साडा का भूत अब भी पीछा नहीं छोड़ रहा दून घाटी का
-जयसिंह रावत
सन् 1989 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दून घाटी के नैसर्गिक सौंदर्य एवं पारितंत्र को बचाने के लिये गठिन दून घाटी विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण का अस्तित्व तो समाप्त हो गया मगर उसका भूत दून घाटी के विकास को अभी भी छल रहा है। इस प्राधिकारण को दून वैली स्पेशियल एरिया डेवलपमेंट अथारिटी (साडा) भी कहा जाता था जिसका कुछ साल पहले मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) में विलय हो चुका था। उसके कर्मचारी भी एमडीडीए में शामिल कर दिये गये हैं। लेकिन साडा के नियम अब भी विकास के मार्ग में आड़े आ रहे हैं। वैसे भी प्रदेश के हर जिले में गठिन विकास प्राधिकरण लोगों की जी के जंजाल बन चुके हैं और विपक्ष के साथ ही सत्ता पक्ष के लोग भी उनका विरोध कर रहे हैं।
आम धारणा है कि इन प्राधिकारणों से अवैध निर्माण और अव्यवस्थित विकास तो रुका नहीं मगर भ्रष्टाचार के कारण नगरों के स्वरूप अवश्य बिगड़ गये हैं। बुल्डोजर भी सत्ता के दलालों और वोट बैंकों पर नहीं चलते। पर्यावरण सम्बन्धी नियम भी केवल सरकार और गरीबों पर ही लागू होते हैं। अब तो बुल्डोजर एक समुदाय विशेष को डराने का माध्यम बन गया है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री से यह मसला उठाया है। दिल्ली प्रवास के दौरान मुख्यमंत्री इस संबंध में केंद्रीय मंत्री को पत्र सौंप चुके हैं। सरकार का तर्क है कि पिछले करीब दो दशक से देहरादून राज्य की राजधानी है, लेकिन अधिसूचना के प्रावधान राजधानी क्षेत्र के अवस्थापना विकास एवं क्षेत्र में स्थापित होने वालीं कई परियोजनाओं को प्रतिबंधित करते हैं।
दून घाटी में प्रदूषण की रोकथाम के लिए 1989 में अधिसूचना जारी हुई थी। सरकार को लग रहा है कि इससे मसूरी और देहरादून घाटी में विभिन्न श्रेणियों के विकास और औद्योगिक गतिविधियां प्रतिबंधित हो रही हैं। लाल श्रेणी के उद्योगों पर पूर्ण पाबंदी लगी है। नारंगी श्रेणी की इकाइयों को राज्यस्तरीय पर्यावरण प्रभाव निर्धारण प्राधिकरण से स्वीकृति जरूरी है। घाटी में किसी भी खनन गतिविधि के लिए केंद्र सरकार का अनुमोदन होना चाहिए।दून घाटी क्षेत्र में वर्तमान में चूना पत्थर की खदानें नहीं हैं। खनन के जो भी प्रस्ताव होते हैं, वे सभी केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अनुमोदन के लिए भेजे जाते हैं। दून घाटी अधिसूचना में या तो वर्तमान परिस्थितियों के अनुरूप संशोधन हो या उसको वापस लिया जाए।