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सरकारी लूटखसोट की नीतियों की सजा भुगत रही है जोशीमठ की जनता

–अनंत आकाश –
हमारे हुकमरानों की अदूरदर्शिता एवं कमीशनखोरी के लालच में कंपनियों तथा कॉरपोरेटस को मुनाफों के लिए अन्धी व खुली लूट की छूट देने की नीतियों के कारण 7वीं शताब्दी का बसा शहर जोशीमठ आज अपने अस्तित्व के लिए जुझ रहा है । बिजली की भीमकाय परियोजनाओं, आलवेदर रोड़, रक्षा संस्थानों के बड़े-बड़े निर्माणों तथा  सरकारी तंत्र की सचेत निगरानी के अभाव मे अनाप-शनाप बनी बहुमंजिला इमारतों ने स्थिति को और भी अधिक बिकराल बना दिया है।

भूभौतिकी दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील पहाड़ों में पहाड़ों के अनुरूप टिकाऊ व सतत नियोजित विकास का रास्ता ना अपनाये जाने एवं भू वैज्ञानिकों की सलाह तथा मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट तक को सरकारों ने दरकिनार किया है। स्थिति यह है कि आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा बसाये गये शहर जोशीमठ की जनता के सामने भविष्य की अनिश्चितता बनी हुईं है। अब जो कुछ भी हासिल हो सकना है वो सत्ता के भरोसे रह कर नही होना है बल्कि उसके लिए अटूट व एकजुट जन संघर्ष ही एक मात्र रास्ता हो सकता है। वर्ना पछताने के लिए अब और कुछ शेष नहीं बचा है।

प्राचीन कहावत है कि अब पछतावे क्या होत है ? जब चिड़िया चुग गई खेत ! जब टनल बन रहे थे तब हम चुप्पी साधे थे,जब वैज्ञानिक खतरे की चेतावनी दे रहे थे तब हम नजरअंदाज कर रहे, जब जागरूक लोग बार-बार सरकार एवं स्थानीय प्रशासन का ध्यान आर्कषित कर रहे थे तब सरकार एवं प्रशासन अनदेखी करने में लगा हुआ था। अंग्रेजों ने जो अपने समय में नहीं किया वह आजाद हिन्दुस्तान की सरकारों ने कर दिया। लगभग पच्चीस हजार आबादी के शहर मे ठीक ढंग से जल-मल के निकास व इसके सीवरेज का प्रबंधन ना होने के कारण रिस रिस के चट्टानों में समाता रहा है, सरकारें जनता के हितों के प्रति कम, बड़े बड़े लोगों तथा कम्पनियों के हितों को ज्यादा देख रहे थे। यही कारण है कि मिश्रा कमेटी की सिफारिशों को दबाने का सिलसिला जारी रहा। अब मुसीबत सामने आ गई तो लगे घड़ियाली आंसू बहाने ।

जनपक्षीय पत्रकार श्री जयसिंह रावत जो कि पहाड़ की अच्छे जानकारी रखते हैं वे बताते हैं कि “कुछ समय से जोशीमठ में जमीन खिसकने की प्रक्रिया तेज हुई है,जोशीमठ धस रहा है, इसके कई मकान अब रहने लायक नहीं है,कई जगह जमीन में दरारों ने भयंकर रूप ले लिया है। जोशीमठ के ऊपर औली की तरफ से पांच नाले आते हैं जो कभी भी जोशीमठ में बिकराल भूक्षरण की स्थितियां पैदा करके सन् 2013 की केदारनाथ जैसी बिकराल आपदा का रूप धारण कर सकते हैं ”

“इसी प्रकार वरिष्ठ पत्रकार श्री रतनमणी डोभाल द्वारा पीठ के शंकराचार्य से पूछे गये सवाल में शंकराचार्य ने कहा है कि उन्होंने पहले भी इन समस्याओं से पूर्ववर्त्ती सरकारों एवं वर्तमान सरकार को अवगत कराया था किन्तु सरकारों ने कभी भी इसकी गम्भीरता को नहीं समझा”
वर्ष 2014 मे श्रीनगर, देहरादून की चुनावी रैलियों में जब मोदी जी आलवेदर रोड़ बनाने का सब्जबाग दिखा रहे थे, तब उस वक्त फहाड़ की जनता अभिभूत थी, उनकी पार्टी के पक्ष में जमकर वोट कर रही थी, वे घोषणाओं के साथ ही साथ हमारी जनता को हिन्दुत्व के स्वाभिमान की घुट्टी भी पिला रहे थे और हम फूल के कुप्पे-कुप्पे हो रहे थे। जबकि ऑल वेदर जैसी चीज हमारे भगवानों को भी सूट नहीं करती। शीतकाल में भगवान केदारनाथ उखीमठ में और भगवान बद्रीनाथ जोशीमठ में आकर विराजमान रहते हैं। इन स्थितियों को देखते और समझते हुए ऑल वेदर रोड के सवाल पर चिपको आंदोलन के अपने आप को वारिस बताने वाले सरकारी पर्यावरणविद भी खामोश रहे।आज 2023 को हम उनके सामने फफक-फफक के रो रहे हैं और अपनी सुरक्षा की भीख मांग रहे हैं, जो इन सब स्थितियों के लिए जिम्मेवार हैं। ऐसा क्यों होता है कि हम इन हुक्मरानों पर आंख मूंद कर विश्वास करके उनके शब्द जाल में फंस जाते हैं और थोड़ा नमक क्या दिखाया कि हम भेड़ों की तरह उनके पीछे लग जाते हैं। एक के बाद एक गलती करते रहे हैं और वे हर समय हमें छलते रहे हैं ।चुनाव के वक्त भी जनता को संघर्शशील व्यक्तित्व नजर नहीं आता ।

इसका बिश्लेशण भी हमारी जनता को ही करना है। जोशीमठ पहुंचे रक्षा राज्यमन्त्री अजय भट्ट पीड़ित जनता से कहते हैं कि भरोसा रखिये ‘छुअत शिला भई नारी सुहाई’ की तर्ज पर मोदी जी सब कुछ सम्भाल लेंगे। स्थिति यह है कि राज्य की एक चुनी हुई सरकार है। राज्य सरकार की अपनी स्वायत्तता और उसका अपना खासा तन्त्र है उसके ऊपर एक तरो ताजा युवा मुख्यमंत्री है, उस पर बीजेपी वालों का रत्ती भर भरोसा नहीं है। सिर्फ मोदी जी पर ही भरोसा है तथा उनके मैनेजमेंट पर भरोसा है कि कैसे हारी बाजी जीती जा सकती है। जैसे किस तरह गुजरात में बिलकिस बानो के गुनाहगारों को छोड़कर, चुनाव के दौरान एक बड़े पुल हादसे के बावजूद, अडानी के बन्दरगाह से नशीले पदार्थों के जखीरे तथा वहाँ थोपी जा रही जनविरोधी नीतियों के बावजूद भी चुनाव को मैनेज किया गया। अब भाजपाई जोशीमठ में भी बैठकर मैनेजमेंट पर जुट चुके हैं। सत्ता और सरकार की गलतियों पर पर्दा डालने के लिए संघ परिवार व उसके लगे-भगों द्वारा चर्चा चलाई जा रही है कि इस देव भूमि में पाप बहुत बढ़ गये हैं इन सब स्थितियों के लिए हम लोग ही दोषी है, आखिर सरकार क्या क्या जो करेगी, यह आपदा की घड़ी है राजनीति करने का समय नहीं है आदि अनेक तरह की बेसिर पैर की बातें कर जनता को ही कसूरवार ठहराया जा रहा है। इस तरह का सब कुछ चल रहा है। इस मैनेजमेंट के बावजूद करणप्रयाग,टिहरी, उत्तरकाशी में भू धसाव की सूचना लगातार मिल रही हैं तथा अनेक गांव धसने के कगार पर हैं। वहीं दूसरी तरफ रेलवे टनलों पर दरारें आने की खबरें हैं तो कही जलविधुत टनलों में जगह जगह पानी का रिसाव आम बात है ।

पहाड़ को पहाड़ वासी ही बेहतर ढंग से समझ सकते हैं।पीछे मुड़कर देखें तो जोशीमठ के पास ही गौरादेवी के नेतृत्व में रैणी गांव का चिपको आन्दोलन प्रकृति के निर्मम दोहन के खिलाफ एक जीती जागती मिसाल है। इस आन्दोलन में भी कम्युनिस्ट ही थे जो यहां के पारिस्थितिकी असंतुलन के खिलाफ व पर्यावरण की रक्षा एवं क्षेत्र की जनता के हक-हकूकों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ रहे थे। आज भी जनपक्षीय नीतियों के लिए कम्युनिस्ट ही लड़ते हुऐ दिखाई दे रहे हैं। संघ परिवार की जोशीमठ क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में फैली शाखाएं सदैव की तरह आज भी नदारद हैं।

हमारी पार्टी सी.पी.एम शुरुआती दौर से ही भीमकाय सुंरग आधारित परियोजनाओं एवं आल वेदर रोड़ के लिऐ अनाप-शनाप कटिगों तथा पेड़ो के अंदाधुंद कटान व पारिस्थितिकीय परितन्त्र से छेड़छाड़ की विरोधी रही है। इसके लिए लम्बे व बड़े आन्दोलन भी चलाए गए है । इसका जीता जागता उदाहरण रन-ऑफ़-द-रिवर परियोजना के नाम पर पिंडर घाटी में सतलुज जल विद्युत निगम द्वारा प्रस्तावित 252 मेगा वाट की सुरंग आधारित देवसारी जल विद्युत परियोजना का हमारी पार्टी शुरू से ही विरोध करते आ रही है। इसी तरह से रन-ऑफ़-द-रिवर परियोजना के नाम पर केदारघाटी में सिंगोली-भटवाड़ी तथा ब्यूंग गाड़ सुरंग आधारित परियोजना का भी सी.पी.एम विरोध करते आई है इस सब के पीछे पार्टी की मनसा जल विद्युत उत्पादन किए जाने से कहीं किसी भी तरह से कोई मनाही नहीं थी बल्कि जल विद्युत बनाने के तरीकों को लेकर पहाड़ की स्थितियों के अनुरूप परियोजनाओं का स्वरूप न होने के कारण पुख्ता विरोध किया जाता रहा है। तब भी सत्ता के दलाल कारपोरेट परस्त भीमकाय कम्पनियों के साथ खड़े हुए दिखाई दिये। आज जहाँ भी ये भीमकाय परियोजनाएं हैं, वहाँ भू धसाव,जल श्रोत सुखने की घटनाएं आये दिन हो रही हैं या फिर जगह जगह दरारें ही दरारें हैं। वर्ष 2013 की केदारनाथ त्रासदी भी कोई दैवी आपदा न होकर मनुष्य निर्मित आपदा ही थीं, जब केदारनाथ के ऊपरी हिस्से में स्थित चोराबाडी तालाब के पानी का बादल फटने से भारी रिसाव हुआ तथा मन्दिर के आसपास सहित रास्ते व ढलान में पड़ रही बस्तियों को मलवे के रूप में परिवर्तित हो कर तलहटी में आया। जगह जगह बन रहे टनलो एवं सड़कों का मलवा जो कि नदी के दोनों तरफ बेतरतीब ढंग से डाल दिया गया था, नदी की धार की चपेट में आकर मन्दकिनी अकल्पित रूपरौद्र रूप में परिवर्तित हो गयी। जिससे पूरी घाटी में तबाही मचा दी।

मंदाकिनी नदी में आए भारी मलबे ने श्रीनगर के एक हिस्से को रेत के टापू में तब्दील कर दिया। इसके अलावा ऋषिकेश, हरिद्वार ने भी कोई कम तबाही नही झेली तथा आगे कई शहरों के लिए यह सब खतरे का कारण बना। हजारों जानें जाने के बावजूद भी हमारे हुकमरानों ने इसे दैवीय आपदा बताकर सदैव की तरह अपनी जनविरोधी कुनीतियों पर पर्दा डालने और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने का कार्य किया। वर्ष 2013 की त्रासदी व उसके बाद आपदा प्रबंधन में सरकार की घोर लापरवाही व उपेक्षा के चलते यहां बहुत बड़ी आबादी को केदार घाटी से पलायन करने को बाध्य कर दिया। 2021 में जोशीमठ के तपोवन में आई भारी तबाही जिसके कारण दो सौ लोगों के टनल में जिन्दा दफन हो जाने के बावजूद टनलिंग, आलवेदर, तथा कुछ प्रभावशाली लोगों के अनाप-शनाप निर्माण खासकर कारपोरेट हितों के आगे नतमस्तक हमारी सरकारें इस सब के लिए जिम्मेदार हैं। इस सब के बाबजूद पिछले डेढ़ साल से जन पक्षीय पर्यावरणविद, जागरूक नागरिक, स्वतंत्र पत्रकार, सी.पी.एम एवं वाम पार्टीयां सरकार एवं स्थानीय जनता को चेताते रहे हैं, किन्तु दुर्भाग्य से इन खतरों के प्रति सभी तरह से रवैया अनसुनी का ही रहा। इस सबने अब स्थिति काबू से बाहर कर दी है । सरकार का सदैव की तरह लीपापोती पर जोर है। अपने इस राज्य में तीन मैदानी और दस पहाड़ी जनपद हैं। पहाड़ एवं मैदानी जिलों के लिए अलग-अलग धरातलीय सच्चाईयों को दृष्टिगत रखते हुए सतत व टिकाऊ विकास की ठोस नीतियों का बनाया जाना जरूरी है। इसके लिए जन पक्षीय ईमानदार राजनीति का होना बहुत जरूरी है। क्योंकि आज भी सत्ता से जुड़े लोगों द्वारा नदी विन्दाल से लेकर रिस्पना एवं मसूरी, मालदेवता, धनोल्टी के अन्दर कायदे कानूनों को ताक पर रख कर रिजोर्ट, बहुमंजिली इमारतें खड़ी की जा रही हैं ।

हमारे राज्य मेंं खासकर राजधानी देहरादून में विकास का नाम देकर कारपोरेट हितों के हिसाब से लगभग सभी योजनाओं का संचालन हो रहा है। जनता की गाढ़ी कमाई आये दिन लुटाई जा रही है। इन योजनाओं में स्मार्ट सिटी, नये शहरों की बसावट, सीविरेज ट्रीटमैंट प्लान्ट, कूड़ाघर, ट्रेफिक व्यवस्था परिवर्तन इत्यादि सब कुछ इनके एजेंडे में है। किंतु जिस जनता के हित में इन कामों को बताया जा रहा है उस जनता के हित सत्ता प्रतिष्ठान के एजेंडे से कोसों दूर हैं। इन योजनाओं की आढ़ में स्थानीय लोगों को बेरोजगार करने की साजिश की जा रही हैं। बाहरी कम्पनियों को ट्रैफिक व्यवस्था सौंपकर इस परिवहन व्यवस्था में यहां के छोटे व मझोले परिवहन व्यवसायियों को समाप्त कर दिया जाएगा। यहां के स्थानीय लोगों को जो छोटा मोटा काम मिलेगा वह भी कम वेतन पर और इसके ऊपर से गुलामी अलग से, इस तरह से मुट्ठी भर लोगों के विकास व मुनाफे के लिए बहुत कुछ शामिल है इस परियोजना में! यानि जो गरीब परिवार आज तक इस क्षेत्र में आर्थिक रूप में आत्मनिर्भर होने की ओर बढ़ रहे थे वे फिर से इन भीमकाय कम्पनियों के गुलाम हो कर अमानुषिक स्थितियों में जीने के लिए मजबूर हो जाऐंगे । इसी प्रकार कूड़े के प्रबन्धन की आढ़ में गुजराती, चैन्नई तथा महाराष्ट्र की कम्पनियों द्वारा हर बर्ष करोडों-करोड़ रूपये हड़प लिये जा रहे हैं, किन्तु जो वर्कर 12-12 घंटे काम कर रहा है वह जलालत की जिन्दगी जीने के लिए विवश हैं, सत्ता की आड़ में यह कंपनियां श्रम कानूनों को भी धत्ता बता रही हैं। सत्ता से जुड़े लोगों, भ्रष्ट नौकरशाहों, भूमाफियाओं तथा कारपोरेट गठबंधन की तो पो बारह है। आपके सामने एक उदाहरण देना चाहूंगा यदि बेरोजगार गांधी पार्क से अपने रोजगार की मांग के लिए जलूस निकालता है तो उस पर मुकदमा लगा दिया जाता है, हाथीबड़कला में एक माल के मालिक के आगे जाम न लगे उसके लिए कोर्ट, कचहरी,आला अधिकारी, नेता-फेता उसके लिए जी हजूरी करते फिरते हैं तथा राजनैतिक एवं सामाजिक स़गठनों को इस क्षेत्र में जनहित की आड़ लेकर जलूस, प्रदर्शनों को करने से रोक दिया गया है । तो आप साफ़ तौर पर देख सकते हैं की जनता की चुनी हुई सरकार अपने हक में आवाज उठाने पर जानता की करती है पिटाई और बड़े घरानों की करती है तलवे चटाई। इस प्रकार जनता के मुद्दों पर मजबूत जन संघर्षों की बदौलत हासिल व्यापक जन एकता के चलते ही कॉरपोरेट और पूंजी की चाटुकार शासक पार्टियों को सत्ता से बेदखल किया जा सकता है और आज की इस चौतरफा सत्यानाशी दौर को एक बेहतर कल में बदला जा सकता है।

(लेखक माकपा के वरिष्ठ नेता हैँ। उनके विचारों से एडमिन का सहमत होना जरूरी नहीं है।)

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