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साम्राज्यवादी ताकतें रूस की घेराबंदी न करतीं तो यूक्रेन पर हमला भी न होता

 

अनन्त आकाश
पिछले कुछ दिनों से रूस व यूक्रेन के मध्य छिडा़ युद्ध दुर्भाग्यपूर्ण है । युद्ध से दोनों देशों तथा आसपास के देशों की समस्यायें और भी अधिक जटिल होंगी और इस सम्पूर्ण क्षेत्र में अस्थिरता बढे़गी ।


1990 के सोबियत संघ के पतन के बाद अमेरिका तथा उसके सहयोगी राष्ट्रों द्वारा सुनियोजित ढंग से रूस आदि देशों को निरस्तीकरण में शामिल कर इस मौके का लाभ नाटो के बिस्तार के लिए किया तथा अत्याधुनिक मिसाइलों को पूर्वी यूरोप रूस की तरफ तैनात कर इसकी यानि रूस की घेराबंदी की गई । घेराबन्दी को शुरू से ही रूस अपनी सुरक्षा एवं सम्पभ्रुता के लिए खतरा मानता रहा है ।

अमेरिका यूक्रेन सहित अन्य छोटे राष्ट्रों को रूस का डर दिखाकर उन्हें हथियार देकर कमाई करता रहा व रूस के खिलाफ इस्तेमाल करता रहा है ।यूक्रेन जो वहाँ के शासकों की अपरिपक्वता के चलते ,अब युद्धग्रस्त है, तथा वह अमेरिका से सहयोग की उम्मीद कर रहा है, किन्तु अमेरिका ने अपनी चिरपरिचित नीतियों के तहत उसे सहयोग देने से साफ साफ मना कर दिया है कि यह तुम्हारी समस है,खुद झेलो ,ऐसा आरोप यूक्रेन के राष्ट्रपति ने अमेरिका पर लगाये हैं । यूक्रेन अपनी अदूरदर्शिता के कारण दोनों तरफ से घिरा हुआ है ,अमेरिका पर पहले भी इसी प्रकार के आरोप लगते रहे हैं कि वह दोहरी नीतियों का आदि है ।


इससे पहले अफगानिस्तान सहित अनेक देशों में अमेरिका द्वारा यही खेल खेला गया वहाँ अमेरिकी बजट बड़ा हिस्सा हथियारों की खरीदारी के रूप में अमेरिकी कम्पनियों को जाता रहा है ।


इसलिए दोनों देश को आपसी समझदारी दिखाकर तत्काल युद्ध रोकना चाहिए ,शान्ति एव सदभाव के लिए अपने स्तर से प्रयास तेज करने चाहिए । दोनों देशों के हित इसी में सुरक्षित हैं ।
दूसरी तरफ शान्ति होने तक ,भारत की मोदी सरकार यूक्रेन में फंसे लोगों की सरकारी खर्च पर सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करनी, यही वक्त का तकाजा है ।
इस मौके पर यह भी कहना जरूरी है कि यदि हमारे देश में मेडिकल शिक्षा की व्यवस्था लचर एवं महंगी नहीं होती ,तो हमारे 20हजार छात्र इस तरह यूक्रेन व अन्य देशों में न फंसे होते । मोदी सरकार की नीतियां भी कहीं न कहीं अमेरिकीपरस्त जिसका खामियाजा आप हम सभी को किसी न किसी रूप भुगतना पड़ रहा है ।अमेरिकीपरस्त ताकतों ने रुस ,यूक्रेन युद्ध के बहाने कारपोरेट मीडिया पर पानी की तरह पैसा बहाना शुरू कर दिया ताकि वे अपने नापाक इरादों को हासिल करने लिए सच्चाई पर पर्दा डाल सकें ,किन्तु इस सबके बावजूद रूस ,यूक्रेन की जनता का बुनियादी चरित्र फासीवाद तथा साम्राज्यवाद विरोधी है । जो अमेरिकी षढयन्त्रों को अच्छी तह समझते हैं ,देर सबेर अमेरिकीपरस्त तत्वों को दरकिनार करेगी । आज युद्ध की विभीषिका के खिलाफ ,युद्ध नहीं ,शान्ति चाहिए के नारे के पीछे इन देशों में बड़े बड़े प्रदर्शनों के पीछे आमजन लामबंद हो रहे हैं ।
इन तीन बिन्दुओं पर अवश्य गौर किया जाना चाहिए :-
(1)रूस व यूक्रेन के मध्य युद्ध दुर्भाग्यपूर्ण तथा युध्द तत्काल रोका जाना चाहिए ,दोनों देशों में सदभावना पूर्ण बातचीत होनी चाहिए ।यूक्रेन के सत्ताधारियों को क्षेत्रीय सन्तुलन एवं नीजि हितों को त्यागकर अमेरिकी घुसपैठ को तवज्जो नहीं देनी चाहिए ।
(२)1990 के बाद.सोबियत संघ ने अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो से अपने देश की सुरक्षा का आश्वासन मांगा था ,बावजूद इसने रूस से लगे पूर्वी यूरोप क्षेत्र में अमेरिका व नाटो द्वारा घातक मिसाइलों की तैनाती तथा यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की कोशिश ने क्षेत्र में तनाव पैदा करने का कार्य किया ।
(3) इसी प्रकार रूस को घेरने की नीयत से क्षेत्र में अस्र्थिरता पैदा करने वाले तत्वों को अमेरिका द्वारा हथियारबन्द करना तथा सैन्य शक्ति बढा़कर रूस को धमकाना आदि अनेक कूटनीतिक मुद्दे शामिल है ।

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