जीएमवीएन की एमडी को हटाने से कर्मचारी संघ नाराज, आज सीएम से करेंगे फरियाद
-दिनेश शास्त्री-
देहरादून, 10 जुलाई । गढ़वाल मंडल विकास निगम को शासन ने प्रयोगशाला बना कर रख दिया है। साल भर पहले जो निगम बीमार हालत में था, उसे लाभ में लाने वाली एमडी स्वाति एस. भदौरिया को शनिवार को हटा दिया गया। उनका कार्यकाल मात्र दस माह का रहा लेकिन इस अल्प समय में उन्होंने जो बड़ी लकीर खींची शायद ही भविष्य में कोई छोटी कर सके। साल भर पहले करीब दस करोड़ के घाटे वाला निगम सत्तर करोड़ के लाभ में पहुंच जाए, यह शायद पसंद नहीं आया होगा, या फिर गढ़वाल मंडल विकास निगम में उत्तराखंड सरकार कुछ और बड़ा करने की सोच रही होगी, यह तो वही जाने लेकिन शासन के इस निर्णय से कर्मचारी हताश और निराश जरूर हैं।
रविवार को ऋषिकेश में हुई निगम कर्मचारी संघ की बैठक में श्रीमती भदौरिया को हटाए जाने पर गहरी नाराजगी व्यक्त की गई। मनमोहन चौधरी की अध्यक्षता और बी. एम. जुयाल के संचालन में हुई बैठक में कहा गया कि शासन स्तर पर हुए फेरबदल में प्रबन्ध निदेशक को हटाया जाना गैर जरूरी निर्णय है। बैठक में उपस्थित कर्मचारियों ने शासन के निर्णय का ध्वनि मत से विरोध किया। बैठक में कर्मचारी नेता मनमोहन चौधरी ने कहा कि प्रबंध
निदेशक स्वाति एस भदौरिया का पदभार वापस करने हेतु सोमवार को उनका प्रतिनिधिमंडल सोमवार को मुख्यमंत्री से अनुरोध करेगा साथ ही मुख्य सचिव और पर्यटन मंत्री से भी भेट की जायेगी। उनका कहना था कि श्रीमती भदौरिया द्वारा मात्र दस माह में किए गए कार्य अविस्मरणीय हैं। उन्होंने कड़ी मेहनत से निगम को न सिर्फ नई दिशा दी बल्कि कर्मचारिया का मनोबल भी बढ़ाया। इसीका नतीजा है कि लगातार घाटे में चल रहा निगम करोड़ो का मुनाफा कमाने लगा है। पहले जहां वेतन के लिए तीन – तीन माह का इंतजार करना पड़ता था, अब कमचारियों को नियत समय पर वेतन मिलना भी बहुत बड़ी उपलब्धि रही। बैठक में बृज मोहन जुयाल, सन्दीप, सूर्य प्रकाश विश्वास, चमन सिंह, मेघनाथ, हरपाल सिंह, उमा नेगी, सूर्यप्रकाश कोठारी, महादेव, नरेन्द्र नौटियाल, पूरण सिंह, रणवीर रावत, अरविन्द उनियाल, मनमोहन चौधरी आदि मौजूद थे।
निष्कर्ष यह कि निगम की कार्यशैली में पहली बार गुणात्मक सुधार नजर आने लगा था, लेकिन तभी किसी की नजर लग गई और शासन ने मात्र दस माह में एमडी को चलता कर दिया।
कर्मचारी नेता मानते हैं कि पर्यटन सत्र के मध्य में नेतृत्व का बदलाव निगम के हित में नहीं होगा। वे मानते हैं कि नए एमडी को पहले तो समझने में ही वक्त लग जायेगा और जब तक वह दिशा देने की कोशिश शुरू करेगा, तब तक उसे भी चलता कर दिया जायेगा और निगम फिर घाटे के दलदल में धंस जायेगा। इस तरह के प्रयोग निगम और उसके कर्मचारियों के हित में नहीं हैं।
अब यह प्रकरण किस अंजाम तक पहुंचेगा, यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन निगम को प्रयोगशाला बनाने के नतीजे शायद ही भविष्य के लिए फायदेमंद हों, यह पक्के तौर पर कहा जा सकता है।