जिताया भी हराया भी और आईना भी दिखा गये ये चुनाव
– जयसिंह रावत
हाल ही में सम्पन्न चुनाव नतीजों ने सत्ता के दावेदार दलों को आईना दिखाने के साथ ही राजनीति की नयी राहों की ओर संकेत भी कर गये। सर्व शक्तिमान भाजपा को सकेत यह कि मंहंगाई-बेरोजगारी जैसे आम आदमी से जुड़े मुद्दों को भावनात्मक और धार्मिक मुद्दों से दबाया नहीं जा सकता। विपक्ष को सकेत यह कि एक दूसरे से लड़ोंगे तो न खुदा ही मिलेगा न बिसाले सनम। इन चुनाव नतीजों ने तीनों दोवेदारों को निराशा के साथ सुधरने के लिये उम्मीदें भी दी हैं। अब देखना यह है कि इन दलों को जो झटके मिले हैं उन पर आगे के लिये कितना मनन करते हैं। अगले साल 9 राज्यों के चुनाव हैं और 2024 में देश की सत्ता के लिये चुनावी महाभारत तय है। चुनाव नतीजे उन भाड़े के ओपेनियन और एग्जिट पोल कर वालों के लिए भी सबक हैं कि उनके प्रायोजित सर्वेक्षणों से मतदाताओं का मन नहीं बदला जा सकता। इस बार भी पोलस्टरों ने भाजपा को हिमाचल में भी जिता दिया था।
तीनों दल हारे भी और जीते भी
भारतीय जनता पार्टी को हिमाचल प्रदेश और और दिल्ली नगर निगम चुनाव में झटका लगा तो गुजरात में उसके हाथ ऐतिहासिक जीत लग गयी। देश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को गुजरात में शर्मनाक हार से गुजरना पड़ा मगर हिमाचल में उसने भाजपा का विजय रथ रोक कर उससे सत्ता छीन ली। तीसरी किरदार आम आदमी पार्टी हिमाचल में खाता भी न खोल सकी और कांग्रेस को पीछे धकेलने के प्रति आश्वस्त होने के बावजूद गुजरात में कांग्रेस से बहुत पीछे रह गयी। लेकिन दिल्ली नगर निगम के चुनाव में भाजपा को सत्ता से बाहर करने के साथ ही उसे राष्ट्रीय दल दर्जे की खुशी मिल गयी।
गुजरात की जीत की खुशी पर हिमाचल के गम का साया
भारतीय जनता पार्टी का गुजरात में चुनाव जीतना पहले ही तय माना जा रहा था। जीत का अंतर भी काफी अनुमानित था, मगर इतनी बड़ी जीत की उम्मीद पार्टी की खैरख्वाह ओपीनियन पोलबाज ऐजेंसियों को भी नहीं थी। भाजपा की जीत प्रधानमंत्री मोदी का गृह राज्य होने, मोदी का करिश्मा और गुजरात के गौरव जैसे भावानात्मक कारणों से सुनिश्चित ही थी। सन् 2017 के मुश्किल चुनाव को ध्यान में रख कर न केवल भाजपा ने, अपितु प्रधानमंत्री मोदी ने पूरी ताकत झौंक दी थी। उन्हें 2017 के चुनाव की तरह अपने सम्मान और स्वाभिमान को गुजरात के स्वाभिमान से जोड़ना पड़ा। देशभर से गुजरात गये बाकी पार्टी नेताओं का ध्यान भी हिन्दुत्व पर रहा। इसलिये भाजपा की भारी जीत पहले ही पक्की हो गयी थी।
भावनात्मक मुद्दों से असली मुद्दे न भटकाने का संदेश
इन चुनाव नतीजों का भाजपा को स्पष्ट संदेश यह भी है कि केवल धार्मिक और भावनात्मक मुद्दे उठा कर जनता का ध्यान असली मुद्दों से ज्यादा दिन नहीं भटकाया जा सकता। पार्टी को गुजरात की ऐतिहासिक जीत के बावजूद हिमाचल से जो झटका लगा उसकी गूंज आने वाले चुनावों तक जा सकती है। वह इसलिये कि हार के मंहंगाई, बेराजगारी, भ्रटाचार और एंटी इन्कम्बेंसी जैसे जो कारण हिमाचल में थे वे अगले साल 9 राज्यों में होने वाले चुनावों में उभर सकते हैं। भाजपा ने उत्तराखण्ड में बारी-बारी चुनाव जीतने का टेंªड तो तोड़ दिया मगर टेंªड को हिमाचल में पूरी ताकत लगाने के बाद भी तोड़ न सकी, जबकि मीडिया पूरा साथ दे रहा था। मोदी जी का करिश्मा इस हिमालयी राज्य में न चल सका। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केन्द्रीय मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर के क्षेत्रों में तक पार्टी हार गयी। भाजपा अब तक 12 राज्यों में पूरी तरह और महाराष्ट्र में सिन्दे गुट की शिवसेना के साथ सत्ता भागीदार थी। हिमाचल के हाथ सेनिकलने के बाद उसके पास 11 राज्य रह गये जहां पूरी तरह उसकी हुकूमत है। अगले साल होने वाले चुनाव में उसे त्रिपुरा, कर्नाटक और मध्य प्रदेश की सत्ता भी बचानी है। जहां उसका मुख्य मुकाबला कांग्रेस से होगा। हालांकि आम आदमी पार्टी वहां भी भाजपा की मदद कर सकती है।
गुजरात में हार के बावजूद कांग्रेस की उम्मीदें जगींए उर्जा भी मिली
गुजरात विधानसभा के 2017 में हुये चुनाव में कांग्रेस अपने नेताओं के बड़बोलेपन के कारण सत्ता के करीब आते-आते दूर छिटक गयी थी। लेकिन इस बार की मोदी लहर ने उसे मान्यता प्राप्त विपक्षी दल कहलाने लायक भी नहीं छोड़ा। इतनी शर्मनाक हार के बावजूद कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश के चुनाव नतीजों ने नयी ऊर्जा और नयी उम्मीद परोस कर दे दी। इससे हताश निराश कांग्रेसजनों में नया उत्साह जगेगा। अब उसके पाले में तीन की जगह चार राज्य आ गये। वह तमिलनाडू, बिहार और झारखण्ड की सत्ता में भी मित्र दलों के साथ पार्टनर है। फिर भी नरेन्द्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व वाली महाबली पार्टी भाजपा से उसका एक राज्य छीनना कोई आसान काम नहीं था। इससे पहले उत्तराखण्ड में कांग्रेस सत्ता छीनने का विफल प्रयास कर चुकी थी। जब ’’आप’’ जैसा नया नेवेला क्षेत्रीय दल कांग्रेस को रौंद कर उसकी जगह लेना चाहता हो और निराशा के घटाटोप में डूबते जहाज की तरह पंछी उसे छोड़ रहे हों, ऐसे मौके पर भाजपा जैसे चुनावी चाण्क्यों, धनबलियों, प्रोपेगण्डा माहिरों और मोदी जैसे परम प्रतापी महाराथियों वाले दल से एक राज्य छीनना कांग्रेस के लिये बहुत बड़ी उपलब्धि है।
कांग्रेस को दो राज्य बचाने और कुछ वापस लेने की चुनौती
राहुल गांधी तो 2024 के लिये मैदान तैयार कर ही रहे हैं, लेकिन उससे पहले कांग्रेस के सामने 2023 में अपने राज्यों का कुनबा बढ़ाने से पहले राजस्थान और छत्तीसगढ़ के गढ़ों को बचाने की चुनौती है। राजस्थान में गहलोत और पायलट के बीच का शीत युद्ध किसी से छिपा नहीं रह गया है। कांग्रेस की कर्नाटक और मध्य प्रदेश में भी संभावनाएं हैं। कर्नाटक में 2018 में कांग्रेस जनतादल सेकुलर के साथ सरकार बना चुकी थी, लेकिन अगले ही साल भाजपा के येदुरप्पा के हाथों उसका गठबंधन सत्ता गंवा बैठा। इसी पगकार मध्य प्रदेश में ज्योर्तिआदित्य सिंधिया की बगावत के कारण मध्य प्रदेश में भी जीती हुयी बाजी हाथ से निकल गयी थी।
जीरो पर आउट होने वाली आप राष्ट्रीय दल बनी
इन चुनावों में हिमाचल में खाता भी न खोल सकने और गुजरात में केवल 5 सीटों पर सन्तोष करने वाली आम आदमी पार्टी सबसे अधिक गदगद नजर आ रही है। वह इन दोनों राज्यों में भाजपा से सत्ता छीनने के लिये मैदान में उतरी थी और इस उद्ेश्य के लिये पूरे संसाधनों झोंकने के साथ ही उसने पूरे चुनावी हथकण्डे अपना लियेे थे। वह मुफ्त की रेवड़ियां बांटने में तो भाजपा से आगे निकल ही गयी थी लेकिन वह भाजपा से हिन्दुत्व का ऐजेण्डा छीनने का प्रयास भी कर रही थी। बिल्किस बानो के साथ हुये अत्याचार का जिक्र करने से भी परहेज करना इसका उदाहरण है। उसके प्रचार का एक नरेटिव यह भी था कि ‘‘अब कांग्रेस कहीं नहीं है अपने वोट खराब न करो’’। पार्टी को दो राज्यों में चुनावी हार के बावजूद सबसे बड़ी खुशी दिल्ली नगर निगम चुनाव में मिल गयी। भले ही वह गुजरात-हिमाचल में भाजपा को सत्ता से बेदखल न कर सकी, मगर दिल्ली नगर निगम में तो उसने भाजपा को बाहर का रास्ता तो दिखा ही दिया। उससे भी बड़ी खुशी आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय दल का दर्जा प्राप्त होने की है।
आप ने 22 चुनाव लड़े 16 में खाली हाथ रही
यह पार्टी 10 वर्षों के अपने जीवनकाल में अब तक 18 राज्यों में 21 चुनाव लड़ चुकी थी। इनमें से 15 चुनावों में वह जीरो पर आउट हो गयी थी। अब खाली हाथ वाला सोलहवां राज्य हिमाचल बन गया है। लेकिन इस बार उसका खाता गुजरात में खुल ही गया। इस प्रकार वह दिल्ली, पंजाब, गोवा के बाद गुजरात में अस्तित्व में होने के कारण राष्ट्रीय दल बनने की हकदार बन गयी। लेकिन उसका पहला लक्ष्य भाजपा न होकर कांग्रेस मुक्त भारत का है ताकि वह कांग्रेस की जगह ले सके और यह लक्ष्य फिलहाल संभव नजर नहीं आता। अलबत्ता विपक्षी एकता में सबसे बड़ा बाधक अवश्य बन सकता है।
आने वाले साल में होंगे 9 राज्यों के चुनाव
लोकसभा के 2024 में होने जा रहे चुनाव से पहले 2023 फरबरी में त्रिपुरा, मेघालय और नागलैण्ड विधानसभा चुनाव होने हैं। उसके बाद मई में कर्नाटक के चुनाव, नवम्बर में छत्तीसगढ़, मीजोरम और मध्य प्रदेश के चुनाव और दिसम्बर में राजस्थान और तेलंगाना विधानसभा के चुनाव होने हैं। इनमें से नवम्बर और दिसम्बर में होने वाले चुनावों का असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है। इसलिये आने वाला साल भी चुनावी गहमागहमी वाला होने वाला है। इन चुनावों में केजरीवाल की पार्टी जरूर किश्मत आजमायेगी और उसे खाता खोलने का मौका मिले या न मिले मगर कांग्रेस को पलीता लगाने का मौका अवश्य मिल जायेगा। इन चुनावों में कांग्रेस अपने नये गढ़ बचाने के साथ ही कर्नाटक और मध्य प्रदेश के जैसे लुटे हुये गढ़ पुनः जीतने का प्रयास करेंगी। ताजा चुनाव नजीजों से जो दल सबक लेंगे उनको ही आगे लाभ मिलेगा।