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अनादि काल से चली आ रही है जागर प्रथा उत्तराखंड में

–रिपोर्ट संकलन- प्रभुपाल सिंह रावत,रिखणीखाल–

देवी देवताओं,ईष्ट पितृ देवताओं को संतुष्ट,प्रसन्न करने को ” जागर प्रथा गढ़वाल में आदिकाल से चलती आ रही है।

जनपद गढ़वाल के रिखणीखाल प्रखंड के दूरस्थ,सीमांत व आदिवासी क्षेत्र के गाँव” नावेतल्ली” में विगत रात्रि ग्रामीणों द्वारा एक भव्य जागर पूजा,आराधना का आयोजन किया गया।गांवों में ये प्रथा,प्रचलन कई सालों से अपने देवी देवताओं,पितृ देवताओं को संतुष्ट व प्रसन्न रखने ,पितृदोष दूर करने के लिए चलती आ रही है।जब किसी परिवार पर ईष्ट देवी देवताओं,पितृ देवताओं के संतुष्ट न होने पर या कष्टकारी जीवन,बीमारी आदि परेशानी होती है तो उन्हें प्रसन्न रखने व उनकी स्मृति में जागर का आयोजन किया जाता है।

इसमें आपको जागर लगाने वाले गुरु का परिचय कराते हैं,जो सफेद रंग की पगड़ी पहने हुए है,हुडकी बजाते हुए देवी देवताओं को आहूत कर स्मरण कर ,रहे हैं,वे वहीं के स्थानीय जागर सम्राट राजू पुत्र चीचू दास ग्राम द्वारी के हैं।इन्होंने ये विद्या बचपन से ही अपने पिता से ग्रहण कर ली थी।अब ये पूरे रिखणीखाल,नैनीडान्डा,जयहरीखाल के गाँवों में किसी परिचय के मोहताज नहीं है।उनके साथ कान्सी की थाली व चिमटा व ढोल लगाने वाले उन्हीं के साथी हैं।इन वाद्य यंत्रों को बजाकर देवी देवताओं को आहूत कर उनकी स्तुति प्रार्थना की जाती है।इनमें देवी देवताओं के रूप में दान सिंह पटवाल,थान सिंह रावत,मोदी जी के परम भक्त भूपाल सिंह रावत,केशर सिंह बीरू आदि हैं।

ये जागर आराधना कार्यक्रम रात्रि में दस बजे से प्रातः चार पांच बजे तक चलता है।बीच-बीच में मध्यांतर व जलपान भी होता रहता है।

जब किसी परिवार व व्यक्ति पर कष्ट,बीमारी या पितृदोष की सम्भावना रहती है तो जागर के माध्यम से देवी देवताओं,पितृ देवताओ को खुश व स्मरण करने का यही माध्यम है।इससे कष्ट व पितृदोष दूर हो जाते हैं या क्षीण पड़ जाते हैं।

अब पलायन होने पर यह प्रथा कुछ कम प्रचलित होने जा रही है।आधुनिकता के इस युग में नयी पीढ़ी भूलती बिसरती जा रही है,लेकिन ये गाँव अभी भी समय-समय पर इस जागर प्रथा को जीवित किये हुए हैं।

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