चिन हुआ की याद में….(उपन्यास का एक छोटा अंश)

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डा0 सुशील उपाध्याय
“हड्डियों के भीतर तक घुस जाने वाली ठंड में वो रात भर आसमान से बातें करता रहा। लोग मानते हैं कि आसमान की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया था, लेकिन उसने साफ- साफ महसूस किया कि बात करने की सारी प्रक्रिया में उसकी आंखें पहले से ज्यादा छोटी और नाक कहीं अधिक लंबी हो गई थी।
आंखे इतनी छोटी थी कि इससे पहले शायद ही किसी ने इतनी गैर मामूली इंसानी आंखों की कल्पना की होगी। नाक को आसानी से होठों से छुआया जा सकता था। जीभ के डर को भी महसूस किया जा सकता था क्योंकि वो अलीजिह्वा से चिपकी महसूस हो रही थी। उसे पूरा यकीन था कि ये तमाम बदलाव आसमानी वजहों से ही था इसलिए इसमें डर की कोई बात नहीं थी।
फिर भी डर था और डर की असली वजह यह थी कि उसकी बातों के दौरान जो मैनिक्विन पूरी रात उसके साथ खड़ी हुई थी, वो दिन निकलने से पहले उस दुकान के बाहर जाकर खड़ी हो गई, जहां उसे सबसे नए फैशन के कपड़े पहन कर ग्राहकों को आकर्षित करना था। लोगों की भीड़ तरह-तरह की बातें कर रही थी और इस दौरान मैनिक्विन के सिर को दूसरे पुतले के सिर के साथ बदला जा रहा था”
सुहास ने डायरी के पुराने पन्नों में जिंदगी की वजह तलाश करने की कोशिश की और उसे एक बार फिर नाउम्मीदी हाथ लगी। लेकिन लड़ते रहना उसकी आदत थी और यह आदत एक वक्त के बाद लत में बदल गई। वह या तो खुद से लड़ता रहता या फिर लड़ने की वाजिब और गैरवाजिब वजहों को तलाश करता रहता है। उस रात जिन लोगों ने सुहास को पहले आसमान से और फिर मैनिक्विन से बातें करते देखा था, उन्हें लगा कि यह वही पागल है जो दिन में व्यस्त चौराहे पर ट्रैफिक को रोकने या चलाने की कोशिश करता रहता है। हालांकि उसके रोकने पर न तो कोई रुकता है और ना हाथ हिलाने पर कोई चलता है, बल्कि इस काम को बरसों से लाल – हरी बत्तियां ही करती आ रही हैं।
रात भले ही ढल गई थी लेकिन कहानी अभी खत्म नहीं हुई। रात के पहले पहर से एक मरियल कुत्ता सुहास के साथ सटकर बैठा हुआ था। दुनियावी तौर पर देखें तो ठंड इसकी वजह रही होगी, लेकिन लोग ऐसा भी मानते हैं कि ये कुत्ता आसमानी बातों का अकेला श्रोता, दर्शक और अनुभूति का साक्षी था। वहां कोई भी ऐसा नहीं था जो इन तमाम गैर मामूली चीजों को दस्तावेज के रूप में दर्ज कर सके और बाद में इन्हें किसी अघटित इतिहास की तरह लोगों के सामने रखा जा सके।
पहले सुहास ने और फिर उसके साथ चिपके कुत्ते ने इस बात को बहुत गौर से देखा कि मैनिक्विन का जो सिर दूसरे पतले पर लगाया गया था, वह जोर-जोर से हिल रहा था। जैसे यह बता रहा हो कि रात में घटित हुई बातों का किसी से जिक्र मत करना क्योंकि उनमें से किसी भी बात को स्थापित तार्किक पद्धति के जरिए न कभी समझा जा सकेगा और ना कभी स्वीकार किया जा सकेगा। मैनिक्विन की अदृश्य मुस्कुराहट को वहां कोई नहीं देख पाया था, लेकिन सुहास ने महसूस किया है कि अचानक बिजली कौंध गई थी और मन के भीतर मौजूद वीणा के ढीले तार संगीत की स्वर लहरियां बिखेरने के लिए तैयार हो गए थे। सूरज की पहली किरण ने ठंडी, गहरी, काली रात को फिर चुनौती दी थी। मरियल कुत्ता अंगड़ाई लेकर उठ खड़ा हुआ था और सुहास ने उजाले के सामने दिन सपने बुनने शुरू कर दिए। बीती रात में लंबी होकर लटक गई नाक अपने पुराने आकार में आ गई थी और जीभ भी पुराने दिनों की तरह चपल हो गई थी।
जारी…

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