मैकालेवादी शिक्षा प्रणाली से मुक्ति आवश्यक है, सदियों की गुलामी में शिक्षा और शिक्षण पर गंभीर भारतीय विमर्श को भुला दिया गया: उपराष्ट्रपति
हरिद्वार, 20 मार्च.
*उपराष्ट्रपति श्री एम वेंकैया नायडू ने आज कहा कि शिक्षा, प्रशासन और न्यायपालिका में मातृभाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना जरूरी है। उन्होंने मैकालेवादी शिक्षा प्रणाली से आज़ादी को आवश्यक बताया। सदियों की गुलामी ने भारतीय परंपरा में शिक्षा और शिक्षण के गंभीर विमर्श को भुला दिया है उन्होंने कहा कि शिक्षा के दिव्य प्रकाश में ही व्यक्ति खुद को खोज पाता है, समाज के प्रति स्वस्थ नजरिया विकसित कर पाता है और समाज के प्रति जिम्मेदार नागरिक बनता है। उन्होंने कहा कि सदियों की गुलामी से, महिलाओं सहित समाज का एक बड़ा वर्ग शिक्षा से वंचित रह गया। शिक्षा जो हर समुदाय का हक था वो एक वर्ग में सिमट कर रह गई। उन्होंने कहा कि अच्छी और सच्ची शिक्षा से समाज के सभी वर्गों को जोड़ना आवश्यक है तभी शिक्षा का लोकतंत्रीकरण संभव हो सकेगा।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज़ादी के अमृत काल में यह अपेक्षित है कि हम प्राचीन शिक्षा पद्धति को, समुदायों मैं निहित ज्ञान परंपरा को खोजें, उन पर शोध करें और उसे आधुनिक संदर्भों में प्रासंगिक बनाएं उन्होंने कहा कि बच्चे अपने पारिवारिक परिवेश, अपने परिवार के बुजुर्गों से संस्कारों की शिक्षा प्राप्त करें। अपने चतुर्दिक प्राकृतिक परिवेश से सीखें। श्री नायडू ने कहा कि एक बेहतर भविष्य के लिए प्रकृति और संस्कृति से शिक्षा लेना जरूरी है। उन्होंने अहवाहन किया कि हम अपने मूल संस्कारों से मार्गदर्शन लें। नई शिक्षा नीति का उद्देश्य शिक्षा का भारतीयकरण करना है। श्री नायडू ने कहा कि हमें भारतीय होने पर गर्व होना चाहिए। शिक्षा के भारतीयकरण पर उन्हीं लोगों को आपत्ति है जो गुलामी मानसिकता को बनाए रखना चाहते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने मां, मातृभूमि और मातृभाषा का सदैव सम्मान करने का आग्रह किया।* उपराष्ट्रपति गायत्री तीर्थ के स्वर्ण जयंती के अवसर पर हरिद्वार में साउथ एशिया इंस्टीट्यूट ऑफ पीस एंड रिकॉन्सिलिएशन के उद्घाटन के अवसर पर कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
शांति को विकास के लिए आवश्यक शर्त बताते हुए उपराष्ट्रपति ने इस संदर्भ में भगवान बुद्ध और सम्राट अशोक को स्मरण किया। उन्होंने कहा कि भारत सम्राट अशोक का देश है