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विरोध प्रकट करने की भी एक अहिंसक शैली थी गांधी जी की

 

-गोविंद प्रसाद बहुगुणा

ब्रिटिश हुकूमत के प्रतिनिधि के तौर पर जब लॉर्ड वेवल १९४३ से २१ फरवरी १९४७ तक भारत के वायसराय और गवर्नर जनरल रहे, उसी समय १७ फरवरी १९४४ को गाँधी जी ने उन्हें एक पत्र भेजा था, जिसका यह संक्षिप्त तर्जुमा प्रस्तुत कर रहा हूँ –

“प्रिय मित्र , यद्यपि मुझे आज तक आपसे मिलने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ फिर भी मैंने सोच समझकर ही आपको *प्रिय मित्र* कहकर संबोधित किया है ।हालांकि ब्रिटिश सरकार की नजर में मैं उनका सबसे बड़ा नहीं तो कम से कम बड़ा दुश्मन जरूर गिना जाता हूँ I क्योंकि मैं स्वयं को मानवता का मित्र और सेवक मानता हूँ , जिसमें नि:संदेह ब्रिटिश नागरिक भी शामिल हैं। अस्तु आप लोगों के प्रति मेरी सद्भावना के तौर मैं यहां आपको *मित्र* कह रहा हूँ, क्योंकि आप भारत में निवास कर रहे ब्रिटिश समुदाय के भी सर्वोच्च प्रतिनिधि हैं, इसलिए भी आपको मित्र कह कर सम्बोधित करना ठीक है I

अन्य लोगों की तरह मुझे भी पहली दफा एक नोटिस प्राप्त हुआ है जिसमें मुझे हिरासत में रखे जाने के बारे सूचित किया गया है ,उस नोटिस का मैंने समय से आपको जबाब भी भेज दिया था लेकिन आज तक मुझे उसका प्रत्युत्तर नहीं मिला है बावजूद मेरे स्मरण पत्र भेजने के , फिर दुबारा आपको स्मरण पत्र भेज दिया गया है –देखिये सरकार ने असेंबली में श्रीमती सरोजिनी नायडू की रिहाई के प्रस्ताव के विरुद्ध जो वक्तव्य दिया और जिस तरह से स्वतंत्र अभिव्यक्ति को दबाने की कोशिश की गयी है , उससे लगता है कि सरकार की यह कार्यवाही आग में घी डालने की एक कोशिश है। हमारी अन्तरात्मा पूर्ण आजादी प्राप्त करने के लिए दृढ़संकल्प है उससे कम हम कुछ नहीं चाहते—-
” (सूत्र- Gandhiji’s Correspondence’with the Government 1942-1944 नवजीवन पब्लिशिंग हाउस अहमदाबाद )

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