Front Page

गौचर के 7 निकतवरती गांवों की आराध्य देवी कालिंका की उत्सव डोली पहुंची पनाई सेरा

-गौचर से दिगपाल गुसाईं –
पालिका क्षेत्र के सात गांवों की आराध्य देवी कालिंका की उत्सव डोली तीन दिनों की पूजा अर्चना के लिए बुधवार को गाजे बाजे के साथ पनाईं सेरे में स्थित मायके के मंदिर में पहुंचा दी गई है। इस अवसर पर मंदिर परिसर देवी कालिंका के नारों से गुंजायमान रहा।


पूर्व से चली आ रही परंपरा के अनुसार बुधवार को गणेश चतुर्थी के दिन भगवती के भाई माने जाने वाले रावलनगर के रावल देवता के कटार गाजे बाजे के साथ भटनगर गांव की सीमा में स्थित कालिंका के मूल मंदिर में गए।अपने भाईयों को देखकर कालिंका पुजारी राधावल्लभ थपलियाल पर अवतरित होकर खिलखिला उठी। देखते ही देखते तमाम देवी देवता अपने अपने पश्वाओं पर अवतरित हो गए। कुछ समय के लिए मंदिर परिसर भक्तिमय हो गया। इसके बाद देवी के ससुराली माने जाने वाले भटनगर गांव निवासी देवी को मंदिर की सीमा तक छोड़ने आते हैं। इस यात्रा के दौरान एक ऐसा भी पड़ाव आता है जहां पर देवी पुजारी पर अवतरित होकर आगे जाने के बजाय उसी स्थान पर घूमने लगती है। बताया जाता है कि यात्रा के दौरान इसी स्थान पर देवी का गहना खो गया था। इस स्थान पर सिरफल की बलि देकर देवी को आगे चलने के लिए मनाया जाता। जैसे ही देवी की उत्सव यात्रा मायके के मंदिर की सीमा में पहुंचती है वहां पहले मौजूद क्षेत्र की तमाम जनता पुष्प अक्षत की वर्षा कर अपनी आराध्य ध्याण का गर्मजोशी से स्वागत करते हैं।पनाईं सेरे का सीना चीर कर बनाई गई हवाई पट्टी से इस यात्रा के लिए जहां पारंपरिक रास्तों का संकट पैदा हो गया है वहीं यात्रा से जुड़ा इतिहास भी समाहित हो गया है। हवाई पट्टी बनने से पहले मंदिर के समीप एक ऐसा पड़ाव भी था जहां पर देवी की मोर्छा उतारने के लिए सुअर की वलि दी जाती थी।अब रश्म अदायगी के लिए सिरफल की बलि दी जाती। मायके के मंदिर में पहुंचने पर देवी के भाईयों की सुरक्षा में रख दिया जाता है।इस अवसर पर महिलाओं द्वारा मांगलिक गीतों के माध्यम से देवी की आराधना कर क्षेत्र की खुशहाली की कामना की गई। कर्मकांडी पंडितों ने विधिविधान से भगवती की पूजा अर्चना की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!