकाऊ विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयासों अथवा निजी वाणिज्यिक समझौतों से चलाई जा रही परियोजनाओं से साफ तौर पर चल जाता है.
प्रवासियों के अनुकूल नीतियां
सरकार प्रवासी भारतीयों के रूप में अपनी सबसे बड़ी पूंजी की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना जारी रखे हुए है जिसके लिए अनेक नीतियां बनायी गयी हैं और पहल की गयी हैं. प्रवासन की प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षित,व्यवस्थित, कानून-सम्मत और मानवीय बनाने के लिए संस्थागत ढांचे में सुधार के मंत्रालयके प्रयास भी जारी हैं.
प्राथमिकता वाला एक क्षेत्र है प्रवासन चक्र के विभिन्न चरणों, जैसे विदेश रवानगी से पहले, गंतव्य देश में पहुंचने और वहां से वापसी के समय प्रवासी कामगारों को मदद देने वाले समूचे तंत्र को सुदृढ़ करना. प्रवासी भारतीय श्रमिकों के कौशल में सुधार और उनके व्यावसायिक कौशल के प्रमाणन के लिए नयी पहल की गयी हैं.
2 जुलाई, 2016 को विदेश मंत्रालय और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने एक समझौता ज्ञापन पर दस्तखत किये जिसका उद्देश्य प्रवासी कौशल विकास योजना (पीकेवीवाई) पर अमल करना था. राष्ट्रीय कौशल विकास निगम इस योजना को लागू करने के लिए इंडिया इंटरनेशनल स्किल सेंटर्स स्थापित करने की दिशा में प्रयासरत है जिन्हें स्थानीय जरूरतों के अनुरूप अनुकूलित किया जाएगा.
पिछले साल गांधी जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में प्रवासी भारतीय केन्द्र का उद्घाटन किया और इसे भारतवंशियों को समर्पित किया. इस केन्द्र की स्थापना का उद्देश्य दुनिया भर में फैले भारतवंशियों द्वारा विदेशों रह कर किये गये परिश्रम और धैर्य का स्मरण करना और उसके परिणामस्वरूप हासिल उपलब्धियों और विकास की ओर ध्यान आकृष्ट करना है.
भारत के महानतम प्रवासियों में से एक — महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका से स्वदेश वापसी की स्मृति में देश में हर साल प्रवासीय भारतीय दिवस का आयोजन किया जाता है. इसमें देश-विदेश में भारतवंशियों के योगदान को याद किया जाता है.
***
लेखक कई अखबारों और समाचार संगठनों में कार्य कर चुके हैं. फिलहाल वह मीडिया कंसल्टेंट के तौर पर कार्य कर रहे हैं. इस लेख में व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं. (यह फीचर पीआईबी तिरुअनंतपुरम से प्राप्त हुआ.) अनुवाद : राजेन्द्र उपाध्याय