कई वर्षों से नहीं हुए हैं वन पंचायतों के चुनाव
–दिनेश शास्त्री —
वन पंचायतों को लेकर राज्य सरकार की उदासीनता से जनप्रतिनिधि खासे नाराज हैं। क्षेत्रीय नेता लक्ष्मण सिंह नेगी इस मामले का तत्काल संज्ञान लेने की दरकार रखते हैं। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में वन पंचायत व्यवस्था अंग्रेजों के समय से चली आ रही है।
उन्होंने कहा कि हम अंग्रेजों को कितना भी कोस लें लेकिन इस तथ्य और सत्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि यहां के पर्यावरण की सुरक्षा और आम लोगों के हक हकूक सुनिश्चित करने के लिए यह व्यवस्था वनों के प्रबंधन के लिए मजबूत व्यवस्था मानी जाती है किंतु उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 2001 से वन पंचायतों के अधिकार बेहद सीमित कर दिए गये हैं। जहां वन पंचायतों के अधिकार धीरे-धीरे राज्य गठन के बाद सीमित कर दिया गया, वहीं पहले वन पंचायत व्यवस्था जिला प्रशासन और तहसील प्रशासन द्वारा संचालित की जाती रही थी जिसमें वन पंचायतों के संचालन के लिए वन पंचायत निरीक्षक हुआ करते थे, राजस्व विभाग के द्वारा वन पंचायतों के चुनाव संपन्न कराया जाता था लेकिन वर्ष 2001 के बाद जिला प्रशासन एवं तहसील प्रशासन के पास वन पंचायतों के चुनाव करवाने के अलावा कोई भी कार्य नहीं रह गया है, बाकी प्रशासनिक कार्यों के लिए वन विभाग के वन वीट अधिकारियों को वन पंचायत के सचिव नामित किया गया है किंतु वन बीट अधिकारी भी अपना सचिव पद का दायित्व नहीं निभा रहे हैं। कैट प्लान एवं सरकारी योजना पर आधारित यह व्यवस्था चल रही है जबकि वन पंचायत व्यवस्था के अंतर्गत वन बीट अधिकारी पदेन उसका सचिव होता है और वन पंचायत की कार्यवाही लिखने की जिम्मेदारी सचिव की है किंतु यह व्यवस्था धरातल पर कम ही दिखती है।
श्री नेगी ने कहा कि जोशीमठ विकासखंड के अंतर्गत 65 वन पंचायत हैं, जो नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क क्षेत्र के अंतर्गत आती हैं। इन 65 वन पंचायतों में वर्तमान समय में 23 से अधिक वन पंचायतों में चुनाव की कार्यवाही विगत तीन वर्षों से नहीं हो पायी है। यह गंभीर प्रश्न है लेकिन अधिकारी इस ओर ध्यान देने की जरूरत ही नहीं समझते। उनके लिए यह गैरजरूरी लगता है।
इस प्रकरण में नंदा देवी राष्ट्रीय पार्क जोशीमठ के वन संरक्षक बीबी मर्तोलीया ने कहा कि उनके द्वारा उप जिलाधिकारी जोशीमठ को पत्र लिख कर वन पंचायतों के चुनाव कराने आग्रह किया जा चुका है क्योंकि वन पंचायत एक्ट के तहत चुनाव कराने का अधिकार राजस्व विभाग को है लेकिन किन्हीं कारणों से वन पंचायत के चुनाव नहीं हो पाये है। इसी प्रकरण में उप वन संरक्षक भूमि संरक्षण विभाग चमोली ने भी जिलाधिकारी चमोली को पत्र लिखकर जनपद चमोली में वन पंचायतों के चुनाव संपन्न कराए जाने का आग्रह किया है।
दूसरी ओर वन पंचायत सरपंच संघ के संरक्षक बहादुर सिंह रावत से बात की गई तो उन्होंने बताया कि वन पंचायतों को निष्क्रिय करने में सरकार स्वयं जिम्मेदार है। समय-समय पर चुनाव संपन्न कराये जाते तो वन पंचायत सक्रिय रहती और अच्छा काम करते हैं सरकार स्वयं चाहती है कि व्यवस्था लड़खड़ाती रहे। उनका कहना था कि हमने सरकार से वन पंचायतों को अधिकार संपन्न बनाने के लिए समय-समय पर मांग की किंतु कोई भी सकारात्मक परिणाम नहीं दिखे हैं। सरकार को इस मामले में गंभीरता दिखानी चाहिए।