उत्तराखंड के जंगल तबाह हो रहे, मगर वन विभाग कह रहा सब चंगा सी… कोई नुकसान नहीं हो रहा !
-uttarakhandhimalaya.in-
देहरादून। वनाग्नि से उत्तराखंड के जंगलों में तबाही मची हुयी है मगर उस तबाही से बेखबर बने वन विभाग अपनी लापरवाही और कमजोरियों को छिपाने के लिए अजीब और बेतुके तर्क दिए जा रहा है. उत्तराखंड में अब तक आग की 910 घटनाओं में 1144 हेक्टेयर से अधिक जंगल जल गया लेकिन वन विभाग के अधिकारी और उनकी ओर से जारी रिपोर्ट कह रही है कि वनाग्नि से पेड़ एक भी नहीं जला। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि आग से अब तक किसी वन्य जीव को भी नुकसान नहीं हुआ। प्रदेश के जंगलों में लगी आग थम नहीं रही है। आग पर काबू पाने के लिए एसडीआरएफ के साथ ही एनडीआरएफ की भी मदद ली जा रही है। सरकार ने वन मुख्यालय के अधिकारियों को मोर्चे में उतारने के बाद अब जिलाधिकारियों को भी आग की निगरानी के निर्देश दिए हैं।
सरकारी विवरणों को अगर देखें तो वनाग्नि के नुकसान में केवल पेड़ों की गिनती करने के साथ ही आर्थिक नुकसान का आंकलन कर दिया जाता है। जबकि वन पेड़ पौधों और जीवों की प्रजातियों की एक विशाल श्रृंखला के प्राकृतिक घर हैं, जिनमें से कई प्रजातियां अन्यत्र कहीं नहीं पाई जाती हैं। जंगल में बड़े पेडों के अलावा छोटी नाजुक वनस्पतियां, लाइकेन्स, के साथ ही जीवों की हिरन, लोमड़ी, गुलदार जैसे स्तनपायी जीव प्रायः भाग कर जान बचाने में कामयाब हो सकते हैं। लेकिन पक्षी, तितलियां, मक्खियां, मकड़े, कीड़े-मकोड़े, मेंढक, दीमक, रेंगने वाले सांप, छिपकलियां और केंचुए जैसे अनगिनत जीव प्रजातियां खाक हो जाती हैं। आप कह सकते हैं कि वनाग्नि से भरा पूरा वन्यजीव संसार खाक हो जाता है। जबकि चींटी और दीमक से लेकर बड़े स्तनपाई जीवों तक हर एक को प्रकृति ने कुछ न कुछ दायित्व सौपा हुआ है। उदाहरण के लिये अगर वनों में दीमक न होंगे तो मिट्टी में उपजे बड़े पेड़ फिर मिट्टी में कैसे मिल पायेंगे।
वन विभाग की लीपापोती वाली रिपोर्ट के अनुसार प्रदेशभर में 1,438 फायर क्रू स्टेशन बनाए गए हैं और 3,983 फायर वॉचरों को तैनात किया गया है। इसके बावजूद जंगल जगह-जगह धधक रहे हैं। अब तक गढ़वाल में 482 और कुमाऊं में 355 वनाग्नि की घटनाएं हो चुकी हैं, जबकि वन्य जीव क्षेत्र में 73 घटनाएं हुई हैं। वनाग्नि की घटनाओं को लेकर वन विभाग की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया कि 1,144 हेक्टेयर जंगल जलने के बाद भी कोई वन्य जीव झुलसा नहीं, न ही किसी की आग की चपेट में आकर मौत हुई है।
रिपोर्ट में पेड़ जलने की भी कोई सूचना नहीं है। अपर प्रमुख वन संरक्षक निशांत वर्मा के मुताबिक, जंगल की आग की वजह से प्रदेश में कहीं से पेड़ जलने की सूचना नहीं है। आग से गिरी सूखी पत्तियां और घास जली है। जंगल की आग से पेड़ों को कोई नुकसान नहीं हुआ। वनाग्नि की गढ़वाल में आरक्षित वन क्षेत्र में 183 और कुमाऊं आरक्षित वन क्षेत्र में 343 घटनाएं हुई हैं, जबकि गढ़वाल में सिविल एवं वन पंचायत क्षेत्र में 172 और कुमाउं में 139 घटनाएं हो चुकी हैं। इससे गढ़वाल में 398 और कुमाऊं में 221 हेक्टेयर वन क्षेत्र में वन संपदा को नुकसान हुआ है।