भारतीय मत्स्यपालन: समृद्धि की ओर कदम
लेखक – डॉ. एल. मुरुगन
केन्द्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेयरी तथा
सूचना और प्रसारण राज्यमंत्री
न सिर्फ विकास के चक्र में, बल्कि सभी प्रमुख प्राचीन सभ्यताओं की कहानियों में भी ‘मछली’ का एक प्रमुख स्थान रहा है। हमारे पुराणों में भगवान विष्णु के पहले अवतार, मत्स्यावतार, का वर्णन है। प्राचीन तमिलनाडु के खूबसूरत संगम साहित्य में मछुआरों के जीवन और घुमावदार नावों (अकानानुरु) का विशद वर्णन है। सिंधु घाटी की खुदाई हमें प्राचीन भारत में मत्स्यपालन की व्यापक गतिविधियों की सराहना करने के लिए प्रेरित करती है। अपनी विस्तृत तटरेखाओं और विशाल नदियों से समृद्ध भारत मत्स्य संसाधनों के मामलों में संपन्न है और हमारी संस्कृति में शुरू से ही मछली एवं मछुआरों का एक केंद्रीय स्थान रहा है।
आजादी के बाद, व्यापक रूप से राज्य का विषय होने के कारण भारतीय मत्स्यपालन संबंधित राज्यों की पहल, प्राथमिकताओं और संसाधनों के आधार पर अलग-अलग गति व दिशाओं में विकसित हुआ। केन्द्र की ओर से कम भागीदारी या निवेश (विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार आजादी के बाद से 2014 तक मत्स्यपालन के क्षेत्र के लिए केंद्र सरकार की ओर से कुल 3,682 करोड़ रुपये जारी किए जाने का संकेत मिलता है) की वजह से भारतीय मत्स्यपालन बेहद उपेक्षित रहा। बीमा, सुरक्षा किट, ऋण सुविधा, मछली पकड़ने के बाद एवं विपणन संबंधी सहायता के मामले में बहुत कम समर्थन मिलने के बावजूद, बहादुर भारतीय मछुआरों ने जर्जर नावों पर सवार होकर समुद्र में अपना उद्यम जारी रखा। करोड़ों भारतीयों के भोजन, पोषण और आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना जाने वाला यह क्षेत्र आजादी के 67 साल बाद तक खुले समुद्र में बिना पतवार वाले एक जहाज की तरह भटकता रहा।
समस्याएं असंख्य और चुनौतियां अनगिनत थीं। भाजपा को इस बात का श्रेय जाता है कि वह इन समस्याओं के प्रति सजग थी और उसने 2014 के अपने चुनावी घोषणापत्र में इन समस्याओं को हल करने के अपने इरादे की घोषणा की। 2014 में, भारत की जनता ने तत्कालीन सरकार के भ्रष्टाचार, नीतिगत पक्षाघात से तंग आकर एक निर्णय लिया और केन्द्र में नरेन्द्र मोदी, एक ऐसा नेता जो इस क्षेत्र के दर्द और राष्ट्र की नब्ज को बेहतर तरीके से समझ सकता था, के गतिशील नेतृत्व में एक निर्णायक सरकार चुनी।
मोदीजी ने जो सबसे पहला और महत्वपूर्ण काम किया, वह यह था कि उन्होंने केंद्र का ध्यान फिर से मत्स्यपालन के क्षेत्र में लगाया। पिछले आठ वर्षों में कई अन्य पहल के अलावा, नीली क्रांति योजना, मत्स्य एवं जलीय कृषि विकास कोष और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के माध्यम से 32,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश हुआ है।
इन कदमों ने ‘रिफॉर्म, परफॉर्म एंड ट्रांसफॉर्म’ के मंत्र का पालन करते हुए इस क्षेत्र में मौजूद बाधाओं को हटाकर उसे बंधन से मुक्त किया जिससे भारत के मछली उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि सुनिश्चित हुई। मछली का उत्पादन 2014-15 में 102.6 लाख टन से बढ़कर 2020-21 में 147 लाख टन हो गया। वित्तीय वर्ष 2000-2001 से लेकर वित्तीय वर्ष 2020-21 तक की 20 वर्षों की अवधि में उत्पादित लगभग 90 लाख टन अतिरिक्त मछली में से 45 लाख टन का समावेश सिर्फ पिछले 5-6 वर्षों में ही हुआ। मोदी सरकार के पहले पांच वर्षों में मत्स्यपालन क्षेत्र औसतन 10 प्रतिशत की वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ा, जबकि वित्त वर्ष 2009-10 से लेकर 2013-14 तक की अवधि में यह वार्षिक वृद्धि दर 5.27 प्रतिशत थी।
अपने 2019 के चुनावी वादों को पूरा करते हुए, प्रधानमंत्री मोदी ने मत्स्यपालन के क्षेत्र के अधिक केन्द्रित एवं समग्र विकास के उद्देश्य से मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी के लिए एक अलग मंत्रालय बनाया और 2020 में ‘वोकल फॉर लोकल’ को प्रोत्साहन देते हुए आत्मनिर्भर भारत के एक हिस्से के रूप में भारतीय मत्स्यपालन के क्षेत्र में 20,050 करोड़ रुपये के सबसे अधिक निवेश के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) की शुरुआत की। पीएमएमएसवाई भारतीय मत्स्य पालन को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की दिशा में मुख्य प्रेरक शक्ति साबित हो रही है। इस योजना के तहत 2024-25 तक मत्स्य उत्पादों के उत्पादन, उनकी उत्पादकता एवं निर्यात में तेजी से वृद्धि करने की परिकल्पना की गई है। इस योजना में मछली पकड़ने के बाद की स्थिति में होने वाले नुकसान को काफी कम करने और भारत में मछली की खपत बढ़ाने की भी परिकल्पना की गई है।
पिछले आठ वर्ष भारतीय मत्स्यपालन के क्षेत्र से जुड़े मुख्य बुनियादी ढांचे के विकास और आधुनिकीकरण के गवाह रहे हैं। इस अवधि में विशेष रूप से मछली पकड़ने से जुड़े नए बंदरगाहों/लैंडिंग केंद्रों के निर्माण, मछुआरों के मछली पकड़ने के पारंपरिक शिल्प का आधुनिकीकरण एवं मोटरीकरण, गहरे समुद्र में जाने वाले जहाजों, मछली पकड़ने के बाद की सुविधाओं का प्रावधान, कोल्ड चेन, साफ-सुथरे एवं स्वच्छ मछली बाजार, बर्फ के बक्से वाले दो पहिया वाहन और कई अन्य सुविधाओं का समावेश हुआ है। मछुआरों को बीमा कवर, वित्तीय सहायता और किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी प्रदान की गई है। मछली पालन से जुड़े किसान उत्पादक संगठन सहकारिता की भावना को प्रोत्साहित कर रहे हैं और मछुआरे समुदाय की सौदेबाजी की शक्ति को बढ़ा रहे हैं।
‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ पर काफी तत्परता से अमल किया जा रहा है। डिजिटल इंडिया ने स्वच्छता आयात परमिट (एसआईपी) प्राप्त करने में लगने वाले समय को 45 दिनों से घटाकर केवल 48 घंटे कर दिया है। स्वीकृत स्रोतों से एसपीएफ़ श्रिम्प ब्रूडस्टॉक के आयात के लिए एसआईपी की जरूरत को समाप्त कर दिया गया है, जिससे झींगा पालन से जुड़े सैकड़ों हैचरी को सहायता मिली है। सरकार ने झींगा के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उनके जलीय कृषि के लिए आवश्यक कई इनपुट पर आयात शुल्क भी कम कर दिया है।
हमारे मछुआरे, हमारा गौरव हैं। मोदी सरकार ‘सेवा, सुशासन और गरीब कल्याण’ के आदर्श वाक्य के साथ मछुआरा समुदाय के पुरुषों एवं महिलाओं के कल्याण और सशक्तिकरण के लिए लगातार काम कर रही है। मत्स्यपालन के क्षेत्र का विविधीकरण किया जा रहा है। अब तमिलनाडु की महिलाएं जहां समुद्री शैवाल की खेती के लिए काम कर रही हैं, वहीं लक्षद्वीप की महिलाएं कृत्रिम मत्स्यपालन को विकसित कर रही हैं। हमारे असमिया मछुआरे ब्रह्मपुत्र में रिवर रैन्चिंग को विकसित कर रहे हैं, वहीं आंध्र के उद्यमी जलीय कृषि में बेहतर परिणाम दिखाते हुए प्रति बूंद अधिक उत्पादन प्राप्त कर रहे हैं। कश्मीर घाटी की युवा महिला उद्यमी ठंडे पानी की ट्राउट इकाइयां स्थापित कर रही हैं। हरियाणा की लवणीय भूमि का मत्स्यपालन के लिए सार्थक उपयोग किया जा रहा है और इस प्रकार बंजर भूमि को संपदा भूमि में परिवर्तित किया जा रहा है।
मत्स्यपालन के क्षेत्र से जुड़े नए स्टार्ट-अप प्रतिभा, प्रौद्योगिकी, वित्त और उद्यमशीलता की भावना को आकर्षित करते हुए एक मूक सामाजिक क्रांति की शुरुआत भी कर रहे हैं। जलीय कृषि के रूप में भारतीय मत्स्यपालन का एक गौरवशाली उप-अध्याय वर्तमान में लिखा जा रहा है, जो भारत को झींगा के उत्पादन और निर्यात के मामले में विश्व में अग्रणी बना रहा है। भारत जलीय कृषि के मामले में दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, तीसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक और मछली एवं मत्स्य उत्पादों का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। कोविड-19 की वैश्विक महामारी के बावजूद, ब्रांड इंडिया को ‘स्थानीय से वैश्विक’ बनाते हुए मछली का निर्यात 2013 में 30,000 करोड़ रुपये से 30 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 2021-22 में 59,000 करोड़ रुपये का हो गया है।
बाधाओं को दूर करके, प्रौद्योगिकी का समावेश करके, वास्तविक लाभार्थियों का कल्याण करके, उद्यमशीलता की भावना को प्रोत्साहित करके और महिलाओं का सशक्तिकरण करके भारतीय मत्स्यपालन पिछले सत्तर वर्षों की जकड़न से मुक्त हो गया है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ की भावना के साथ, मोदी सरकार के आठ वर्षों के कार्यकाल ने भारतीय मत्स्यपालन की एक मजबूत नींव रखी है। यहां से, अब यह क्षेत्र सिर्फ नई उंचाइयों को छूते हुए अधिक आय अर्जित कर सकता है और हमारे मछुआरा समुदाय के भाइयों एवं बहनों के चेहरे पर मुस्कान ला सकता है।