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तबाही ला सकती हैं ग्लेशियर झीलें

Glacier lakes, also known as glacial lakes or ice-marginal lakes, are bodies of water that form in depressions created by the melting of glaciers. These lakes are typically found in high-altitude or polar regions where glaciers exist. Here are some key characteristics of glacier lakes.GLOFs or Glacial Lake Outburst Floods, are ticking bombs sitting in the lap of Himalayas with the potential to sweep away the growing population in the mountains. There are as many as 7,500 of them, and Sikkim only is home to 10 percent of the total, with about 25 assessed as high-risk. Glacial lake inventory of Uttarakhand lists 1266 glacial lakes as witnessed using satellite data. But the real problem is 13 most vulnerable glacial lake catagorised as risk level A by National Disaster Management Authority (NDMA) in Uttarakhand. There lakes are prone to GLOFs, the kind of events that resulted in several disasters in the Himalayan states in the recent years.

 

विनोद कुमार
पिछले साल सिक्किम में लहोनक ग्लेशियर झील फटने की घटना पुरानी नहीं है जिसमें 180 लोगों के मरने व पांच हजार करोड़ के नुकसान की खबर थी। इसी तरह केदारनाथ में चौराबाड़ी ग्लेशियर झील फटने से हजारों लोगों की जल प्रलय में मौत हुई थी। 2021 में उत्तराखंड की नीति घाटी में ग्लेशियर झील फटने से दो सौ लोगों के मरने समेत डेढ़ हजार करोड़ का नुकसान हुआ था। अब हिमालय पर्यावरण विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि देश के हिमालय क्षेत्र में आने वाले राज्यों में खतरनाक किस्म की 188 ग्लेशियर झीलें बन चुकी हैं, जो किसी बड़े भूकंप आने पर लाखों लोगों के जीवन पर घातक प्रभाव डाल सकती हैं। यूं तो सबसे ज्यादा खतरे की वजह पूर्वोत्तर की झीलें हैं, लेकिन खतरा कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश व सिक्किम में भी लगातार बना हुआ है। दरअसल, केंद्रीय गृहमंत्रालय के अंतर्गत काम करने वाले डिजास्टर मैनेजमेंट डिवीजन और हिमालय अध्ययन विशेषज्ञों की टीम द्वारा किए गए एक साल की स्टडी के बाद जो निष्कर्ष सामने आए हैं वे चिंता में डालने वाले हैं। दरअसल, अब ग्लोबल वार्मिंग का वास्तविक खतरा सामने दिखायी दे रहा है।

लगातार बढ़ते तापमान से हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पहाड़ों में बर्फ पिघलने से बने जल को निकासी का रास्ता न मिलने पर ये बर्फीला पानी झीलों के रूप में एकत्र हो जाता है। पर्यावरण विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं कि यदि इन संवेदनशील इलाकों में सात तीव्रता जैसा भूकंप आता है तो ये झीलें जल बम बनकर फूट सकती हैं। इससे छह राज्यों की करीब तीन करोड़ आबादी प्रभावित हो सकती है। दरअसल, इस हालिया अध्ययन में बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग संकट के चलते इन हिमालयी क्षेत्रों में 28 हजार से अधिक झीलें बन गई हैं। जिसमें 188 ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती हैं। इन संवेदनशील झीलों को ए श्रेणी में रखा गया है। इन इलाकों में ग्लेशियरों के पिघलने व खिसकने का खतरनाक ट्रेंड देखा गया है।

वैज्ञानिक चिंता जता रहे हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते ग्लेशियरों की पिघलने की दर 15 प्रतिशत बढ़ गई है। जो हमारे लिए गंभीर चेतावनी का कारण बन रही है। केंद्र सरकार के अधिकारी और पर्यावरण विशेषज्ञ ग्राउंड जीरो व उपग्रहों के जरिये इन झीलों की बराबर निगरानी कर रहे हैं। इन इलाकों में स्वचालित मौसम निगरानी केंद्र बनाये गए हैं। इस दिशा में मंथन किया जा रहा है कि कैसे इन खतरनाक झीलों का पानी आधुनिक तरीकों से रिलीज किया जाए। एक ओर जहां झीलों से जल निकासी के रास्ते तलाशे जा रहे हैं, वहीं ड्रिल करके पानी को नियंत्रित करने पर भी विचार हो रहा है। इसके अलावा भूमिगत पानी के साथ मिलाने के लिये भूमिगत टनल बनाने पर भी मंथन हो रहा है। निस्संदेह,यह एक गंभीर पर्यावरणीय संकट हैं और छह राज्यों के करोड़ों लोग इस संकट से प्रभावित हो सकते हैं। दरअसल, झील के फटने पर मिट्टी व भारी मलबा ढलान पर गोली की तरह उतरता है, जो भारी तबाही का कारण बन सकता है।( Editted by- Usha Rawat)

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