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करारी हार के बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस में घमासान: पार्टी प्रभारी देवेन्द्र यादव निशाने पर

-जयसिंह रावत
विधानसभा चुनावों में करारी हार के बाद उत्तराखण्ड कांग्रेस की रार खुल कर सामने आने लगी है। इस हार के लिये एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराने के साथ ही आरोपों के छींटे पार्टी प्रभारी देवेन्द्र यादव के दामन तक जा पहुंचे हैं। कांग्रेस के एक बड़े वर्ग का देवेन्द्र यादव पर सीधा आरोप है कि विभिन्न गुटों में समन्वय स्थापित करने के बजाय यादव एक गुट विशेष के संरक्षक बन गये थे और उनका लक्ष्य पार्टी को जिताने के बजाय हरीश रावत को मुख्यमंत्री बनने से रोकना था।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और प्रतिपक्ष के नेता प्रीतम सिंह की हरीश रावत के लालकुंआं से हारने को लेकर की गयी परोक्ष टिप्पणी पर हरीश रावत के पलटवार के बाद अब हरीश रावत समर्थक प्रीतम गुट के साथ ही पार्टी प्रभारी देवेन्द्र यादव पर हमलावर हो गये हैं। इन नेताओं में पूर्व विधान सभाध्यक्ष गोविन्द्र सिंह कुंजवाल भी शामिल हो गये हैं। गोविंद कुंजवाल ने नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह के साथ ही कांग्रेस प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव पर भी हमला बोला। उनका कहना है कि नया अध्यक्ष बनने के बाद प्रदेश से लेकर हर इकाई भंग हो जाती हैं। नया अध्यक्ष बनने के बाद इसकी स्वीकृति लाने का काम प्रदेश प्रभारी का होता है, लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए। यही वजह रही कि पुरानी टीम होने से प्रदेश अध्यक्ष अकेले पड़ गए। उन्होंने कहा कि संगठन की मजबूती के लिए इस बात की जरूरत थी कि नया प्रदेश अध्यक्ष बनते ही प्रदेश अध्यक्ष अपनी टीम खड़ी करते लेकिन देवेन्द्र यादव ने प्रीतम गुट को मजबूत करने के लिये गोदियाल की अपनी टीम नहीं बनने दी।
चुनाव में कांग्रेस पार्टी को सबसे अधिक नुकसान मुस्लिम यूनिवर्सिटी वाले मुद्दे ने पहुंचाया था। भाजपा के सोशियल मीडिया ने प्रदेश के एक -एक मतदाता तक यह बात पहुंचाई कि हरीश रावत अगर मुख्यमंत्री बने तो वह मुस्लिम युनिवर्सिटी बनायेंगे। इसी के साथ ही जुम्मे की नमाज के लिये अवकाश के मुद्दे ने भी कांग्रेस को भारी क्षति पहुंचाई और भाजपा ने इन दोनों मुद्दों को हरीश रावत के खिलाफ ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल किया। जबकि मुस्लिम यूनिवर्सिटी का मुद्दा न तो कांग्रेस के घोषणापत्र में था और ना ही किसी बड़े नेता ने इसकी घोषणा की थी। इस अफवाहबाजी के लिये निर्वाचन आयोग ने उत्तराखण्ड भाजपा के सोशियल मीडिया सेल को फटकार भी लगायी थी।
कांग्रेस के अन्दर जिस व्यक्ति अकील अहमद के बयान पर यह बबाल खड़ा हुआ था उसे संरक्षण देने का खुला आरोप प्रीतम गुट और देवेन्द्र यादव पर लग रहा है। वरिष्ठ कांग्रेसियों का कहना है कि अकील अहमद ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग वाला ज्ञापन हरीश रावत को नहीं बल्कि मोहन प्रकाश आदि बड़े नेताओं को दिया था, जिसे स्वीकार नहीं किया गया था। इसलिये हरीश रावत का इस मामले से कोई लेना देना ही नहीं था। जबकि भाजपा ने दाढ़ी वाले पोस्टर और प्रचार सामग्री हरीश रावत की बनायी थी। हरीश रावत समर्थकों का सीधा आरोप है कि अकील अहमद को प्रीतम सिंह ने ही प्रदेश मंत्री बनाया था और जब प्रीतम को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया गया था तो उन्होंने जाते-जाते अकील अहमद का कद बढ़ा कर उन्हें प्रदेश महासचिव बना दिया था। यही नहीं अकील ने जब चुनाव में निर्दलीय के तौर पर सहसपुर से नामांकन किया था तो प्रदेश प्रभारी देवेन्द्र यादव के कहने से ही उन्हें उपाध्यक्ष बना दिया गया था। जिस दिन गणेश गोदियाल की प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर कांग्रेस भवन में एण्ट्री हुयी थी तो अकील अहमद प्रीतम गुट के जुलूस में ही कांग्रेस भवन पहुंचे थे।
कांग्रेसियों का आरोप है कि पार्टी को इतना बड़ा नुकसान पहुंचाने पर भी अकील के खिलाफ कार्यवाही नहीं की गयी जबकि प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल इस्तीफा दे चुके हैं और अब पार्टी प्रभारी यादव को ही अकील के बारे में निर्णय लेना है। अकील अहमद सहसपुर विधानसभा क्षेत्र के एक व्यवसायी हैं और प्रीतम गुट में ही माने जाते हैं।
गौर तलब है कि देवेन्द्र यादव और हरीश रावत गुट की शुरू से ही नहीं बनीं। यादव के हरीश विरोधी व्यवहार के कारण ही चुनाव से पहले हरीश रावत ने सन्यास लेने की घोषणा तक कर डाली थी। बाद में राहुल गांधी के हस्तक्षेप पर हरीश को मनाया गया था। कभी हरीश रावत के दायें हाथ रहे उनके राजनीतिक शिष्य रणजीत रावत भी प्रीतम गुट में माने जाते हैं। रणजीत पर हरीश रावत को हराने के लिये लालकुंआं में सध्या डालाकोटी की मदद करने का आरोप भी है। रणजीत रावत पिछले कांग्रेस शासन में हरीश रावत के बाद शक्ति/सत्ता के केन्द्र माने जाते थे, जबकि रणजीत उस समय विधायक भी नहीं थे। मगर छाया मुख्यमंत्री के तौर पर बड़े बड़े फैसलों के लिये जिम्मेदार माने जाते रहे हैं। हरीश रावत से अलगाव के बाद रणजीत निरन्तर हरीश रावत विरोधी बयान देते रहे हैं।

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