शरीर के घावों का कम से कम लगत पर तेजी से इलाज की नवीनतम विधि
The first indigenously developed tissue engineering scaffold from mammalian organs, an animal-derived Class D Biomedical Device that can rapidly heal skin wounds at low cost with minimum scarring, has received approval from the Indian Drugs Controller. The concept of using animal-derived materials as advanced wound care products is not new. However, indigenous technology was so far not available for fabricating quality products that satisfy the requirements of the Drugs Controller General. Therefore, such products were imported making them expensive.
–-Uttarakhand himalaya.in —
स्तनपायी अंगों से स्वदेशी रूप से विकसित प्रथम टिश्यू इंजीनियरिंग स्कैफोल्ड, पशुओं से निकाली गई क्लास डी बायोमेडिकल डिवाइस है, जो त्वचा के घावों को न्यूनतम निशान के साथ कम लागत पर तेजी से उपचार कर सकती है, को भारतीय औषधि नियंत्रक से मंजूरी प्राप्त हुई है।
इसके साथ, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का एक स्वायत्त संस्थान, श्री चित्रा तिरुनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी (एसीटीआईएमएसटी) श्रेणी-डी चिकित्सा उपकरणों को विकसित करने वाला देश का पहला संस्थान बन गया है, जो भारत सरकार के केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन की सभी वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करता है।
उन्नत घाव देखभाल उत्पादों के रूप में पशुओं से निकाली गई सामग्रियों का उपयोग करने की अवधारणा नई नहीं है। तथापि, औषधि महानियंत्रक की आवश्यकताओं को पूरा करने वाले गुणवत्ता उत्पादों के निर्माण के लिए अभी तक स्वदेशी तकनीक उपलब्ध नहीं थी। इसलिए, ऐसे उत्पादों का आयात किया जाता था, जिससे वे महंगे हो जाते थे।
संस्थान के बायोमेडिकल टेक्नोलॉजी विंग में प्रायोगिक पैथोलॉजी प्रभाग के शोधकर्ताओं ने स्तनधारी पशुओं के अंगों से टिश्यू इंजीनियरिंग स्कैफोल्ड विकसित करने के लिए एक नवोन्मेषी प्रौद्योगिकी विकसित की है। प्रो. टी.वी. अनिल कुमार के नेतृत्व में विगत 15 वर्षों में प्रभाग में की गई जांच में पिग गॉल ब्लैडर को डीसेल्यूलराइज किया गया और एक्सट्रासेल्यूलर मैट्रिक्स हासिल किया गया। चोलेडर्म के रूप में पहचाने जाने वाले स्कैफोल्ड के मेम्ब्रेन रूपों ने चूहे, खरगोश या कुत्तों में जले और मधुमेह के घावों सहित विभिन्न प्रकार के त्वचा के घावों का उपचार किया, जो वर्तमान में बाजार में उपलब्ध इसी तरह के उत्पादों की तुलना में कम से कम निशान के रूप में उपलब्ध हैं, जैसा कि टाइप I और टाइप III कोलेजन पर ध्यान केंद्रित करते हुए कई गहन प्रयोगशाला जांचों द्वारा सिद्ध किया गया है। टीम ने उपचार प्रतिक्रिया के संभावित तंत्र को उजागर किया और प्रदर्शित किया कि ग्राफ्ट-सहायता प्राप्त उपचार को एंटी-इनफ्लेमेटरी (प्रो-रीजेनरेटिव) मैक्रोफेज के एम-2 टाइप के द्वारा विनियमित किया गया था। वास्तव में, स्कैफोल्ड ने सलक्यूटेनियस, कंकाल की मांसपेशियों और कार्डियक टिश्यू में स्कैरिंग के निशान वाली प्रतिक्रियाओं को संशोधित या कम कर दिया।
2017 में, प्रौद्योगिकी को एलिकॉर्न मेडिकल को स्थानांतरित कर दिया गया था, जो ‘टाइम्ड नामक संस्थान की प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेशन सुविधा केंद्र में एक स्टार्टअप बायोफार्मास्यूटिकल फर्म है।
संस्थान के बायोमेडिकल टेक्नोलॉजी विंग के प्रमुख डॉ. हरिकृष्ण वर्मा ने कहा, “भारत के 2017-चिकित्सा उपकरण नियमों के अनुसार श्रेणी-डी चिकित्सा उपकरणों के लिए अनुपालन आवश्यकताओं की सख्ती और हितधारकों के बीच आम धारणा कि पशुओं से निकाले गए वर्ग-डी चिकित्सा उपकरणों का विकास भारत में व्यावहारिक नहीं है, पर विचार करते हुए यह उपलब्धि संस्थान, विशेष रूप से अनुसंधान दल के साथ-साथ एलिकॉर्न मेडिकल के लिए एक मील का पत्थर है।”
तुलनात्मक चिकित्सा में प्रकाशन के लिए स्वीकार किए गए एक हालिया शोध पत्र में, टीम ने प्रदर्शित किया कि स्कैफोल्ड में प्रयोगात्मक म्योकार्डियल इंफार्क्शन पीड़ित चूहों में फाइब्रोटिक स्कार्फिंग को कम करने की क्षमता है।
यह उम्मीद की जाती है कि भारतीय बाजार में कोलेडर्म की शुरुआत के साथ, उपचार की लागत 10,000/- रुपये से घटकर 2,000/- रुपये हो सकती है, जिससे यह आम आदमी के लिए अधिक किफायती हो जाएगा। इसके अतिरिक्त, गॉलब्लैडर से एक्स्ट्रा सेलुलर मैट्रिक्स रिकवर करने के लिए प्रौद्योगिकी दूसरों के पास उपलब्ध नहीं है और यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए उचित अवसर प्रदान करती है। इसके अलावा, उपरोक्त निष्कर्षों ने सूअरों के गॉलब्लैडर, जो आमतौर पर बिना किसी मौद्रिक मूल्य के बूचड़खाने का अवशिष्ट होता है, को बायोफार्मास्यूटिकल उद्योग के लिए एक अत्यधिक मूल्य वर्धित कच्चा माल बना दिया, जिससे सुअर पालकों के लिए आय सृजन करने का एक अतिरिक्त अवसर सृजित हुआ।
यद्यपि, कार्डियक चोट के उपचार के लिए स्कैफोल्ड के मैम्ब्रेन रूपों का अनुप्रयोग जटिल था। इसलिए टीम स्कैफोल्ड का इंजेक्टेबल जेल फॉर्मूलेशन विकसित कर रही है जो स्कैफोल्ड के ट्रांसवेनस ऑन-साइट डिलीवरी और पॉलीमेरिक चिकित्सा उपकरणों के सतह संशोधन में सक्षम बनाती है। प्रो. टी. वी. अनिल कुमार ने कहा कि इस दावे की पुष्टि करने के लिए पशुओं की कई प्रजातियों में आगे और जांच करना आवश्यक है। यदि यह सही है, तो इन पर्यवेक्षणों से म्योकार्डिअल इंफार्क्शन से पीड़ित रोगियों के प्रबंधन के समकालीन तौर-तरीकों में क्रांतिकारी परिवर्तन आने की संभावना है।