कहीं आस्था से खिलवाड़ का नतीज़ा तो नहीं खोह नदी का रौद्र रूप
मजारों पर बुल्डोज़र चला कर हिन्दू श्रद्धालुओं की भावनाएं भी आहत हुयीं!
-राजेंद्र शिवाली, कोटद्वार –
गढ़वाल के द्वार कोटद्वार नगर में पूर्वी खोह नदी और उसके किनारे लगे पहाड़ ने पहली बार आखिर क्यों कहर बरपाना शुरू किया, इसका अंदाजा किसी को नहीं था। हो सकता है कि यह भ्रम हो, मगर कुछ लोग इस आपदा के पीछे प्रकृति और आस्था के साथ खिलवाड़ मान रहे हैँ ।
श्रीनगर में धारी देवी को अपने स्थान से हटाने पर धारी देवी के रुष्ट हो जाने पर भोलेनाथ के तांडव से केदारनाथ में वर्ष 1913 में भारी आपदा आई थी। हजारों लोग मारे गए और हजारों अभी भी लापता हैं। मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च यह सब अपने-अपने धर्मों को मानने वाले लोगों की आस्था से जुड़े हैं। कोटद्वार में भी पीडब्ल्यूडी के सामने खोह नदी के तट पर सिंचाई विभाग की नहर के किनारे बनी वर्षों पुरानी मजार एक समुदाय की आस्था से जुड़ी हुई थी। इस मजार से किसी को कोई परेशानी नहीं थी। कोटद्वार में कोडियां पीर की मजार है। कालू पीर की मजार है और इन मजारों में मुस्लिम ही नहीं, बड़ी तादात में हिन्दू भी मत्था टेकने तथा चादर चढ़ाने जाते हैं।
विगत माह कुछ सिरफिरे लोगों की सोच के चलते विरोध पर पीडब्ल्यूडी के सामने बनी मजार को तोड दिया गया। इस मजार के टूटने के बाद से ही भीषण गर्मी के मौसम में भी बारिश ने कहर बरपाना शुरू कर दिया। बादलों ने फटना शुरू कर दिया था। पनियाली गदेरा हो या गिवई स्रोत हो, यह सब आखिर खोह नदी में मिलती हैं। इन्होंने तभी से रौद्र रूप दिखाया शुरू कर दिया था। खोह नदी ने एक दर्जन से अधिक मकान अपने आपमें समां लिए। इससे पूर्व लालपुल के पास एक कार के खोह नदी में गिर जाने से जनपद बिजनौर के तीन लोगों की मौत हो गई थी।
बाद में खोह नदी में एक और व्यक्ति बह गया था। पनियाली गदेरे ने कोडियां पीर के पास भारी तबाही मचाई है। पुल और सडक क्षतिग्रस्त हो गई। गिवई स्रोत में बसें बह गई। पीडब्ल्यूडी से लेकर लालपुल तक पहाड ने भी रौद्र रुप दिखाया। पहाड से भारी मलबा आने से सड़क बन्द हो गई। बादल फटने शुरू हो गए। लोगों का मानना है कि कोटद्वार में इस बार जो तबाही का मंजर देखने को मिला, वह किसी की आस्था से खिलवाड़ का ही नतीज़ा है। क्योंकि गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है।